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सिंबल, नाम की लड़ाई में शिंदे-उद्धव में कौन जीता? शिवसेना तो पक्का हारी-BJP जीती

Uddhav-Shinde की लड़ाई का पहला चैप्टर खत्म, यहां तक किसे फायदा, किसके पास अब मौका?

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शिवसेना (Shivsena) के दो गुटों के झगड़े का पहला दौर निपट गया है. शिवसेना के अधिकृत चुनाव चिन्ह धनुष बाण को चुनाव आयोग ने सीज कर लिया है. दोनों गुट शिवसेना शब्द का अकेले इस्तेमाल नहीं कर सकते. दोनों ही गुटों को नए नाम मिल गए हैं जिसमें शिवसेना जुड़ा है. उद्धव गुट को ‘उद्धव बालासाहेब ठाकरे’ और शिंदे गुट को ‘बाला साहेबची शिवसेना’ (बालासाहेब की शिवसेना) नाम मिला है. आयोग ने चुनाव चिह्न और पार्टी नाम पर पाबंदी लगाकर फिलहाल लंबे समय तक चलने वाले विवाद को अल्पविराम दे दिया है.

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उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे, दोनों ही शिवसेना के अधिकृत चुनाव चिन्ह धनुष बाण को पाने के लिए प्रयासरत थे. चुनाव चिन्ह ‘सीज’ होने के कारण यह बात स्पष्ट हो गई कि दोनों में से कोई भी गुट जीत नहीं पाया. आमतौर पर जब चुनाव चिन्ह पर विवाद होता है तो आयोग विवादित चुनाव चिन्ह को ‘सीज’ करने का कदम उठाता है और इस मामले में भी यही अपेक्षित था. उद्धव ठाकरे को फिलहाल मिला चुनाव चिन्ह जलती ‘मशाल’ है, जबकि एकनाथ शिंदे को मिला चुनाव चिन्ह ‘ढाल-तलवार’ है जिसमें दो तलवारें और ढाल का चित्र है.

‘मशाल’ और ‘ढाल-तलवार’ लेकर पहले भी चुनाव लड़ चुकी है शिवसेना

उद्धव गुट और शिंदे गुट को अभी जो चुनाव चिन्ह मिले हैं,उन पर शिवसेना पहले भी चुनाव लड़ चुकी है लेकिन तब वह मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल नहीं था. 1989 में शिवसेना के मोरेश्वर सावे औरंगाबाद लोकसभा चुनाव क्षेत्र से मशाल चुनाव चिन्ह पर विजयी हुए थे. उस समय बालासाहेब ठाकरे ने चुनावी सभा में मशाल चिन्ह पर चुनाव चिन्ह पर ठप्पा लगाकर शिवसेना प्रत्याशी को जिताने की अपील की थी.

भुजबल ‘मशाल’ और कीर्तिकर ‘ढाल-तलवार’ पर जीते थे

कभी शिवसेना के साथ रहे और अब राष्ट्रवादी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता छगन भुजबल मझगांव विधानसभा क्षेत्र से जलती मशाल चुनाव चिन्ह पर चुनाव जीत चुके हैं .भुजबल बाद में शिवसेना से बगावत कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे. शिवसेना सांसद गजानन कीर्तिकर शुरू से ही पार्टी से जुड़े थे. उन्होंने बताया कि 1968 के स्थानीय निकाय चुनाव के समय पार्टी के अधिकाश उम्मीदवारों को ढाल और तलवार चुनाव चिन्ह मिला था.

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इस तरह दोनों चुनाव चिन्ह शिवसेना से जुड़े हुए हैं. शिवसेना को 1989 में राज्यस्तरीय पार्टी का दर्जा मिला और धनुष बाण का चुनाव चिन्ह दिया गया. उसके पहले 1966 से 1989 तक शिवसेना ने विभिन्न चुनाव चिन्हों पर लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकायों के चुनाव लड़े थे. करीब 35 सालों के बाद ऐसा मौका है जब चुनाव आयोग ने धनुष बाण को सीज करने का निर्णय लिया है.

