भारत में एक बार फिर प्रेस की आजादी (Press Freedom in India) पर सवाल खड़े हुए हैं. एक बार फिर पत्रकारों के खिलाफ 'सिस्टम' का कड़ा रुख देखने को मिला है. सत्ता और मीडिया के बीच की खाई और गहरी होती दिख रही है. Alt News के को-फाउंडर मोहम्मद जुबैर (Mohammed Zubair) की गिरफ्तारी के बाद पूछा जा रहा है- क्या भारत में प्रेस आजाद है?
हम उन पत्रकारों के बारे में बताएंगे, जिनका सत्ता से सीधा टकराव हुआ है.
मोहम्मद जुबैर
Alt News के को-फाउंडर मोहम्मद जुबैर (Mohammed Zubair) को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने सोमवार को गिरफ्तार किया. मोहम्मद जुबैर को दिल्ली पुलिस की IFSO यूनिट ने सेक्शन 153 और 295A के तहत गिरफ्तार किया है. जुबैर पर धार्मिक भावनाएं आहत करने का आरोप लगा है.
जुबैर के खिलाफ कार्रवाई पर पत्रकार, कलाकार समेत विपक्षी दलों ने सवाल उठाए हैं. एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (Editors Guild of India) और डिजीपब न्यूज इंडिया फाउंडेशन (DIGIPUB News India Foundation) के साथ ही प्रेस क्लब ने दिल्ली पुलिस की कार्रवाई की निंदा की है और जुबैर को तत्काल रिहा करने की मांग की है.
तीस्ता सीतलवाड़
पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ (Teesta Setalvad) को 2002 गुजरात दंगा मामले में झूठी जानकारी देने, सबूत गढ़ने और आपराधिक साजिश के आरोप में 26 जून को गिरफ्तार किया गया है. कोर्ट ने तीस्ता को 2 जुलाई तक पुलिस हिरासत में भेजा है.
24 जून को सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात दंगे पर SIT की रिपोर्ट के खिलाफ दाखिल याचिका को रद्द कर दिया था. इस याचिका को जाकिया जाफरी ने दाखिल किया था. सुप्रीम कोर्ट ने याचिका रद्द करते हुए कहा था तीस्ता सीतलवाड़ के बारे में और छानबीन की जरूरत है, क्योंकि तीस्ता इस मामले में जकिया जाफरी की भावनाओं का इस्तेमाल गोपनीय ढंग से अपने स्वार्थ के लिए कर रही थी.
तीस्ता सीतलवाड़ की गिरफ्तारी का विरोध भी हो रहा है. इसे सियासी बदले के रूप में भी देखा जा रहा है. मुंबई प्रेस क्लब से लेकर अन्य संस्थानों ने गिरफ्तारी पर सवाल उठाए हैं.
राणा अय्यूब
सरकार की आलोचना की वजह से पत्रकार राणा अय्यूब (Rana Ayyub) भी लगातार सुर्खियों में रहती हैं. हाल ही में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने मनी लॉन्ड्रिंग (Money Laundering) मामले में 1.77 करोड़ रुपए जब्त किए है. राणा अय्यूब पर आरोप है कि उन्होंने कथित तौर पर तीन अभियानों में मिले दान का सही उद्देश्य के लिए इस्तेमाल नहीं किया. ED ने यूपी पुलिस की FIR के आधार पर मामला दर्ज किया था.
26 जून को ट्विटर (Twitter) ने पत्रकार राणा अय्यूब के ट्विटर अकाउंट पर भारत में रोक लगा दी थी. ट्विटर ने यह कार्रवाई सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 के तहत की. हालांकि अब उनके अकाउंट पर किसी तरह की कोई रोक नहीं है.
फहद शाह
'द कश्मीर वाला' के संपादक फहद शाह (Fahad Shah) करीब 5 महीनों से कैद में हैं. फहद को पहली बार पुलवामा पुलिस ने सोशल मीडिया पर कथित तौर पर ‘राष्ट्र-विरोधी सामग्री’ पोस्ट करने के लिए गिरफ्तार किया और इस साल फरवरी में गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत मामला दर्ज किया. एक अदालत ने उन्हें 22 दिन के बाद जमानत दे दी.
हालांकि, हिरासत से बाहर निकलने से कुछ घंटे पहले शाह को शोपियां पुलिस ने एक समान मामले में गिरफ्तार करके हिरासत में ले लिया, उन्हें 5 मार्च को मामले में जमानत मिल गई. तब उन्हें तुरंत तीसरे मामले में गिरफ्तार कर लिया गया.
14 मार्च को श्रीनगर की एक अदालत में फहद की जमानत याचिका पर सुनवाई से कुछ ही घंटों पहले उनके खिलाफ जन सुरक्षा कानून (PSA) लगा दिया गया और उन्हें उत्तरी कश्मीर की कुपवाड़ा जेल में स्थानांतरित कर दिया गया. 23 मई को फहद की कुपवाड़ा की जेल से SIA को सौंप दी गई. यह उनके खिलाफ पांचवां मामला है.
