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UAPA के खिलाफ याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब

UAPA में संशोधन संबंधी विधेयक को संसद ने दो अगस्त को पारित किया था

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गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम (UAPA) कानून 2019 के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है. सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी करते हुए केंद्र सरकार से इस कानून पर जवाब मांगा है. इस कानून में हुए संशोधन को याचिका में चुनौती दी गई है. आरोप है कि इन संशोधनों से नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन होता है.

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UAPA में संशोधन संबंधी विधेयक को संसद ने 2 अगस्त को पारित किया था, जिसके बाद राष्ट्रपति ने 9 अगस्त को इसे मंजूरी दी थी. संशोधन अधिनियम केंद्र सरकार को किसी भी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करने और उसकी संपत्ति को जब्त करने का अधिकार देता है.

सुप्रीम कोर्ट में इस UAPA कानून के खिलाफ गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (एपीसीआर) ने याचिका दायर की है. याचिका में कहा गया है,

‘‘किसी व्यक्ति का पक्ष सुने बिना उसे आतंकवादी घोषित करना व्यक्ति की प्रतिष्ठा और गरिमा के अधिकार का उल्लंघन करता है, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और निजी स्वतंत्रता के अधिकार का एक पहलू है. संशोधन अधिनियम की धारा 35 में इस बात का उल्लेख नहीं है कि कब किसी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित किया जा सकता है.’’

इस याचिका के अलावा दिल्ली के रहने वाले एक व्यक्ति ने भी इस कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. उनका कहना है कि यह कानून संविधान में दिए गए मूलभूत कानूनों के खिलाफ है.

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हाल ही में UAPA के तहत आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर, जमात-उद-दावा के सरगना हाफिज सईद, अंडरवर्ल्ड डॉन दाउद इब्राहिम, लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी जकीर उर रहमान लखवी को आतंकी घोषित किया गया है.
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आखिर क्या है UAPA?

  1. Unlawful activities (prevention) act 1967 में संशोधन से संस्थाओं ही नहीं व्यक्तियों को भी आतंकवादी घोषित किया जा सकता है. इतना ही नहीं किसी पर शक होने से ही उसे आतंकवादी घोषित किया जा सकेगा. फिलहाल सिर्फ संगठनों को ही आतंकवादी संगठन घोषित किया जा सकता है. खास बात ये होगी कि इसके लिए उस व्यक्ति का किसी आतंकी संगठन से संबंध दिखाना भी जरूरी नहीं है. आतंकी का टैग हटवाने के लिए भी कोर्ट के बजाय सरकारी की बनाई रिव्यू कमेटी के पास जाना होगा. बाद में कोर्ट में अपील की जा सकती है.
  2. NIA के डीजी भी आतंकवादी घोषित किए गए व्यक्ति या समूह की संपत्तियों की जब्ती करने की मंजूरी दे सकते हैं. अभी तक जिस राज्य में प्रॉपर्टी होती थी, वहां के डीजीपी की मंजूरी से ही संपत्तियों की जब्ती हो सकती है.
  3. NIA का इंस्पेक्टर रैंक का अधिकारी भी आतंकवादी गतिविधियों की जांच कर सकता है. अभी तक सिर्फ डीएसपी और असिस्टेंट कमिश्नर या उससे ऊपर रैंक के अधिकारी को ही ऐसी जांच का अधिकार था.

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