मोदी सरकार ने यूपीए सरकार के मुकाबले राफेल का सौदा 41 परसेंट ऊंचे भाव पर किया है. हिंदू अखबार के चौंकाने वाले खुलासे के बाद कांग्रेस ने कहा है कि दसॉ अपने बैंक खातों में पैसे की छप्पर-फाड़ बारिश को देखकर गदगद हो रही होगी.
“राफेल की खरीद पर पर्दे के पीछे एक्शन पर ‘द हिंदू’ की रिपोर्ट चौंकाने वाली हैं, जो कहती है कि कहने को तो दसॉ ने हर विमान के दाम में 9 परसेंट डिस्काउंट के बाद 9 करोड़ यूरो कर दिया. लेकिन दसॉ ने राफेल में भारत की जरूरतों के मुताबिक उपकरण और टेक्नोलॉजी फिट करने के दाम 1.1 करोड़ यूरो से बढ़ाकर 3.6 करोड़ यूरो कर दिए. साथ ही टेक्नोलॉजी ट्रांसफर भी नहीं किया.”
हालांकि वित्तमंत्री अरुण जेटली ने हिंदू की रिपोर्ट को ये कहते हुए खारिज कर दिया कि ये बेसिरपैर कैलकुलेशन है. इलाज के लिए अमेरिका गए जेटली ने कई ट्वीट किए जिसमें कहा गया है कि राफेल सौदे को सुप्रीम कोर्ट परख चुका है और अभी सीएजी भी इस पर रिपोर्ट देने की तैयारी में है.
रक्षा मंत्रालय ने भी हिंदू की रिपोर्ट को गलत तथ्यों पर आधारित करार दिया है. रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि संसद में चर्चा के दौरान रक्षा मंत्री राफेल से जुड़ी तमाम बातों का जवाब दे चुकी हैं.
मोदी सरकार का फैसला महंगा पड़ा: हिंदू
यूपीए सरकार ने 2007 में वायुसेना के लिए 126 विमानों का टेंडर निकाला. तमाम प्रक्रियाओं के बाद दसॉ का ऑफर सबसे अच्छा पाया गया. हर साल लागत बढ़ने के फॉर्मूले से 2011 में बोली खोली गई तो दाम 10 करोड़ यूरो हो गया.
राफेल के दाम
साल 2007
- विमान खरीदने की संख्या- 126
- हर विमान का दाम- 7.93 करोड़ यूरो
- हर विमान डिजाइन और डेवलमेंट खर्च – 1.1 करोड़ यूरो
- विमान की कुल कीमत – 9 करोड़ यूरो
साल- 2011
- विमान खरीदने की संख्या- 126
- हर विमान का दाम- 10.08 करोड़ यूरो
- प्रति विमान डिजाइन और डेवलमेंट खर्च – 1.1 करोड़ यूरो
- हर विमान की कुल कीमत – 11.18 करोड़ यूरो
साल- 2016
- विमान खरीदने की संख्या- 36
- हर विमान का दाम- 9.17 करोड़ यूरो
- प्रति विमान डिजाइन और डेवलमेंट खर्च – 3.61 करोड़ यूरो
- हर विमान की कुल कीमत – 12.78 करोड़ यूरो
पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम के मुताबिक, रिपोर्ट से साफ है कि मोदी सरकार ने राफेल का विमान खरीदने में 40 परसेंट से ज्यादा रकम चुकाई है. उनके मुताबिक अभी पूरी बात सामने नहीं आई है, मुमकिन है कि अभी कई बातें और चौंकाने वाली हों.
2011 और 2016 के सौदे में बहुत बड़ा फर्क
यूपीए सरकार ने 2011 में जब राफेल की बोली खोली, तो लागत बढ़ाने के फॉर्मूले से विमान की लागत 2007 के मुकाबले करीब दो करोड़ यूरो बढ़ गई. उस वक्त टेंडर 126 विमान खरीदने का था.
“सभी विमानों को भारत की जरूरत के मुताबिक डिजाइन और टेक्नोलॉजी डेवलमेंट के लिए दसॉ ने एकमुश्त 1.4 अरब यूरो खर्च बताया था, जो प्रति प्रति विमान 1.1 करोड़ आता.”
