अयोध्या राम मंदिर के लिए जमीन खरीदने में घोटाले (Ram temple scam) के आरोपों ने अब शब्दों के विकराल युद्ध का रूप ले लिया है, जिसमें विपक्षी दलों ने सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (BJP) के साथ-साथ मंदिर ट्रस्ट पर भी सीधा निशाना साधा है.विश्व हिंदू परिषद (VHP) के नेता और श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के जेनेरल सेक्रेटरी चंपत राय के द्वारा मामले पर स्पष्टीकरण के बावजूद लेन-देन से जुड़े कई प्रश्न अभी भी मौजूद हैं और उन्होनें विपक्ष को अटैक मोड में आने का मौका दे दिया है.
इस आर्टिकल में हम इन बातों पर विचार करने की कोशिश करेंगे-
क्या जांच का आदेश दिया गया है?
किन पहलुओं पर जांच होनी चाहिए?
पूरे मुद्दे का राजनैतिक प्रभाव क्या होगा?
क्या जांच का आदेश दिया गया है?
18 मार्च को हुए जमीन से जुड़े लेनदेन को लेकर यूपी के हर बड़े विपक्षी दल ने जांच की मांग की है. इस लेनदेन में राम मंदिर ट्रस्ट ने 1.2 हेक्टेयर जमीन को रवि मोहन तिवारी और सुल्तान अंसारी से 18.5 करोड़ों रुपए में खरीदा, जबकि इन्हीं दोनों लोगों ने उसी जमीन को उस सौदे से 10 मिनट पहले कुसुम और हरीश पाठक से 2 करोड रुपए में खरीदा था.
मंदिर के ट्रस्टी अनिल मिश्रा और अयोध्या के मेयर ऋषिकेश उपाध्याय इस सौदे में गवाह के तौर पर मौजूद थे.
विपक्ष ने आरोप लगाया है कि मंदिर ट्रस्ट ने उस जमीन को बहुत ज्यादा दाम देकर खरीदा है और इस तरह मंदिर निर्माण के लिए चंदा देने वाले श्रद्धालुओं के साथ धोखा किया गया है. जबकि दूसरी तरफ मंदिर ट्रस्ट का स्टैंड है कि कुसुम और हरीश पाठक ने 2011 में ही अपने जमीन को बेचने के लिए एग्रीमेंट कर लिया था.
मंदिर ट्रस्ट ने जांच की मांग को नकार दिया है और उत्तर प्रदेश सरकार भी विपक्ष द्वारा जांच की मांग को मानने से इंकार कर रही है.
किन पहलुओं पर जांच होनी चाहिए?
मंदिर ट्रस्ट का दावा है कि कुसुम और हरीश पाठक ने उस जमीन के प्लॉट के लिए 2011 से अब तक कई बार अलग-अलग बैनामों पर दस्तखत किया था और उन्हीं में से किसी एक एग्रीमेंट का नतीजा था कि सुल्तान अंसारी और रवि मोहन तिवारी ने इसे 2 करोड़ रुपए में खरीदा.
लेकिन इन पहलुओं की जांच होनी चाहिए-
क्या जमीन की बिक्री मंदिर द्वारा किए गए दावें के अनुसार पूर्व एग्रीमेंट का परिणाम था या आप नेता संजय सिंह के दावे के अनुसार एग्रीमेंट रद्द कर दिया गया था?
अगर एग्रीमेंट वास्तव में 2011 का था फिर कुसुम और हरीश पाठक उस जमीन को 2021 में 2 करोड़ में क्यों बेचेंगे, जबकि आज उस जमीन का मार्केट रेट स्पष्ट रूप से बहुत अधिक है?
जमीन पर पिछले एग्रीमेंट में से एक में सुल्तान अंसारी के साथ-साथ उनके पिता भी शामिल थे लेकिन किसी भी एग्रीमेंट में रवि मोहन तिवारी का नाम नहीं है. तो क्या 18 मार्च को की गई लेनदेन को पुराने एग्रीमेंट का नतीजा माना जा सकता है?
18 मार्च को हुए दोनों खरीद के गवाह मंदिर के ट्रस्टी अनिल मिश्रा और अयोध्या के मेयर ऋषिकेश उपाध्याय थे. क्या उन्होंने यह वेरीफाई किया कि जमीन की बिक्री वास्तव में पिछले एग्रीमेंट का परिणाम है?
