जम्मू कश्मीर पुनर्गठन कानून 2019 के तहत मिले कानूनी अधिकार के तहत केंद्र सरकार ने 26 अक्टूबर को केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में कई बदलाव किए. मुख्य बदलाव निश्चित रूप से बाहरी लोगों को जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीदने की अनुमति देते हैं. पूर्व में प्रदेश के भीतर जो कानूनी प्रावधान थे, उन्हें बदल दिया गया है. इसके तहत भू-स्वामित्व जम्मू-कश्मीर के ‘स्थायी निवासियों’ के पास रहना अनिवार्य था.
जम्मू-कश्मीर में बाहरी लोगों को जमीन खरीदने से रोकने संबंधी प्रतिबंधों को हटाए जाने की प्रतीक्षा मोदी सरकार की पहल का समर्थन कर रहे लोगों को लंबे समय से थी. उद्योगों पर इस फैसले के संभावित प्रभावों पर गवर्नर मनोज सिन्हा ने चर्चा की थी जबकि संबित पात्रा जैसे बीजेपी नेताओं ने सोशल मीडिया पर प्रसन्नतापूर्वक घोषणा की थी कि कोई भी अब जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीद सकता है.
जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीदने को लेकर जनता के एक बड़े वर्ग में जो आकर्षण है वह अपने आप में एक अलग कहानी है. मगर, जम्मू-कश्मीर के लोगों और नेताओं की चिंता है कि इसका सीधा संबंध क्षेत्र की डेमोग्राफी में बदलाव के इरादे से है क्योंकि जम्मू-कश्मीर हिन्दुस्तान में इकलौता मुस्लिम बहुल प्रदेश है.
हालांकि, यह दिलचस्प है कि यही लगाव दूसरे प्रदेशों से जुड़ा नहीं दिखता है जहां बाहरी लोगों के लिए जमीन खरीदने को लेकर ऐसे ही प्रतिबंध हैं.
आखिर क्यों ऐसे अधिकार दिए गए हैं?
ये बात नोट करने की है कि यह केवल उन प्रदेशों तक सीमित नहीं है जिन्हें संविधान के अनुच्छेद 371 या अनुच्छेद 371 ए-जे के तहत विशेष दर्जा दिया गया है. इन प्रदेशों को जमीन का हस्तांतरण रोकने के लिए खास अधिकार नहीं दिए गये हैं. और, न ही यह कृषि भूमि की खरीद पर प्रतिबंध के बारे में है जो ज्यादातर राज्यों में मौजूद है. ऐसा इसलिए कि संविधान के मुताबिक 'कृषि’ प्रदेश का विषय है.
इन प्रदेशों में जमीन खरीदने को लेकर बाहरी लोगों पर प्रतिबंध वास्तव में विभिन्न इलाकों और वहां रह रहे लोगों की जरूरतों के अनुरूप है. कानून में प्रतिबंध की जो व्यवस्था है इसका फैसला चुनी हुई विधानसभा और उसके हिसाब से चुने हुए प्रतिनिधि करते हैं. कुछ ऐसी ही व्यवस्था जम्मू-कश्मीर के लोगों से वापस ले ली गयी है.
जम्मू-कश्मीर में क्या बदलाव हुए हैं?
संविधान का अनुच्छेद 35ए, जो अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 के विलोपन के साथ खत्म हो चुका है, पूर्व प्रदेश को यह इजाजत देता था कि वह प्रदेश के स्थायी निवासी तय करे और उनके लिए विशेष प्रावधानों की व्यवस्था करे.
पुराने कानूनों को हटाने और अन्य कानूनों में बदलाव का अर्थ है कि केंद्र शासित प्रदेश में शहरी जमीन या गैर कृषि जमीन खरीदने पर कोई प्रतिबंध नहीं है. अब स्थायी निवासियों को शामिल किए बगैर क्षेत्र में औद्योगिक विकास ज़ोन बनाए जा सकते हैं.
बदलाव के बाद जम्मू-कश्मीर भू राजस्व कानून में किसी गैर कृषक पर कृषि भूमि की खरीद पर प्रतिबंध जारी रहेगा. कृषक का अर्थ उस व्यक्ति तक सीमित है जो व्यक्तिगत रूप से जम्मू-कश्मीर में खेती करता है. लेकिन कानून में बदलाव के बाद केंद्र को अनुमति मिल जाती है कि वह दूसरी श्रेणी के लोगों के लिए अधिसूचना जारी कर सकता है कि वह भविष्य में कृषि योग्य जमीन खरीद सके. इसके अलावा अब जिला कलेक्टर की अनुमति से कृषि भूमि को गैर कृषि भूमि में बदला जा सकता है. इसके लिए राजस्व मंत्री से पूर्वानुमति की आवश्यकता रहेगी. जम्मू-कश्मीर के कानूनों में हुए बदलाव केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में लागू नहीं होंगे.
अन्य राज्य जहां ‘बाहरी’ लोग जमीन नहीं खरीद सकते
अन्य राज्यों और क्षेत्रों में बाहरी लोगों पर जमीन खरीदने को लेकर कुछ अन्य प्रतिबंधों पर गौर करें :
हिमाचल प्रदेश
बाहरी लोगों द्वारा जमीन की खरीद पर प्रतिबंधों के लिए शायद सबसे मशहूर प्रदेश है. चाहे गांव हो या फिर शहर, प्रदेश के ‘प्रामाणिक निवासी’ ही जमीन की खरीद कर सकते हैं. मतलब यह कि वे लोग वहां 20 साल या इससे अधिक समय से रह रहे हैं. (वैसी गैर हिमाचली महिलाएं अपवाद हैं जिनकी शादी स्थानीय निवासी से हुई है)
नगरपालिका क्षेत्र के बाहर की ज्यादातर जमीन कृषि जमीन मानी जाती है (यहां तक कि वह जमीन भी जहां खेती नहीं होती है) जिस कारण यह स्थानीय निवासियों की पहुंच से भी दूर हो जाती है अगर वे कृषक नहीं होते हैं. हिमाचल प्रदेश टेनेंसी एंड लैंड रीफॉर्म एक्ट के सेक्शन 118 को इसका श्रेय दिया जाना चाहिए.