2016 के सौदे में विमानों की संख्या अचानक घटाकर 36 कर दी गई. लेकिन डिजाइन और डेवलमेंट का खर्च जस का तस रहा उस हिसाब से हर विमान को भारतीय जरूरत के हिसाब से बनाने का खर्च 3.6 करोड़ यूरो हो गया.
स्टोरी में ट्विस्ट
सबसे बड़ा पेच यही है कि भारतीय वायुसेना की जरूरतों के लिए 126 विमानों के डिजाइन और डेवलपमेंट में 1.3 अरब यूरो का खर्च होना था. लेकिन 2016 के सौदे में दसॉ ने साफ कर दिया कि सिर्फ 36 विमानों को भारतीय जरूरत के मुताबिक बनाने में इतनी ही रकम खर्च हो जाएगी.
चिदंबरम के मुताबिक, इसके अलावा यूपीए के सौदे में दसॉ को जो रकम 10 साल में मिलती थी, वो एनडीए की शर्तों में सिर्फ 3 साल में मिल जाएगी. उनका आरोप है कि दसॉ अपने बैंक खातों को देखकर गदगद होगी, क्योंकि मोदी सरकार ने उसे मुंहमांगा गिफ्ट दे दिया.
सौदे पर बातचीत करने वाली भारतीय टीम
इसमें 7 सदस्य थे, जिनमें से तीन ने ज्यादातर शर्तों का विरोध किया, जबकि 4 ने समर्थन किया. यानी ज्यादातर फैसले बहुमत से लिए गए.
विरोध करने वाली टीम के मेंबर
- राजीव वर्मा, ज्वाइंट सेक्रेटरी और एक्वीजीशन मैनेजर (एयर)
- अजित सुले, फाइनेंशियल मैनेजर (एयर)
- एमपी सिंह, एडवाइजर (लागत)
इनकी दलील थी कि भारत की जरूरत के मुताबिक इक्विपमेंट लगाने की कीमत बहुत ज्यादा है. इसके अलावा दाम बढ़ा-चढ़ाकर बताए गए.
आपत्तियों को खारिज किया गया
बाकी चार ने सौदे की शर्तों का समर्थन किया. करीब करीब हर मुद्दे पर 4-3 से फैसला हुआ.
समर्थन करने वाले सदस्य
- डिप्टी चीफ ऑफ एयर स्टाफ (एयरफोर्स)
- ज्वाइंट सेक्रेटरी (डिफेंस ऑफसेट मैनेजमेंट विंग)
- ज्वाइंट सेक्रेटरी और एडिशनल फाइनेंशियल एडवाइजर
- असिस्टेंट चीफ ऑफ एयर स्टाफ (प्लान्स)
अंतिम फैसले में कहा गया कि भारत की 7 सदस्यों की टीम ने 4-3 के बहुमत से फैसला किया कि भारत के लिए जरूरी इक्विपमेंट लगाने के लिए 1.3 अरब यूरो की लागत को मंजूरी दे दी गई.
मनोहर पर्रिकर ने हाथ झाड़े?
सुप्रीम कोर्ट में राफेल सौदे के बारे में याचिका लगाने वालों को जो रिपोर्ट के हिस्से सौंपे गए हैं, उनमें सरकार के नोट्स में कहीं भी डिफेंस मंत्री मनोहर पर्रिकर की अगुआई वाली डिफेंस एक्वीजीशन काउंसिल की आगे की भूमिका का जिक्र नहीं हैं. पर्रिकर ने हाथ झाड़ते हुए फैसला पूरी तरह कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी पर छोड़ दिया.
यूरो फाइटर का ऑफर भी मिला था
दस्तावेजों के मुताबिक, भारतीय टीम के सदस्यों ने ब्रिटेन, जर्मनी, इटली और स्पेन की यूरोफाइटर टाइफून कंसोर्शियम के ऑफर का जिक्र किया है.
