ADVERTISEMENTREMOVE AD

Himachal Pradesh Chunav 2022: डेटा BJP के पक्ष में, लेकिन कुछ एक्स-फैक्टर भी हैं

Himachal Pradesh Chunav 2022: तीन डाटा पॉइंट्स बीजेपी के पक्ष में हैं जबकि इतिहास कांग्रेस के साथ

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

हिमाचल प्रदेश Himachal Pradesh महज 68 विधानसभा सीटों वाला एक छोटा, लेकिन काफी जटिल राज्य है. यहां चुनावी भविष्यवाणी करना कोई आसान काम नहीं है. हिमाचल प्रदेश की अधिकांश विधानसभा सीटों पर 90 हजार से कम वोटर हैं, वहीं लाहौल और स्पीति जैसी कुछ सीटों पर 30 हजार से भी कम मतदाता हैं. कम वोटर्स यानी कम मार्जिन. कुछ हजार वोट से ही एक सीट का समीकरण बदल सकता है, महज 100 वोटों वाले बागी प्रत्याशी भी बड़ी पार्टियों के बीच जीत और हार के बीच अंतर पैदा कर सकते हैं. .

ADVERTISEMENTREMOVE AD

राज्य की सीमाओं के भीतर कई अलग-अलग भाषाएं और बोलियां बोली जाती हैं. इस कारण यह प्रदेश काफी विविध भी है. हालांकि इस चुनावी राज्य में कुछ व्यापक प्रवृत्तियां हैं जो स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही हैं. आंकड़ों (डेटा), जमीनी इनपुट और थोड़े से इतिहास की मदद से हम उन प्रवृत्तियाें की जांच करेंगे.

आंकड़े बताते हैं कि बीजेपी फायदे में है

लेकिन इस समय इसका यह मतलब नहीं है कि हम बीजेपी की जीत की भविष्यवाणी कर रहे हैं. दरअसल, अगर हम राज्य में सत्ताधारी पार्टियों (सरकारों) को वोट देने के इतिहास पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि सत्ताधारी बीजेपी को चुनाव में कांग्रेस से हार मिल सकती है. लेकिन आंकड़े बताते हैं कि इस चुनाव में बीजेपी को बढ़त मिल रही है. इसके तीन आधार हैं.

1. बीजेपी के पास मजबूत सीटों की संख्या ज्यादा है

पिछले दो विधानसभा चुनावों यानी 2012 और 2017 के आंकड़ों के आधार पर कांग्रेस की तुलना में बीजेपी के पास अधिक मजबूत सीटें हैं. यहां 18 सीटे ऐसी हैं जिन पर बीजेपी का दाेनों चुनावों (2012 और 2017) में कब्जा रहा है, वहीं कांग्रेस के लिए ऐसी सीटों की संख्या 12 है.

हमने अपने विश्लेषण में केवल इन्हीं दो चुनावों (2012 और 2017) को इसलिए लिया है क्योंकि ये चुनाव परिसीमन प्रक्रिया के तहत सीमाओं के पुनर्निर्धारण के बाद हुए थे.

यहां पर इसका यह मतलब भी नहीं है कि अनिवार्य रूप से इन सभी 18 सीटों पर बीजेपी ही या 12 सीटों पर कांग्रेस ही जीत दर्ज करेगी. इनमें से कई सीटों पर मार्जिन बहुत बड़ा नहीं है, ऐसे में इन सीटों पर आसानी से उलटफेर या बदलाव देखा जा सकता है.

लेकिन इससे यह आभास होता है एक ऐसा राज्य जो हर पांच साल में स्विच करने के लिए जाना जाता है, वहां सभी सीटों पर बदलाव या उलटफेर नहीं होता है.

दरअसल, 68 में से 23 निर्वाचन क्षेत्र ऐसे थे जिन्होंने सही मायने में एक ट्रेंड के संकेत के तौर पर काम किया, ये 2012 में कांग्रेस और 2017 में बीजेपी के साथ गए थे.

2. बीजेपी ने हिमाचल प्रदेश में पिछले 6 में से 5 चुनावों में बढ़त बनाई है

वाकई में हिमाचल प्रदेश की चुनावी राजनीति पर बीजेपी ने पिछले 15 वर्षों में अपना दबदबा बढ़ाया है.

2007 के बाद से हुए छह चुनावों (तीन विधानसभा और तीन लोकसभा) में से बीजेपी ने कांग्रेस पर पांच चुनावों में बढ़त बनाई थी. एकमात्र 2012 का विधानसभा चुनाव अपवाद रहा था.

पिछले तीन चुनावों (खासकर लोकसभा चुनावों) से हिमाचल प्रदेश बीजेपी के पक्ष में निर्णायक रूप से मतदान कर रहा है. वाकई में, लोकसभा स्तर पर बीजेपी अपनी पकड़ लगातार मजबूत करती जा रही है.

3. राज्य में लोकप्रिय हैं पीएम मोदी

सीवोटर के प्री-पोल सर्वे के अनुसार, 64.3 फीसदी लोगों ने पीएम के प्रदर्शन को "अच्छा" बताया है, जबकि केवल 19.4 फीसदी ने इसे "खराब" बताया.

