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मणिपुर: खुलेआम 800 ₹ में सेना की नकली ड्रेस, 2000 में टैक्टिकल वेस्ट,आर्मी के लिए परेशानी

Manipur violence: मणिपुर में पिछले 2 हफ्तों में छापे के बाद सैन्य संगठनों से मिलते-जुलते हथियार और गियर बरामद किए गए हैं

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मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदाय के बीच चल रही जातीय अशांति (Manipur violence) के बीच, राज्य में सुरक्षा एजेंसियों के सामने अब एक नई समस्या है- नागरिकों और उग्रवादियों द्वारा कथित तौर पर आर्मी की नकली वर्दी डालकर खुद को सुरक्षा कर्मियों के रूप में पेश करना.

और उनका डर, शायद, बेवजह नहीं है. असम राइफल्स के एक अधिकारी ने द क्विंट को बताया कि पिछले दो हफ्तों में राज्य के विभिन्न हिस्सों में मारे गए छापों में हथियार और आर्मी से मिलती-जुलती वर्दी बरामद हुए हैं, जिन्हें कथित तौर पर नागरिकों ने पुलिस स्टेशनों और आर्मरी (जहां हथियार रखे जाते हैं) से लूट लिया था.

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संदिग्ध उग्रवादियों द्वारा वर्दी के दुरुपयोग के कुछ मामले भी दर्ज किए गए हैं, जिससे नागरिकों की जान चली गई.

स्नैपशॉट
  • 13 सितंबर को, तीन निहत्थे आदिवासी ग्रामीणों पर कथित तौर पर पुलिस कमांडो के भेष में संदिग्ध उग्रवादियों ने गोली मारकर हत्या कर दी. तीनों मृतक कुकी समुदाय से थे और ये मेडिकल ट्रीटमेंट के लिए मणिपुर के सेनापति जिले के कंचुप पोनलेन गांव से पड़ोसी कांगपोकपी जिले के हेडक्वाटर की ओर यात्रा कर रहे थे.

  • 8 सितंबर को, तेनुगोपाल जिले के पल्लेल में ग्रामीणों पर गोलीबारी करने वाली बड़ी भीड़ में काले कमांडो पोशाक पहने कई हथियारबंद व्यक्ति शामिल थे. इस घटना में तीन लोगों की मौत हो गई और भारतीय सेना के एक मेजर सहित 50 से अधिक अन्य घायल हो गए.

असम राइफल्स के अधिकारी ने दावा किया कि अतीत में भी, राज्य में बैन किए गए आतंकवादी संगठनों ने नागरिकों पर हमला करने के लिए इस 'चाल' का इस्तेमाल किया है.

हालांकि, सशस्त्र नागरिक वॉलंटियर्स ने नाम न छापने की शर्त पर द क्विंट को बताया कि आर्मी जैसी वर्दी पहनने के उनके अपने कारण हैं- इसमें आत्मरक्षा (सेल्फ डिफेंस) से लेकर उन्हें "विश्वसनीयता की भावना" देने जैसी वजहें शामिल हैं.

मणिपुर में नकली मिलिट्री आउटफिट का ढेर

मणिपुर पुलिस के एक अधिकारी ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया कि पिछले 12 दिनों में, मणिपुर पुलिस और सुरक्षा बलों की एक संयुक्त टीम ने छापों में लगभग 100 नकली मिलिट्री वर्दी, मिलिट्री जूते, 11 वॉकी-टॉकी, तीन रेडियो सेट, आंसू गैस के गोले, साथ ही 80 बुलेटप्रूफ जैकेट बरामद किए हैं. ये छापें राज्य के पहाड़ी और घाटी, दोनों जगहों के जिलों के गांवों में मारे गए.

अधिकारी ने कहा कि नकली मिलिट्री वर्दी, बुलेटप्रूफ जैकेट, वायरलेस सेट और वॉकी-टॉकी की बरामदगी से पता चलता है कि "कैसे जातीय संघर्ष के दौरान सिविलयन खुद को सुरक्षा कर्मियों के रूप में प्रस्तुत कर रहे थे."

वास्तव में, स्थानीय समाचार रिपोर्टों के अनुसार, मिलिट्री गियर/वर्दी की मांग बढ़ रही है और उन्हें इम्फाल में, जहां बहुसंख्यक मैतेई समुदाय का प्रभुत्व है, और चुराचांदपुर में, जहां कुकी समुदाय का प्रभुत्व है, खुलेआम बेचा जा रहा है.

इंफाल के एक दुकानदार ने नाम न छापने की शर्त पर द क्विंट से बात करते हुए कहा कि मिलिट्री गियर तीन जगहों - दिल्ली, सिलचर और गुवाहाटी से खरीदा जाता है.

