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बंगाल में चुनाव प्रचार पर रोक मोदी की रैलियों के बाद क्यों?

बंगाल में कैंपेनिंग रोकने के चुनाव आयोग के फैसले पर उठने लगे हैं सवाल

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भारत
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बंगाल में वक्त से पहले कैंपेनिंग बंद करने के चुनाव आयोग के फैसले से कई सवाल खड़े हो गए हैं. बुधवार को आयोग ने ऐलान किया कि कैंपेनिंग गुरुवार को दस बजे रात को बंद हो जाएगी. यानी प्रचार खत्म करने की डेडलाइन से 19 घंटे पहले. आखिर आयोग ने यह फैसला किस आधार पर लिया. अपने फैसले को सही ठहराने के लिए उसे इन सवालों का जवाब देना होगा

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बीजेपी और तृणमूल की हिंसा का खामियाजा बाकी पार्टियां क्यों भुगतें ?

चुनाव आयोग ने कहा कि उसने विद्यासागर की मूर्ति तोड़ने की घटना को देखते हुए कैंपेनिंग वक्त से पहले खत्म करने का आदेश दिया है.लेकिन सवाल ये है कि उसने यह सजा सिर्फ तृणमूल और बीजेपी को दी है या फिर सारी पार्टियों को. तृणमूल और बीजेपी को मिली सजा कांग्रेस, कम्यूनिस्ट और दूसरी पार्टियां क्यों भुगतें? उन्हें शुक्रवार शाम पांच बजे तक प्रचार करने की इजाजत क्यों नहीं मिलनी चाहिए?

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गुरुवार रात से ही कैंपेनिंग बंद करने का फैसला क्यों ?

आयोग ने गुरुवार की रात दस बजे से कैंपेनिंग बंद करने का फैसला किया है. आयोग को लग रहा था कि प्रचार बंद नहीं हुआ तो हिंसा भड़क सकती है. अगर उसे ऐसा लग रहा था कि तुरंत प्रचार बंद करने का आदेश क्यों नहीं दिया. वह बुधवार शाम से प्रचार बंद करने का आदेश दे सकता था. इसके लिए गुरुवार के दस बजे रात की डेडलाइन क्यों दी गई. क्या उसे लग रहा था कि गुरुवार को हिंसा नहीं होगी. आयोग के इस फैसले के पीछे कौन सा तर्क था?

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क्या आयोग ने मोदी को रैली करने का मौका दे दिया?

ममता का कहना है कि आयोग ने पीएम मोदी की रैलियों को देखते हुए गुरुवार को दस बजे की डेडलाइन दी ताकि वह बंगाल में इस दिन अपनी दो रैलियां कर लें. शुक्रवार को मोदी की यहां कोई रैली नहीं है. यानी गुरुवार को उनका काम खत्म हो जाएगा. आयोग अपने इस फैसले को कैसे सही ठहराएगा.

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दूसरे राज्यों की हिंसा पर क्यों नहीं लिया गया ऐसा फैसला ?

क्या आयोग का यह फैसला सिर्फ अमित शाह के रोड शो की वजह से है. अगर ऐसा है तो बंगाल और देश के दूसरे इलाकों में हिंसा की इससे बड़ी घटनाओं पर आयोग ने डेडलाइन से पहले कैंपेनिंग रोकने का फैसला क्यों नहीं किया. मसलन ओडिशा में अप्रैल में ईसी के मजिस्ट्रेट पर हमले के आरोप में बीजेडी के एक कैंडिडेट को गिरफ्तार किया गया था. राज्य में बीजेडी और कांग्रेस समर्थकों के बीच हिंसा में 11 लोग घायल हो गए थे. लेकिन ओडिशा में आयोग ने बंगाल जैसा कदम क्यों नहीं उठाया?

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बंगाल में पहले की हिंसा में ऐसा फैसला क्यों नहीं हुआ?

अगर आयोग का फैसला बंगाल में मंगलवार और इससे पहले के फेज के इलेक्शन में हुई हिंसा की घटनाओं को देखते हुए लिया है तो ऐसा क्यों? हिंसा को आधार बना कर पहले भी कैंपेंनिंग रोकने का फैसला किया जा सकता था. आखिरी फेज में कैंपेनिंग छोटा करने का फैसला क्यों किया गया.

चुनाव आयोग ने कहा कि कैंपेनिंग छोटा करने के लिए शायद पहली बार संविधान के अनुच्छेद 324 का सहारा लिया है लेकिन इसने इसके व्यवहार और निष्पक्षता पर सवाल खड़े कर दिए हैं.

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