स्वाभाविक तौर पर बीजेपी यह उम्मीद कर रही है कि जिस तरह से 'मोदी फैक्टर' की वजह से उसने 2022 में पड़ोसी राज्य उत्तराखंड़ में परिणाम हासिल किया था, उसी तरह से उसे यहां भी बढ़त मिलेगी. इसमें कोई शक नहीं है कि राज्य के चुनावों में 'मोदी फैक्टर' का असमान प्रभाव पड़ा है. लोकसभा चुनावों की तुलना में विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने कई राज्यों में वोट शेयर में भारी गिरावट देखी है. हाल के दिनों में हरियाणा, झारखंड, दिल्ली, बिहार, पश्चिम बंगाल के चुनाव इसके सटीक उदाहरण हैं.

हालांकि, बीजेपी को उम्मीद होगी कि कम से कम पीएम की लोकप्रियता से उसे कुछ ऐसे नुकसानों को कम करने में मदद मिलेगी, जिसका सामना उसे सत्ता विरोधी लहर के कारण करना पड़ रहा है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

तो क्या गलत हो सकता?

एक ओर यह सच है कि पीएम मोदी राज्य में लोकप्रिय हैं, वहीं दूसरी ओर यही बात मौजूदा सीएम जय राम ठाकुर के बारे में नहीं कही जा सकती है.

सीवोटर सर्वे के अनुसार, 37.6 फीसदी लोगों ने सीएम जय राम ठाकुर के प्रदर्शन को 'अच्छा' और 33.7 फीसदी ने 'खराब' बताया है.

पिछले साल हुए उपचुनावों में कांग्रेस के हाथों बीजेपी को मिली शिकस्त राज्य सरकार के खिलाफ असंतोष का स्पष्ट संकेत थी.

जब हमने पूरे राज्य की यात्रा की तब हमने पाया कि कई जगहों पर लोग राज्य सरकार से नाखुश थे, लेकिन उन्होंने कहा कि वे अभी भी राष्ट्रीय स्तर पर पीएम मोदी का समर्थन करेंगे.

कुछ क्षेत्रों जैसे हरोली, ऊना, डलहौजी में कई लोगों ने कहा कि वे स्थानीय स्तर पर कांग्रेस से काफी संतुष्ट हैं, जबकि अभी भी राष्ट्रीय स्तर पर मोदी का समर्थन कर रहे हैं.

हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में कई लोकल फैक्टर भी 'मोदी फैक्टर' को हावी होने से रोक रहे हैं :

  • पुरानी पेंशन योजना के लागू नहीं होने से सरकारी कर्मचारियों (राज्य में एक बड़ा मतदाता वर्ग) को काफी परेशानी हो रही है.

  • कोविड से संबंधित पर्यटन में गिरावट के परिणामस्वरूप बेरोजगारी और आय के स्तर में गिरावट.

  • आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतें.

  • सेब उत्पादकों के लिए अपर्याप्त रिटर्न.

  • कुछ इलाकों में पानी की आपूर्ति में समस्या है.

  • सड़कों का रखरखाव

समस्याएं इस व्यापक नैरेटिव का भी समर्थन कर रही हैं कि एक अच्छी व्यक्तिगत छवि होने के बावजूद किए गए काम के मामले में यह सीएम जय राम ठाकुर का एक कमजोर और सुस्त कार्यकाल था.

यहां तक कि उनके गृह जिला मंडी में भी कई लोगों ने शिकायत की कि अधिकांश विकास कार्य उनके अपने निर्वाचन क्षेत्र सेराज में पूरी तरह से केंद्रित थे.

हालांकि इस बात काे स्वीकार किया जाना चाहिए कि कई घोषणाओं की वजह से पिछले कुछ महीनों में सीएम जय राम ठाकुर की छवि में सुधार हुआ है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

दो एक्स-फैक्टर

इन चुनावों में दो प्रमुख एक्स-फैक्टर हैं.

पहला, बागी फैक्टर. बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टियां अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों पर बागियों का सामना कर रही हैं.

दोनों पार्टियों ने विभिन्न स्तरों की सफलता के साथ, क्षति को सीमित करने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए हैं.

हो सकता है कि कांग्रेस ने कई लोगों की अपेक्षा से बेहतर अपने आंतरिक संघर्ष को संभाला हो.

दूसरा, आम आदमी पार्टी. पंजाब में AAP की भारी जीत के बाद ऐसा लग रहा था कि यह पार्टी पड़ोसी राज्य हिमाचल में बड़ी सफलता हासिल करेगी. लेकिन तब से, इसके लिए बहुत कुछ गलत हो गया है, जिसमें पंजाब में सिद्धू मूस वाला की हत्या से लेकर हिमाचल प्रदेश के प्रभारी सत्येंद्र जैन की गिरफ्तारी शामिल है.

अब तो आम आदमी पार्टी के अंदरूनी सूत्र भी कह रहे हैं कि उन्हें हिमाचल से ज्यादा गुजरात से उम्मीदें हैं. हालांकि, भले ही चुनाव में AAP को 5-6 प्रतिशत वोट हासिल हों, लेकिन यह वोट कई निर्वाचन क्षेत्रों में समीकरण बदल सकते हैं.

आखिर में एक बात कहूं तो वह यह है कि हिमाचल प्रदेश के इस चुनाव को आसान नहीं कहा जा सकता है. राज्य का इतिहास, जो बीजेपी और कांग्रेस के बीच बारी-बारी से रहा है, बाद के पक्ष में हो सकता है. वहीं दूसरी तरफ, जैसा कि हमने पहले दिखाया, गणित बीजेपी के पक्ष में हो सकता है.

अंत में, 68 में से प्रत्येक सीट में चुनावी लड़ाई स्थानीय स्तर के फैक्टर पर आ सकती है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×