"जुड़ेगा भारत, जीतेगा इंडिया".
ये इंडिया गठबंधन (INDIA Alliance) का टैग लाइन है. लेकिन भारत जोड़ने की बात कहने वाली इंडिया गठबंधन में ही दरा पड़ गई. ये हम नहीं कह रहे हैं, सीट शेयरिंग को लेकर विपक्षी गठबंधन में चल रही खींचतान इस ओर इशारा कर रही है. चुनाव से पहले कई सहयोगी हाथ खींच चुके हैं, तो कई आंखें तरेर रहे हैं. एक तरफ बीजेपी 400 से ज्यादा उम्मीदवार उतार चुकी है तो दूसरी तरफ कांग्रेस ने अबतक सिर्फ 208 प्रत्याशियों का ऐलान किया है. झारखंड और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में स्थिति साफ नहीं है.
ऐसे में लोगों के मन में सवाल है कि क्या लोकसभा चुनाव से पहले ही इंडिया गठबंधन खत्म हो चुका है? क्या चुनाव से पहले ही भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाली NDA गठबंधन को बढ़त मिल गई है? क्या 'इंडिया' के आने से थर्ड फ्रंट की गुंजाइश भी खत्म हो गई?
'INDIA' में सीट शेयरिंग पर खींचतान
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी (BJP) को लगातार तीसरी बार सत्ता में आने से रोकने के लिए विपक्षी पार्टियों ने एक साथ हाथ मिलाया. 2023 में देश की 26 विपक्षी पार्टियों ने मिलकर इंडिया ब्लॉक बनाया. वर्तमान में गठबंधन का नेतृत्व मल्लिकार्जुन खड़गे कर रहे हैं जो 2022 से कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष भी हैं.
‘इंडिया’ गठबंधन का फुलफॉर्म- ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इनक्लूसिव एलायंस’ है.
इंडिया गठबंधन के प्रमुख दलों में कांग्रेस के साथ अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (TMC), आम आदमी पार्टी (AAP), समाजवादी पार्टी, शिव सेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और राष्ट्रीय जनता दल शामिल है.
एक तरफ प्रधानमंत्री मोदी ने NDA गठबंधन के लिए अबकी बार 400 पार का नारा दिया है. दूसरी तरफ INDIA गठबंधन में सीट शेयरिंग को लेकर खींचतान देखने को मिली है.
बिहार में खींचतान के बाद सीट बंटवारा, लेकिन कई नेता नाराज
लंबी चर्चा के बाद आखिरकार बिहार में इंडिया गठबंधन के तहत सीट शेयरिंग का ऐलान हुआ. कांग्रेस 9 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी, जबकि वाम दलों को पांच सीटें दी गई हैं. सबसे ज्यादा 26 सीटें आरजेडी को मिली हैं.
अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय करने वाले पप्पू यादव को बड़ा झटका लगा है. पप्पू यादव लगातार पूर्णीया सीट पर अपना दावा कर रहे थे, लेकिन बंटवारे में पूर्णिया सीट आरजेडी के हिस्से में आई है. आरजेडी ने गठबंधन में सीट शेयरिंग के ऐलान से पहले ही जेडीयू से आई बीमा भारती को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया था.
हालांकि अभी भी पूर्णिया सीट से दावेदारी कर रहे पप्पू यादव पीछे हटने को तैयार नहीं दिख रहे हैं. उन्होंने सीट शेयरिंग के ऐलान से पहले एक्स पर पोस्ट किया, "सीमांचल कोसी जीतकर देश में कांग्रेस सरकार बनाएंगे. पूर्णिया में कांग्रेस का झंडा लहराएंगे. राहुल गांधी जी को प्रधानमंत्री बनाएंगे."
इतना ही नहीं सुपौल और मधेपुरा सीट भी आरजेडी के खाते में गई हैं, जहां से पप्पू यादव या उनकी पत्नी चुनाव लड़ चुकी हैं.
कन्हैया कुमार अब क्या करेंगे?
दूसरी तरफ लेफ्ट छोड़ कांग्रेस का हाथ थामने वाले युवा नेता कन्हैया कुमार को भी झटका लगा है. बेगूसराय सीट सीपीआई के हिस्से में गई है. बता दें कि 2019 में कन्हैया कुमार ने यहीं से सीपीआई के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा था. जिसमें उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा था. वहीं औरंगाबाद सीट भी RJD ने अपने पाले में ले लिया है.