राफेल और उसमें लगे इक्विपमेंट के बाद की कीमत और यूरो फाइटर के ऑफर की तुलना से लगता है कि 20 परसेंट डिस्काउंट में मिल रहा था. लेकिन 4-3 से ये प्रस्ताव गिर गया, क्योंकि ये बिडिंग बंद होने के बाद लाया गया.
हालांकि यूरो फाइटर एयरफोर्स की तमाम जरूरतों पर खरा पाया गया था. लेकिन शुरुआत में कीमत के मामले में वो राफेल से पिछड़ गया.
जब राफेल पर सौदा अटका था, तो यूरोफाइटर ने 4 जुलाई 2014 को रक्षा मंत्री अरुण जेटली को लिखी चिट्ठी में नया ऑफर दिया.
यूरो फाइटर का ऑफर
- पहले बताई गई कीमत से 20 परसेंट डिस्काउंट
- एडवांस टेक्नोलॉजी
- कीमत देने के लिए छूट
- प्रोडक्शन लाइन लगाना
- ट्रांसफर ऑफ टेक्नोलॉजी
- भारत में यूरोफाइटर टाइफून इंडस्ट्रियल पार्क
- ट्रेनिंग और सपोर्ट सिस्टम
- जर्मनी, ब्रिटेन, इटली और स्पेन की डिलिवरी रोककर भारत को देने का वादा
सरकार ने यूरोफाइटर का प्रस्ताव ये कहते हुए ठुकरा दिया कि अब बहुत देरी हो चुकी है.
दाम बढ़ने के बात दसॉ ने मानी
विमान के दाम में 9 परसेंट कमी की गई पर उपकरण के दाम 2.5 करोड़ यूरो या 41 परसेंट बढ़ गए. दसॉ के सीईओ एरिक ट्रैपियर ने भी एएनआई को दिए इंटरव्यू में माना है कि डिस्काउंट सिर्फ विमान के लिए दिया गया, उपकरण के लिए नहीं.
कानून मंत्री ने आधी बात बताई
रविशंकर प्रसाद ने भी 9 परसेंट डिस्काउंट की बात कही और संसद को इसी आधार पर 670 करोड़ रुपए विमान की कीमत बताई गई. 2007 में जो बिड दी गई थी, उसमें लागत बढ़ने का फॉर्मूला भी दिया गया था.
- 2007 में 126 विमानों के दाम 7.93 करोड़ यूरो
- 2011 में बिड खोली गई तो फॉर्मूले से दाम 10.08 करोड़ यूरो हो गया
- 2016 में एनडीए सरकार ने 10.08 करोड़ यूरो में मोलभाव करके दाम 9 परसेंट कम करा लिए और दाम हो गए 9.175 करोड़ यूरो
- भारत के हिसाब से विमान तैयार करने में प्रति विमान कीमत हो गई 12.7 करोड़ यूरो जो 2007 में दसॉ के बताए गए दाम से 41.42% ज्यादा है.
- लागत बढ़ने का फॉर्मूला लगाने के बाद एनडीए ने जो विमान खरीदा है उसका दाम 2011 के दाम से 14.20% ज्यादा है.
- पहले की डील के मुताबिक 18 विमान सीधे फ्रांस से बनकर आने थे
- 108 विमान एचएएल बंगलुरु में बनाए जाने थे, जिसके लिए बातचीत जारी थी
लेकिन तभी भारत ने 36 विमान सीधे फ्रांस से खरीदने का ऐलान कर दिया, इससे टेक्नोलॉजी ट्रांसफर वाला मामला लटक गया और एचएएल बाहर हो गया.
फॉलोऑन शर्त हटाई गई
ज्यादातर डिफेंस सौदों में ये शर्त रखी जाती है कि अगर सौदे बढ़ाया गया, तो भी पुराने दामों पर ही डिलिवरी होगी. लेकिन 9 परसेंट डिस्काउंट के बदले भारत सरकार ने फॉलोऑन क्लॉज खत्म कर दिया. फॉलोआन क्लॉज के मुताबिक, भारत विमानों का ऑर्डर 189 तक बढ़ सकता था और दसॉ उन्हें उसी कीमत पर सप्लाई करती, जिस दाम पर 126 विमान दिए जाते, यानी लागत नहीं बढ़ाती.
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