अधिकांश विधायक और सांसद हमारे साथ-शिंदे

चुनाव चिन्ह के लिए चुनाव आयोग के सामने अपनी बात रखते हुए शिंदे गुट ने कहा था कि शिवसेना के अधिकांश विधायक और सांसद उनके साथ हैं इसलिए पार्टी का अधिकृत चुनाव चिन्ह धनुष बाण उन्हें ही मिलना चाहिए.

शिंदे गुट ने जो पत्र दाखिल किया है, उसमें शिवसेना के 55 में से 40 विधायक, लोकसभा के 19 में से 12 सांसद, 144 पदाधिकारी तथा 11 राज्य प्रमुखों का समर्थन प्राप्त होने की बात कही है. इस गुट ने यह भी कहा है कि पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की 18 जुलाई को हुई बैठक में पार्टी प्रमुख के पद पर एकनाथ शिंदे का चयन किया गया था.

उद्धव के साथ 14 विधायक, 12 विधान परिषद के सदस्य, तीन सांसद

ठाकरे गुट ने चुनाव आयोग से कहा था कि पार्टी के 10 लाख से अधिक प्राथमिक सदस्य हैं. राष्ट्रीय कार्यकारिणी के 234 में से 64 सदस्य, 14 विधायक, 12 विधान परिषद के सदस्य, तीन सांसद, 18 राज्य प्रभारी और 26,000 से ज्यादा पदाधिकारी उनके साथ हैं. ऐसे में चुनाव चिन्ह उन्हें ही मिलना चाहिए. शिवसेना ने जो आंकड़े पेश की है उससे यही साबित होता है कि शिंदे के पास अधिक विधायक और अधिक सांसद हैं.

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चुनाव चिन्ह , नाम सीज करने का निर्णय अस्थायी

चुनाव चिन्ह और शिवसेना नाम सीज करने का चुनाव आयोग का निर्णय अस्थायी है. राज्य की अंधेरी पूर्व विधानसभा सीट के लिए अगले महीने उप चुनाव होने वाला है. इस सीट के लिए 3 नवंबर को मतदान होने वाला है. यहां 3 अक्टूबर से आचार संहिता भी लागू हो गई है. शिवसेना ने यहां से चुने गए विधायक रमेश लटके की पत्नी को टिकट देने का फैसला किया है.रमेश लटके का पिछले दिनों निधन हो गया था. शिवसेना के उम्मीदवार ऋतुजा लटके को कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने समर्थन देने का फैसला किया है.

उद्धव के प्रत्याशी को लेकर कांग्रेस में नाराजी

उद्धव के प्रत्याशी को समर्थन देने के निर्णय को लेकर कांग्रेस में अंदरूनी तौर पर काफी नाराजगी है. स्थानीय कांग्रेसियों का कहना है कि इस विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिम और ईसाई मतदाताओं की संख्या ज्यादा है जिसका लाभ निश्चित रूप से कांग्रेस को मिलता. इस नाराजगी का कोई मतलब दिखाई नहीं देता क्योंकि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले ने उद्धव ठाकरे से मुलाकात कर उन्हें चुनाव में पूरी मदद करने का आश्वासन दिया है.

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NCP भी उद्धव के साथ

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटील ने भी शिवसेना को समर्थन देने की घोषणा की है. दोनों पार्टियों के समर्थन को देखते हुए उद्धव गुट का कहना है कि अंधेरी उपचुनाव ठाकरे गुट राष्ट्रवादी कांग्रेस और कांग्रेस की महाविकास आघाडी की ओर से लड़ा जाएगा.

शिवसेना के आंतरिक झगड़ों का फायदा बीजेपी को-खडसे का दुख

बीजेपी छोड़कर राष्ट्रवादी कांग्रेस में शामिल हुए विधायक एकनाथ खडसे इस बात से दुखी है कि शिवसेना के आंतरिक झगड़ों का फायदा बीजेपी को मिलने वाला है. उनका दुख है कि बालासाहेब ठाकरे ने जीवन भर संघर्ष कर जिस शिवसेना की स्थापना की ,उसे बढ़ाया, उसके चुनाव चिन्ह धनुष बाण को प्रतिष्ठा दिलाई,उसमें ही फूट पड़ गई. उनका कहना है कि शिवसेना में पड़ी फूट का सीधा लाभ बीजेपी को ही होगा. यह फूट राज्य के हित में नहीं है. इससे बीजेपी को राज्य में अपने पैर जमाने का अच्छा मौका मिला है.