"यह साफ-साफ दिखाई दे रहा है कि RJD ने कांग्रेस को पूरी तरह से बैकफुट पर धकेल दिया है. इसे RJD या फिर लालू की मनमानी कह लीजिए, ये सब इसलिए हो रहा क्योंकि तेजस्वी को आगे करना है."रवि उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार
महाराष्ट्र में भी सीट शेयरिंग में उलझन
महाराष्ट्र में सीट शेयरिंग के ऐलान से पहले ही शिवसेना (UBT) ने अपने 17 प्रत्याशियों की लिस्ट जारी कर दी. संजय राउत ने कहा कि उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली पार्टी आम चुनाव में कुल 22 सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही है. जिसके बाद कांग्रेस और घटक दलों में नाराजगी बढ़ गई है. MVA नेताओं का कहना है कि गठबंधन धर्म नहीं निभाया जा रहा है.
"शिवसेना ने कांग्रेस पार्टी को दबाने की कोशिश की है, कांग्रेस पार्टी को हमेशा के लिए मुंबई से खत्म करने का षड्यंत्र हो रहा है. कांग्रेस नेतृत्व को एक स्टैंड लेना पड़ेगा. अगर कांग्रेस को बचाना है तो दो ही विकल्प है- पहला हम गठबंधन तोड़ दें और दूसरा हम फ्रेंडली फाइट करें."संजय निरुपम, कांग्रेस नेता
वहीं प्रकाश अंबेडकर की पार्टी ने 9 सीटों पर अपने कैंडिडेट तय कर दिए हैं. इनके अलावा स्वाभिमानी शेतकरी संगठन के अध्यक्ष पूर्व सांसद राजू शेट्टी ने MVA के साथ गठबंधन करने से इनकार कर दिया है.
क्या INDIA गठबंधन खत्म हो चुका है?
ये सवाल इसलिए है क्योंकि सीट शेयरिंग तो दूर, विपक्षी पार्टियों में दरार शुरू से ही दिखने लगी थी. INDIA गुट की नींव रखने वालों में से एक नीतीश कुमार ने पाला बदला और एनडीए में शामिल हो गए.
वहीं INDIA गठबंधन के तहत आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच दिल्ली, गुजरात सहित 4 राज्यों और 1 केंद्र शासित प्रदेश में कुल 46 सीटों पर गठबंधन हुआ है. हालांकि, AAP ने पंजाब में अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया है.
दूसरी तरफ ममता बनर्जी ने कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों को ना कहते हुए पश्चिम बंगाल में एकला चलो की नीति अपनाई. ऐसा ही हाल केरल में भी दिख रहा जहां कांग्रेस अकेली नजर आ रही है.
यूपी में पहले तकरार, फिर प्यार...
देखा जाए तो उत्तर प्रदेश में गठबंधन की थोड़ी लाज बची. कई दौर की वार्ता के बाद समाजवादी पार्टी कांग्रेस को 17 सीट देने पर राजी हुई है. बता दें कि गठबंधन के ऐलान से पहले ही अखिलेश यादव ने कई सीटों पर अपने उम्मीदवारों का ऐलान भी कर दिया था.
इन सब बातों को देखकर लगता है कि चुनाव से पहले क्षेत्रीय पार्टियों के गढ़ में इंडिया अलायंस हवा होता नजर आ रहा.
क्विंट हिंदी से बातचीत में राजनीतिक विश्लेषक सायंतन घोष कहते हैं, "2023 में जब ये इंडिया गठबंधन बना था, तब जो गठबंधन का रूप था और आज गठबंधन जहां पर है, ये दोनों परिस्थिति बहुत अलग है." इसके साथ ही वो कहते हैं,
"किसी-किसी जगह पर स्टेट सेंट्रिक सीट शेयरिंग जरूर है. लेकिन मेरे हिसाब से 'महागठबंधन' की जो अवधारणा है, उसके हिसाब से हर विपक्षी दल एक साथ आएगा और वन-टू-वन चुनाव होंगे. या तो मैं बीजेपी को वोट दूंगा या फिर मैं विपक्ष को वोट दूंगा. लेकिन ये स्थिति अब नहीं है."