AAP के सांसद संजय सिंह ने बुधवार को जमीन के सौदे से जुड़े नये डॉक्यूमेंट प्रस्तुत करके यह दावा किया कि 18 मार्च के नए एग्रीमेंट के पहले पुराने एग्रीमेंट को समाप्त कर दिया गया था, इसलिए यह दलील गलत है कि जमीन का दाम 2011 से अबतक बढ़ गया है. अगर पुराना एग्रीमेंट कैंसिल हो गया था फिर रवि मोहन तिवारी और सुल्तान अंसारी को सौदे में शामिल करने की क्या जरूरत थी? जमीन सीधे मंदिर ट्रस्ट को क्यों नहीं बेचा गया?
इंडियन एक्सप्रेस के रिपोर्ट के मुताबिक 18 मार्च को ही 1.037 हेक्टेयर बगल वाली जमीन को मंदिर ट्रस्ट ने सीधे कुसुम और हरीश पाठक से 8 करोड़ में खरीदा था. अगर दोनों ही जमीन अगल-बगल थी, दोनों को एक ही दिन खरीदा गया और दोनों के माप में मात्र 0.171 हेक्टेयर का फर्क था तो फिर दोनों के दाम में 10.5 करोड़ (लगभग 2.3 गुना)का अंतर कैसे?
ये हैं जमीन के इस प्लॉट से जुड़े कुछ सवाल. लेकिन यह अयोध्या राम मंदिर निर्माण के लिए होने वाले तमाम सौदों का एक हिस्सा भर है. मंदिर परिसर के लिए भूमि खरीदने के अलावा ट्रस्ट मंदिर निर्माण के कारण विस्थापित होने वालों को मुआवजा देने के लिए भी जिले भर में जमीन खरीद रहा है. अंसारी और तिवारी से खरीदी गई जमीन इसी काम के लिए थी.
आरोप यह भी है कि जमीन के ऐसे प्लॉट के चयन के साथ-साथ खरीद की कीमत से जुड़ी पूरी प्रक्रिया ही बेहद अपारदर्शी तरीके से पूरी की जा रही है. ऐसा तब हो रहा है जब अधिकांश खरीदारी आम भक्तों से एकत्रित किए गए चंदे से की जा रही है.
पूरे मुद्दे का राजनैतिक प्रभाव क्या होगा?
हालांकि हर विपक्षी पार्टी ट्रस्ट पर सवाल उठा रही है लेकिन आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी पूरी तरह से अटैक मोड में है. उत्तर प्रदेश में AAP के चेहरे संजय सिंह और सपा नेता पवन पांडे ने मंदिर ट्रस्ट पर तीखे सवाल दागे हैं.
संजय सिंह ने दावा किया कि मुद्दे पर उनके स्टैंड के कारण उनके घर पर हमला किया गया. उत्तर प्रदेश में AAP की बढ़ती दावेदारी एक दो-धारी तलवार है जो राज्य में पहले से ही बिखरे विपक्ष की स्थिति में बीजेपी विरोधी वोट को और बांट सकती है.
राजनीतिक दलों के अलावा पुरी शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने भी इस मुद्दे पर RSS और VHP पर निशाना साधा है.
विपक्ष इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाने और सबका ध्यान खींचने में सफल रहा है अगर मंदिर को लेकर यह विवाद जारी रहता है तो यह यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी के एक बहुत महत्वपूर्ण तुरुप के इक्के को नुकसान पहुंचाएगा.
यह मुद्दा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि संघ परिवार के साथ साथ VHP के कई लोग राम मंदिर निर्माण में शामिल हैं और पीएम के भरोसेमंद सहयोगी नृपेंद्र मिश्रा निर्माण पैनल के प्रमुख है. फिर इस विवाद में बीजेपी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार और ऋषिकेश उपाध्याय जैसे स्थानीय नेता भी लपेटे में है.
राम मंदिर का निर्माण चुनाव होने के समय तक शायद ही पूरा हो लेकिन मंदिर के चारों ओर चहल-पहल के कारण बीजेपी को फायदा हो सकता है .लेकिन अगर राम मंदिर की ओर से घोटाले की ही खबर आती रही तो यह कार्ड बीजेपी के लिए बैकफायर भी कर सकता है.
फिलहाल VHP और बीजेपी डैमेज कंट्रोल मोड में है. विपक्ष के आरोपों का मुकाबला करने के अलावा VHP और बीजेपी घोटाले की कवरेज को दबाने के लिए मंदिर पर कई 'पॉजिटिव' न्यूज़ को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रही है.
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