दुकानदार ने कहा कि जहां टैक्टिकल वेस्ट (बनियान की तरह पहना जाने वाला गियर जिसमें हथियार रखे जा सकते हैं) की कीमत साइज के आधार पर लगभग 2,000-2,500 रुपये है, वहीं जूते और हेडगियर की कीमत लगभग 500 रुपये और वर्दी की कीमत लगभग 800 रुपये है.

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मणिपुर के सुरक्षा सलाहकार आईपीएस कुलदीप सिंह (रिटायर्ड) ने द क्विंट को बताया कि दुकानदारों को ऐसे कपड़े बेचने से रोकना एक कठिन काम है.

"ऐसा कोई कानून नहीं है जो कहता हो कि आर्मी की वर्दी बेचने की अनुमति नहीं है या दंडनीय है. वास्तव में, ऐसी वर्दी आजकल ऑनलाइन भी उपलब्ध है. इसलिए, इम्फाल और चुराचांदपुर में दुकानदारों को ऐसा करने से रोकना कठिन है क्योंकि हमारे पास इसके लिए कोई आधार नहीं है. हम स्थिति पर करीब से नजर रख रहे हैं और कुछ लोगों को पकड़ा है जो वर्दी का दुरुपयोग करते पाए गए हैं.''
आईपीएस कुलदीप सिंह (रिटायर्ड), मणिपुर के सुरक्षा सलाहकार

सुरक्षा बल किस बात से चिंतित हैं?

नकली गियर की इस खुली बिक्री ने सुरक्षा एजेंसियों को मुख्य रूप से दो कारणों से चिंतित कर दिया है:

  • सबसे पहले, उन्हें डर है कि नागरिकों को इन वर्दी तक आसान पहुंच मिलने से सुरक्षा बलों के लिए उनके और आम नागरिकों के बीच अंतर करना कठिन हो जाएगा. मणिपुर पुलिस के अनुसार, पूरे मणिपुर में सेना की 162 टुकड़ियां तैनात की गई हैं. यह केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) और सीमा सुरक्षा बल (BSF) के अतिरिक्त है, जिन्हें संवेदनशील क्षेत्रों में 133 चौकियों पर तैनात किया गया है. ऐसे में नकली वर्दी की मदद से सुरक्षा कर्मियों की नकल किए जाने की आशंका बनी रहती है.

  • दूसरा, मई में पूरे राज्य में हिंसा भड़कने के बाद, मणिपुर में मैतेई और कुकी-प्रभुत्व वाले दोनों क्षेत्रों में जमीनी स्तर की "ग्राम रक्षा" सेनाएं बन गयी हैं. इनके सशस्त्र वॉलंटियर्स भी अधिकतर सुरक्षा एजेंसियों जैसी ही वर्दी पहनते हैं.

"इन दिनों सशस्त्र वॉलंटियर्स और सेना के एक अधिकारी के बीच अंतर करना कठिन होता जा रहा है. यह स्थिति हमारे काम को कठिन बना रही है."
असम राइफल्स के अधिकारी
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नागरिक नकली वर्दी क्यों पहन रहे हैं?

द क्विंट से बात करते हुए, कुकी गांव के वॉलंटियर, जॉन हाओकिप (बदला हुआ नाम) ने कहा: "मैंने स्वेच्छा से अपने गांव की रक्षा की क्योंकि राज्य अपना काम नहीं कर रहा है. हमारी रक्षा करने वाला कोई नहीं है. वर्दी पहनने से हमें अधिकार और विश्वसनीयता का एहसास मिलता है."

उसने आगे कहा, ''यह हमें दो तरह से मदद करता है. सबसे पहले, यह हमें मैतेई लोगों के हमले से बचाने में मदद करता है. और दूसरा, यह हमें सुरक्षा बलों के अत्याचारों से भी बचाता है. चलिए स्वीकार करते हैं कि मेन लैंड भारत की सुरक्षा एजेंसियों के मणिपुरियों (दोनों मैतेई और कुकी) के साथ हमेशा अच्छे संबंध नहीं रहे हैं. इनकी ज्यादतियों को अच्छी तरह से लिखा-छापा गया है. इसलिए, ये वर्दी इन ज्यादतियों के खिलाफ एक निवारक के रूप में कार्य करती है."

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, जुलाई में मणिपुर पुलिस ने यह सुनिश्चित करने का निर्देश अपने सभी यूनिट्स को दिए थे कि मणिपुर पुलिस की ब्लैक कमांडो वर्दी का दुरुपयोग न हो. इसके पीछे वे रिपोर्ट वजह थी, जिनसे पता चला कि हथियारबंद दंगाई "अविश्वास पैदा करने के लिए इसे पहन रहे थे."

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