इसको हम पश्चिम बंगाल के संदर्भ से समझ सकते हैं. यहां ममता बनर्जी ने अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. वहीं कांग्रेस और लेफ्ट गठबंधन में है. बता दें कि तीनों पार्टियां इंडिया गठबंधन का हिस्सा हैं. ऐसे में वोट बंटने से फायदा बीजेपी को हो सकता है.
वरिष्ठ पत्रकार आरती जेरथ ऐसा नहीं मानती हैं. उनका कहना है, "PM मोदी का मुकाबला करने के लिए इंडिया गठबंधन के पास कोई चेहरा नहीं है. अगर वो नेशनल लेवल पर वन-टू-वन करते, जैसा वो पहले ऐलान कर रहे थे. इसके लिए उन्हें एक चेहरा चाहिए था, लेकिन ऐसा कोई चेहरा नहीं है. ऐसे में इंडिया गठबंधन चाहती है कि राष्ट्रीय स्तर पर चुनाव न होकर राज्य स्तर पर चुनाव हो."
"राष्ट्रीय स्तर पर कोई चेहरा नहीं है, न ही उनके पास कोई बड़ा नारा है और न ही राष्ट्रीय स्तर पर कुछ कहने को है. लेकिन राज्यवार कई जगहों पर मजबूत क्षेत्रीय नेता हैं. ऐसे में उनकी कोशिश है कि राज्यवार मुकाबला हो. जहां वो राष्ट्रीय मुद्दों की जगह क्षेत्रीय मुद्दा उठाएंगे. 2004 की पुनरावृत्ति करने की कोशिश हो रही है."
क्या कांग्रेस कमजोर कड़ी?
सीट शेयरिंग को लेकर पेंच की बड़ी वजह कांग्रेस मानी जा रही है. जानकारों का मानना है कि राष्ट्रीय पार्टी होने के बावजूद कांग्रेस का जनाधार घटा है. लोकसभा चुनाव से पहले पिछले साल तीन राज्यों- मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा. ऐसे में क्षेत्रीय दल कांग्रेस को ज्यादा सीटें नहीं देना चाहती हैं.
इन राज्यों में अब तक हुआ गठबंधन:
दिल्ली: AAP 4, कांग्रेस 3
गुजरात: कांग्रेस 24, AAP 2
हरियाणा: कांग्रेस 9, AAP 1
गोवा: कांग्रेस दोनों सीटों पर चुनाव लड़ेगी
चंडीगढ़ (1 सीट): कांग्रेस लड़ेगी चुनाव
उत्तर प्रदेश: कांग्रेस 17 और SP सहित अन्य 63 सीटों पर
तमिलनाडु: 10 सीट (पुडुचेरी के सहित) पर कांग्रेस 22 सीट पर DMK
बिहार: कांग्रेस 9, RJD 26 और लेफ्ट को 5 सीट
इन राज्यों में खींचतान जारी:
झारखंड
महाराष्ट्र
इन राज्यों में नहीं बनी बात:
पंजाब में AAP अकेले लड़ेगी चुनाव
पश्चिम बंगाल में TMC ने नहीं दी सीट
केरल में लेफ्ट से गठबंधन नहीं
"क्षेत्रीय नेता अपने-अपने राज्यों में बेहद मजबूत हैं. सबसे कमजोर कड़ी कांग्रेस है. दक्षिण भारत के अलावा वो उत्तर भारत में बीजेपी का मुकाबला ही नहीं कर सकती. बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र में वो जूनियर पार्टनर है. कोई जड़ नहीं है, कोई ताकत नहीं है, कोई संगठन नहीं है. इसलिए नेशनल परिपेक्ष में वो कमजोर पड़ जाती है. ऐसे में क्षेत्रीय दल चाहेंगे की ये राष्ट्रीय स्तर पर चुनाव न होकर लोकल चुनाव रहे, जहां उन्हें फायदा मिल सके."आरती जेरथ, वरिष्ठ पत्रकार
चुनाव से पहले बिखराव
एक तरफ सीट शेयरिंग का टंटा है तो दूसरी तरफ INDIA गठबंधन में लगातार बिखराव देखने को मिल रहा है. विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस साल जनवरी में INDIA छोड़कर NDA में शामिल हो गए हैं. दूसरा झटका उत्तर प्रदेश में RLD के रूप में लगा. जयंत चौधरी ने भी बीजेपी से हाथ मिला लिया है. महाराष्ट्र में अब प्रकाश अंबेडकर की वंचित बहुजन आघाड़ी ने अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. वहीं पूर्व सांसद राजू शेट्टी ने गठबंधन करने से इनकार कर दिया है.