बहरहाल, अगर ऐसी जमीन पर कोई निर्माण है तो राज्य के राजस्व विभाग की अनुमति से कोई गैर कृषक निवासी 500 वर्गमीटर तक की जमीन आवासीय मकसद से और 300 वर्गमीटर जमीन व्यावसायिक उद्देश्य से खरीद सकता है.
प्रामाणिक स्थानीय निवासी के नियम में कुछ अपवाद भी हैं. एक बाहरी व्यक्ति सरकार के पास गैर कृषि जमीन की खरीद के लिए योग्यता हासिल करने के लिए आवेदन कर सकता है जिसका अनुमोदन कैबिनेट कर सकती है. हिमाचल शहरी विकास अथॉरिटी से भी बाहरी लोग बगैर अनुमति के ज़मीन खरीद सकते हैं.
बीते वर्षों में खास प्रकार के अपवाद भी बनाए गये हैं जो हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट जैसे औद्योगिक प्रॉजेक्ट के लिए हैं. इसके तहत जमीन खरीदने की इच्छा रखने वाला निवेशक सरकार से अनुमति हासिल कर सकता है.
सिक्किम
संविधान के अनुच्छेद 371 एफ के तहत सिक्किम को उस कानून को बनाए रखने की अनुमति दी गयी है जो इसके भारत में विलय से पहले वहां मौजूद थे. जमीन और संपत्ति बाहरी लोगों को बेचने संबंधी प्रतिबंध राज्य ने बरकरार रखा.
कुछ खास नगरपालिका क्षेत्र को छोड़कर बाकी जगहों में केवल सिक्किम के निवासी ही संपत्ति खरीद सकते हैं. आदिवासी इलाकों में प्रतिबंध और भी कड़े हो जाते हैं जहां केवल उसी क्षेत्र के आदिवासी समुदाय के लोग जमीन खरीद सकते हैं. औद्योगिक इकाइयां स्थापित करने के लिए जमीन खरीदने को लेकर बाहरी लोगों के लिए कुछ अपवाद भी बनाए गये हैं.
नागालैंड
संविधान के अनुच्छेद 371ए कहता है कि ज़मीन के मालिकाना हक और हस्तांतरण को लेकर केंद्र सरकार नगालैंड के लिए कोई कानून पारित नहीं कर सकती. कौन जमीन खरीद सकता है और कौन नहीं, इसे तय करने का विशेष अधिकार नगालैंड सरकार के पास है जिसने कानून बनाया है ताकि नगालैंड के ‘मूल निवासियों’ के अतिरिक्त कोई भी ज़मीन नहीं खरीद सके.
यह कानून बाहरी लोगों को राज्य में जमीन खरीदने से रोकता है (और तकनीकी रूप से, किसी मूल निवासी को भी) हालांकि हाल के वर्षों में लोन या जमा से जुड़े डिफॉल्ट के कारण बाहरी लोगों ने कुछ मात्रा में जमीन का अधिग्रहण किया है. इससे राज्य में विरोध की स्थिति पैदा हुई है.
असम, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम और दार्जिलिंग (पश्चिम बंगाल) छठी अनुसूची वाले क्षेत्र हैं. संविधान में छठी अनुसूची उत्तर पूर्व के इन प्रदेशों में आदिवासी इलाकों में स्वायत्त परिषद बनाने की इजाजत देती है. इसने भी बाहरी लोगों के लिए जमीन खरीदने पर प्रतिबंध लगाया है.
अनुच्छेद 371 जी के तहत मिजोरम के पास भी अधिकार हैं कि वह गैर आदिवासी इलाकों में जमीन के मालिकाना हक और हस्तांतरण पर प्रतिबंध लगाए. यह मिजोरम विधानसभा के विवेकाधिकार पर निर्भर करता है.
अरुणाचल प्रदेश
संविधान में विशेष प्रावधान के कारण अरुणाचल प्रदेश जमीन के स्वामित्व को लेकर प्रतिबंध नहीं लगाता है. लेकिन यहां लंबे समय से भू स्वामित्व को लेकर नियम रहे हैं. इसमें प्रदेश सरकार हस्तक्षेप नहीं करती. इसे केंद्र पर छोड़ देती है.
इन परंपरागत नियमों के तहत तकनीकी तौर पर किसी व्यक्ति का संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं है चाहे वह निवासी हो या नहीं हो. मूल वासियों के लिए व्यक्तिगत संपत्ति का अधिकार 2018 में एक कानून के तहत स्वीकार किया गया. बहरहाल, बाहरी और गैर आदिवासी निवासी प्रदेश में संपत्ति नहीं रख सकते.
झारखण्ड, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की जमीन. इन सभी प्रदेशों की अपनी विधानसभाएं हैं जो आदिवासियों की जमीन को गैर आदिवासियों के हाथों बेचने से रोकती हैं चाहे वे प्रदेश के निवासी हों या फिर बाहरी.
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