तेजस्वी वाले गठबंधन का सीएम बनते ही नीतीश ने क्या-क्या कहा है, पहले ये जानिए
नीतीश कुमार ने विपक्ष से बीजेपी के खिलाफ एकजुटता का आह्वान किया है.
नीतीश कुमार ने कहा कि क्या जो लोग 2014 में सत्ता में आए हैं वो 2024 में भी जीतेंगे?
नीतीश कुमार ने कहा कि कुछ लोगों को लगता है कि विपक्ष खत्म हो जाएगा तो मैं विपक्ष में आ गया हूं,खूब मेहनत करूंगा.
नीतीश कुमार ने कहा कि अटल आडवाणी का प्यार कभी भूल नहीं सकता.
दो दिन में नीतीश के दो प्रहार
ऐसा लगता है कि नीतीश पूरा मन बनाकर बीजेपी से अलग हुए हैं. वो अटल की तारीफ कर सीधे मोदी पर निशाना साध रहे हैं. उन्होंने 2022 में ही 2024 के युद्ध का ऐलान कर दिया है और विपक्ष को हवा दे दी है कि वो विपक्ष का चेहरा बनने को तैयार हैं. विपक्ष की पिक्चर में लीड रोल के लिए ममता भी बेताब हैं लेकिन उनकी वैसी अपील नहीं है, जैसी नीतीश की है. वैसे भी दिल्ली दरबार का रास्ता हिंदी बेल्ट से होकर गुजरता है. शरद पवार खास रुचि नहीं दिखा रहे. लिहाजा एकजुट विपक्ष के लिए नीतीश की पुकार मायने रखती है. खबरें चल रही हैं कि नीतीश ने एनडीए सरकार गिराने से पहले सोनिया गांधी से भी बात की थी.
जेपी नड्डा ने कहा था कि क्षेत्रिय पार्टियां खत्म हो जाएंगी, इसपर तंज कसते हुए नीतीश बोले कि अब मैं विपक्ष में आ गया हूं, मेहनत करूंगा. उन्होंने 2024 में बीजेपी सत्ता में आएगी या नहीं, ये सवाल उठाकर बीजेपी को चुनौती दी नहीं, चुनौती ली है. और ये चुनौती है विपक्ष को एकजुट करने की. इसी एकजुट विपक्ष को लीड करने की चाहत नीतीश रखते हैं. उनकी ये महत्वाकांक्षा पहले भी थी लेकिन एनडीए में जाने के बाद अरमान दबाने पड़े. अब विपक्ष में लौटते ही अरमान जागे हैं.
संदेश सीधा है - वो मोदी नहीं तो कौन का जवाब देने के लिए अपने नाम का प्रस्ताव पेश कर रहे हैं. इसके दो मायने हैं.
1. देश के लिए - 2024 लोकसभा चुनावों में अगर विपक्ष को बीजेपी को चुनौती देनी है तो एकजुट होना होगा और अपने छोटे-मोटे गिले शिकवे और तुच्छ एजेंडों से ऊपर उठना होगा. इसके साथ ही उन्हें एक चेहरा चाहिए होगा. अभी के हालात में इस चेहरे के लिए नीतीश के नाम से बेहतर कोई नहीं.
लेकिन दिक्कत भी हैं.
पहली, नीतीश इतनी बार पाला बदल चुके हैं कि विपक्ष उनके नेतृत्व में 2024 के समर में उतरने से पहले कई बार सोचेगा. क्या होगा अगर बीच रास्ते में उन्होंने साथ छोड़ दिया? फिलहाल विपक्ष के नेता बड़ी हसरत भरी नजरों से बिहार में बदलाव को देख रहे हैं.
तमिलनाडु के सीएम स्टालिन ने ट्वीट किया है कि बिहार में नीतीश का तेजस्वी के साथ आना देश की सेक्यूलर और लोकतांत्रिक ताकतों को साथ लाने की दिशा में सही समय में लिया गया फैसला है.
अखिलेश यादव ने कहा है कि बिहार से नारा मिला है 'बीजेपी भगाओ', और प्रदेशों में भी ये काम होगा.
शरद पवार ने भी नीतीश कुमार को बीजेपी से अलग होने की समझदारी दिखाने के लिए बधाई दी है. उन्होंने कहा बीजेपी नीतीश की चाहे जितनी आलोचना कर लें लेकिन उन्होंने सही कदम उठाया है.
दूसरी बात, नीतीश-कांग्रेस के लिए सबको साथ लाना मुश्किल होगा. इन छोटी पार्टियों के अपने एजेंडे हैं, अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं. ऊपर से ED-CBI की ऐसी दहशत है कि सौ बार सोचना पड़ता है.
2. बिहार के लिए- नीतीश का इस अंदाज में बीजेपी के खिलाफ मुखर हो जाना बताता है कि बिहार की राजनीति में बुनियादी परिवर्तन आने वाले हैं. महागठबंधन का सॉलिड जनाधार है. महागठबंधन में नीतीश के बाद सेकंड लाइन भी तैयार है. अगर नीतीश राष्ट्रीय मिशन पर निकलते हैं तो तेजस्वी बिहार की बागडोर संभालेंगे. उधर बीजेपी के पास कोई मुकम्मल बिहारी चेहरा नहीं है. नित्यानंद से लेकर गिरिराज तक केंद्र में बैठे हैं और वो जमीन पर धाक के लिए नहीं जुबानी धमाके के लिए जाने जाते हैं. एक अर्से तक बिहार में बीजेपी का चेहरा रहे सुशील मोदी साइडलाइन किए जा चुके हैं. अचंभे की बात नहीं कि नीतीश के पाला बदलते ही सुशील मोदी सक्रिय हो गए. पार्टी ने उन्हें फिर आगे किया भी तो वो क्या कमाल कर पाएंगे, कह नहीं सकते. और ये तो साफ है कि सिर्फ 'मोदी हैं तो मुमकिन है' के भरोसे बिहार में कामयाबी नामुमकिन है.
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