वहीं कश्मीरी पत्रकार आसिफ सुल्तान 2018 से जेल में हैं. इनके अलावा मुख्तार जहूर, मनन गुलज़ार डार, जुनैद पीर जैसे कई कश्मीरी पत्रकार, गिरफ्तार या हिरासत में हैं.
सिद्दीकी कप्पन
केरल के पत्रकार सिद्दीकी कप्पन (Siddique Kappan) साल 2020 से जेल में बंद हैं. 5 अक्टूबर, 2020 को उन्हें गिरफ्तार किया गया था. कप्पन पर कट्टरपंथी समूह पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) से जुड़े होने का आरोप है. यूपी के हाथरस में युवती के साथ हुए गैंगरेप-मर्डर के बाद वे घटनास्थल पर जा रहे थे, जिस दौरान उन्हें गिरफ्तार किया गया था.
पिछले साल मथुरा की एक स्थानीय अदालत ने पत्रकार सिद्दीकी कप्पन सहित चार लोगों को शांति भंग करने के आरोपों से मुक्त कर दिया था. हालांकि कप्पन अभी जेल में बंद हैं. कप्पन पर IPC की धारा 153ए (समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), 295ए (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना), 124ए (देशद्रोह), 120बी (साजिश), UAPA के तहत केस दर्ज है.
अजीत ओझा, दिग्विजय सिंह और मनोज गुप्ता
उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में पेपर लीक (Paper Leak) मामले में वरिष्ठ पत्रकार अजीत ओझा, दिग्विजय सिंह और मनोज गुप्ता को गिरफ्तार किया गया था. बाद में पुलिस ने तीनों पत्रकारों पर लगी धाराएं हटा दी और उन्हें जमानत मिल गई. तीनों पत्रकारों को करीब 25 दिनों तक जेल में बंद रहना पड़ा था.
जेल से बाहर निकले के बात तीनों पत्रकारों ने बलिया जिला प्रशासन पर निशाना साधते हुए कहा था कि, "प्रशासन की भूमिका पूरी तरह से संदिग्ध है. हम लोगों ने जिला प्रशासन को सूचना दी और जिला प्रशासन ने हम लोगों को ही अपराधी बना दिया."
मध्य प्रदेश में पत्रकार के उतरवाए कपड़े
अप्रैल में मध्य प्रदेश के सीधी जिले में कोतवाली थाने के अंदर पत्रकार सहित अन्य लोगों के कपड़े उतरवा दिए गए थे, जिसकी तस्वीर सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई थी. इस दौरान उन लोगों ने आरोप लगाया था कि वो सिर्फ रंगकर्मी नीरज कुंदेर की गिरफ्तारी की जानकारी लेने गए थे लेकिन पुलिस ने उनके साथ बदसलूकी की और उनको अर्धनग्न अवस्था में रखा और बेइज्जत करने के लिए फोटो भी वायरल कर दी.
वहीं इस पूरे मामले में सीधी से बीजेपी विधायक केदारनाथ शुक्ला का भी नाम सामने आया था. रंगकर्मी नीरज कुंदेर को सीधी विधायक केदारनाथ शुक्ला और उनके परिवार के खिलाफ कथित तौर पर सोशल मीडिया पर अभद्र टिप्पणी करने के आरोप में 2 अप्रैल को गिरफ्तार किया गया था.
स्वतंत्र पत्रकारिता की सूची में लुढ़कता भारत
स्वतंत्र पत्रकारिता की सूची में भारत लगातार नीचे लुढ़कता जा रहा है. 2022 में रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (RSF) की 180 देशों की सूची में भारत 150वें स्थान पर है. पिछले साल भारत 142वें स्थान पर था.
रिपोर्ट में कहा गया है कि, "भारत मीडिया के लिए दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में से एक है. पत्रकारों को पुलिस हिंसा, राजनीतिक कार्यकर्ताओं के हमले, भ्रष्ट स्थानीय अधिकारियों की प्रताड़ना और हिंसा का सामना करना पड़ता है. सरकार विरोधी हमलों और विरोध प्रदर्शनों को कवर करने की कोशिश करने वाले पत्रकारों को अक्सर गिरफ्तार किया जाता है और कभी-कभी मनमाने ढंग से हिरासत में लिया जाता है."
वहीं इस साल फरवरी में राइट्स एंड रिस्क एनालिसिस ग्रुप (RRAG) द्वारा जारी इंडिया प्रेस फ्रीडम रिपोर्ट 2021 के अनुसार, अकेले 2021 में देश में कम से कम छह पत्रकार मारे गए और 108 पत्रकारों और 13 मीडिया घरानों को निशाना बनाया गया.
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