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Supertech Twin Tower के मालिक आरके आरोड़ा और कंपनी के दिवालिया होने की कहानी

Supertech Twin Tower: सुपरटेक के मालिक आरके अरोड़ा ने अलग-अलग सेक्टरों में भी पांव जमाने के लिए कंपनियां खोली हैं.

Published
भारत
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सुपरटेक ट्विन टावर (Supertech Twin Tower) को आज रविवार, 28 अगस्त को ढहा दिया गया. इससे निकलने वाले मलबे से कंपनी की करोड़ों की कमाई तो हो जाएगी लेकिन सुपरटेक सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद से नुकसान ही झेल रही है. यहां तक कि सुपरटेक कंपनी दिवालिया भी घोषित हो चुकी है. आइए जानते हैं कपंनी के दिवालिया होने की कहानी और इसके मालिक आरके अरोड़ा का सफर.

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सुपरटेक के फाउंडर आरके अरोड़ा ने 34 कंपनियां खड़ी की हैं जिनमें आरके अरोड़ा ने सिविल एविएशन, कंसलटेंसी, ब्रोकिंग, प्रिंटिंग, फिल्म्स, हाउसिंग फाइनेंस, कंस्ट्रक्शन और तो और कब्रगाह बनाने-बेचने के लिए भी कंपनी खोली है.

कॉरपोरेट अफेयर मिनिस्ट्री की आधिकारिक वेबसाइट और डाटा के मुताबिक आरके अरोड़ा और उनके साथियों ने 7 दिसंबर 1995 को इस कंपनी की शुरुआत की थी. कंपनी ने अब तक मेरठ, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, यमुना प्राधिकरण क्षेत्र और दिल्ली-एनसीआर समेत देशभर के करीब 12 शहरों में रियल स्टेट प्रोजेक्ट लॉन्च किए हैं. इसके बाद आरके अरोड़ा ने एक-एक करके अलग-अलग कामों के लिए 34 कंपनियां बनाई हैं.

सुपरटेक लिमिटेड के अस्तित्व में आने के ठीक चार साल बाद 1999 में उनकी पत्नी संगीता अरोड़ा ने सुपरटेक बिल्डर्स एंड प्रमोटर्स प्राइवेट लिमिटेड नाम से कंपनी खोली थी.

वहीं आरके अरोड़ा ने अपने बेटे मोहित अरोड़ा के साथ मिलकर पावर जेनरेशन, डिस्ट्रीब्यूशन और बिलिंग सेक्टर में भी सुपरटेक ऊर्जा एंड पावर प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी बनाई. धीरे धीरे कर आरके अरोड़ा ने अलग अलग सेक्टरों में पांव जमाने के लिए कंपनियां खोली.

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कैसे दिवालिया हुई सुपरटेक?

साल 2022 के मार्च में सुपरटेक कंपनी को नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) ने दिवालिया घोषित कर दिया था. सुपरटेक नाम से कई कंपनी हैं जो आरके अरोड़ा की ही हैं लेकिन यहां जो कंपनी दिवालिया हुई है वह रियल एस्टेट में काम करने वाली सुपरटेक है जिसने ट्विन टावरों का निर्माण किया है.

बता दें कि सुपरटेक पर करीब 432 करोड़ रुपये का कर्ज है. जो कि यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के नेतृत्व में बने बैंक के कंसोशिर्यम से लिया गया था. कर्ज नहीं चुकाने पर यूनियन बैंक ऑफ इंडिया (UBI) ने कंपनी के खिलाफ याचिका दायर की थी. जिसके बाद NCLT ने बैंक की याचिका स्वीकार कर इन्सॉल्वेंसी की प्रक्रिया का आदेश दिया था.

NCLT ने फैसला सुनाते हुए कहा कि, "वित्तीय ऋण के भुगतान में चूक हुई है." इसके साथ ही बेंच ने कहा कि वित्तीय लेनदार यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के साथ-साथ कॉरपोरेट कर्जदार सुपरटेक की ओर से जमा किए गए दस्तावेजों ने पूर्व के इस दावे को 'प्रमाणित' किया है कि एक कर्ज था जिस पर बिल्डर से चूक हुई है.

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