राजनीतिक विश्लेषक सायंतन घोष कहते हैं,
"राष्ट्रीय स्तर पर INDIA गठबंधन का अस्तित्व नहीं बचा है. हर क्षेत्रीय दल का अपना राजनीतिक ऐजेंडा है. बीजेपी के प्रेसर की वजह से सभी क्षेत्रीय दल अपनी स्थिति मजबूत करने में जुटे हैं. ऐसे में उन्हें समझ में ही नहीं आ रहा है कि गठबंधन उनकी प्राथमिकता है या अपने उद्देश्यों की पूर्ति उनकी प्राथमिकता है."
हालांकि, आरती जेरथ का मानना है कि कई राज्यों में भले ही सीट शेयरिंग पर बात नहीं बनी है लेकिन पार्टियां अभी भी इंडिया गठबंधन का हिस्सा हैं. "ममता बनर्जी ने कोई सीट एडजस्टमेंट नहीं किया लेकिन उन्होंने इंडिया गठबंधन को छोड़ा नहीं है. उनकी मेंबरशिप तो अभी भी है."
क्या थर्ड फ्रंट की संभावनाएं खत्म?
क्या INDIA गठबंधन के गठन से इस बार के चुनावों में थर्ड फ्रंट की संभावनाएं खत्म हो गई हैं? इस सवाल के जवाब में सायंतन घोष कहते हैं, "भारत में ऐसी परिस्थिति में थर्ड फ्रंट नहीं बन सकता है."
"इंदिरा गांधी के बाद लोगों के मन में ये बैठ चुका था कि सरकार गठबंधन करके ही बनती है. इस वजह से 2004 तक हमने कई प्रधानमंत्री देखे. पिछले एक दशक में बीजेपी ने जनता को स्थिर सरकार का विकल्प दिया है. लोगों को पता चल गया है कि बहुमत की सरकार क्या होती है. ऐसे में खंडित विकल्प नहीं हो सकता."
1989–1991 के बीच नेशनल फ्रंट, इसके बाद 1996-98 के बीच यूनाइटेड फ्रंट देखने को मिला. 2009 के चुनाव में CPI (M) ने तीसरे मोर्चे के गठन का नेतृत्व किया. 2009 के चुनाव से पहले नए गठबंधन के पास 109 सीटें थीं, लेकिन उस चुनाव में उसे केवल 82 सीटें मिलीं. 2014 और 2019 में भी थर्ड फ्रंट की हल्की झलक देखने को मिली, लेकिन बात नहीं बन सकी.
2019 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले तेलंगाना राष्ट्र समिति (अब BRS) सुप्रीमो के.चंद्रशेखर राव ने गैर-कांग्रेस और गैर-भारतीय जनता पार्टी गठबंधन बनाने की कोशिश की थी. इसे फेडरल फ्रंट कहा गया. हालांकि, ये फ्रंट मूर्त रूप नहीं ले सकी.
क्या बीजेपी के पास बढ़त है?
बीजेपी ने करीब सभी उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है. पार्टी ने इसके साथ ही स्टार प्रचारकों की सूची भी जारी कर दी है. जानकारों की मानें तो लोकसभा चुनाव के लिए वोटिंग से पहले बीजेपी इंडिया गठबंधन के मुकाबले बहुत आगे दिख रही है.
दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के जेल जाने से भी इंडिया गठबंधन को झटका लगा है.
जानकारों की मानें तो बीजेपी को टक्कर देने के लिए अभी तक इंडिया गठबंधन के पास कोई पुख्ता रोडमैप नहीं है. राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा में विपक्ष के कई नेता शामिल हुए, लेकिन कइयों की अनुपस्थिति ने सवाल भी खड़े किए.
वरिष्ठ पत्रकार आरती जेरथ कहती हैं,
"सबसे बड़ी बात है कि जनता क्या चाहती है? जनता आज के समय में चुप है. हम अभी बीजेपी का प्रचार सुन रहे हैं. जनता क्या सोचती है, ये हम अभी जान नहीं पा रहे हैं क्योंकि जनता अभी चुप है. जब EVM खुलेगा को ही जनता का मूड पता चलेगा और कभी-कभी जनता सरप्राइज भी करती है."
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