फिल्म दबंग में एक सीन है. चुलबुल पांडे अपने भाई की बेइज्जती करता है. उससे माफी मांगने के लिए कहा जाता है. चुलबुल माफी मांगता है और एक थप्पड़ और जड़ देता है. फिर से कहता है सॉरी. राजस्थान में विधायकों की बगावत के बाद गहलोत की सॉरी सुनकर पता नहीं क्यों फिल्म का ये सीन याद आ गया.
जाहिर है ये दोनों अलग-अलग बातें हैं. चलिए राजस्थान और कांग्रेस में क्या हुआ है ये जानते हैं और जो हुआ है उसका मतलब समझते हैं.
गहलोत का माफीनामा
अशोक गहलोत ने अपने माफीना में कहा है -
पिछले 50 साल में कांग्रेस परिवार ने इंदिरा के समय से ही मुझ पर विश्वास किया. मैं पीसीसी चेयरमैन रहा, एआईसीसी का महामंत्री रहा और अब सोनिया जी के आशीर्वाद से तीसरी बार मुख्यमंत्री बना हूं. जो घटना 2 दिन पहले हुई उसके लिए मैंने सोनिया जी से माफी मांगी है. हमेशा से हमारे यहां एक लाइन का फैसला होता है. मेरे मुख्यमंत्री होने के बावजूद पहली बार जो हुआ वो परंपरा के अंतर्गत नहीं हो पाया जिसका दुख मुझे जिंदगी भर रहेगा.
माफीनामा के अलावा जब गहलोत से पूछा कि गया कि सीएम कौन होगा तो उन्होंने कहा - ये सोनिया गांधी तय करेंगी.
अशोक गहलोत जो चाहते थे वही हुआ?
गहलोत भले माफी मांग रहे हैं, भले ही कह रहे हैं कि उन्हें जो हुआ उसके लिए अफसोस है लेकिन असल में राजस्थान में वही हो रहा है जो वो चाहते थे. दरअसल गहलोत ने पार्टी के पास कोई चारा ही नहीं छोड़ा. वो जीतते तो भी जीतते और हारते तो भी जीतते.
अशोक गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष नहीं बनना चाहते थे, इस पूरे एपिसोड से वो सुनिश्चित हुआ. अब खुद बाहर आकर उन्होंने कह दिया. और थरूर के सामने दिग्विजय सिंह अब दिख रहे हैं.
अशोक गहलोत राजस्थान में सीएम बने रहना चाहते थे. भले ही अशोक गहलोत ने बाहर आकर ये कहा कि- सीएम का फैसला सोनिया करेंगी, लेकिन अगर सोनिया ने गहलोत के खिलाफ कोई फैसला किया तो उन्हें 92 विधायकों का इस्तीफा जरूर याद आएगा.
अशोक गहलोत और सचिन पायलट के संबंध किसी से छिपे नहीं हैं. अशोक गहलोत किसी भी हाल में सचिन पायलट को सीएम की कुर्सी से दूर रखना चाहते थे. तो अब ये खुली किताब की तरह है कि अगर दिल्ली ने जयपुर में पायलट का प्लेन टेकऑफ कराने की कोशिश की तो विधानसभा पहुंचने से पहले फ्यूल खत्म होना तय है.
ये भी गौर कीजिएगा कि इस तरह कोई सीनियर माफी मांगता है तो ये पार्टी के अंदर की बात होती है लेकिन गहलोत का माफीनामा तुरंत मीडिया के पास पहुंच गया. अगर इसके पीछे गहलोत का ही हाथ है तो वो दिखाना चाहते हैं कि देखिए गलती नहीं होने के बावजूद मैंने माफी मांग ली है. उनका ये बयान भी काफी गूढ़ है कि पार्टी में एक लाइन का फैसला होता है. क्या गहलोत ऐसा कहकर आलाकमान पर हमला तो नहीं कर रहे, ये भी सवाल रहेगा.
वैसे नए नेताओं को गहलोत जैसे पुराने खिलाड़ी से ये सियासी खेल सीखना चाहिए. कोई और होता तो सोनिया से बातचीत के बारे में पूछने पर ये कहकर निकल जाता कि ये पार्टी का अंदरूनी मामला है, लेकिन ऑन कैमरा माफी मांगकर उन्होंने अपना कद बढ़ाया ही है. और ऐसा करके उन्होंने बगावत के बावजूद आलाकमान को सख्ती न करने की गुंजाइश दे दी है
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)