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उद्धव नया चुनाव चिन्ह लेकर चुनाव जीत सकते हैं -पवार

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार का बयान उद्धव ठाकरे को दिलासा देने वाला साबित हो सकता है.वे कहते हैं कि जिसका डर था वही हुआ लेकिन इससे शिवसेना समाप्त नहीं होगी बल्कि वह अधिक शक्तिशाली हो कर उभरेगी. वे कहते हैं कि

कोई शक्तिशाली संगठन जिस चुनाव चिन्ह पर चाहे उसका आधार लेकर जीत सकेगा यह बताया नहीं जा सकता. उद्धव के सामने नया चुनाव चिन्ह लेकर चुनाव लड़ने का पर्याय उपलब्ध है. मैं आज तक पांच चुनाव चिन्ह लेकर चुनाव लड़ चुका हूं और जीता भी हूं. चिन्ह के रहने या न रहने से कोई फर्क नहीं पड़ता है.
शरद पवार, NCP प्रमुख

शिंदे की नादानी से बीजेपी को लाभ- विधायक भास्कर जाधव

उद्धव गुट के विधायक भास्कर जाधव, एकनाथ शिंदे से बहुत नाराज है. वे कहते हैं कि मुख्यमंत्री शिंदे राज्य में शिवसेना को बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन उन्होंने नादानी में जो भी कदम उठाए हैं उसके कारण बीजेपी ने शिवसेना को समाप्त करने का दांव खेला है.

धनुष बाण पाने की कोशिश करने तथा आपस में संघर्षरत उद्धव और शिंदे गुट को मिले अलग-अलग चुनाव चिन्ह तथा नए नाम को लेकर भी आरोप-प्रत्यारोप हो रहे हैं. चुनाव आयोग के फैसले को लेकर उद्धव गुट,कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यह आरोप लगा रही हैं कि केंद्र और राज्य सरकार स्वायत्त संस्थाओं की स्वतंत्रता पर आघात कर रही है.

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उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस आघाडी नेताओं के आरोपों को निराधार और बेतुका मानते हैं. उनका कहना है कि राजनीतिक दलों में फूट पड़ने की स्थिति में केंद्रीय चुनाव आयोग पिछले 25 वर्षों से ऐसे ही निर्णय देता आ रहा है. इसलिए चुनाव आयोग के फैसले को लेकर रोना- पीटना राजनीतिक नाटक ही है. उनका यह भी कहना है कि चुनाव आयोग का फैसला अंतरिम है अभी अंतिम फैसला आने का है. फडणवीस का कहना है कि दोनों ही गुटों को चुनाव आयोग ने अपना पक्ष रखने के लिए पर्याप्त समय दिया था.

विपक्षी दलों की नीति है कि जब उनके खिलाफ कोई फैसला जाता है तो वे उन फैसलों को स्वायत्त संस्थाओं पर हमले के रूप में प्रस्तुत करते हैं और जब उनके पक्ष में कोई निर्णय आता है तो वे न्यायपालिका में अपनी आस्था जताने लगते हैं. कांग्रेस और शिवसेना ने यही नीति अपना रखी है.

ताकत बालासाहेब ठाकरे के नाम में है

चुनाव आयोग ने दोनों गुटों को शिवसेना के अकेले इस्तेमाल करने पर रुक दिया था लेकिन उसने दोनों गुटों को ‘शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे’ और शिंदे गुट को ‘बाला साहब की शिवसेना’ यह नाम दिए हैं. इससे पता चलता है कि शिवसेना शब्द से में ज्यादा ताकत बालासाहेब ठाकरे के नाम में है इसलिए दोनों ही पक्षों ने अपने दलों के नाम के साथ बालासाहेब ठाकरे का नाम जोड़ा है.

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उद्धव अभी भी शिंदे गुट पर गद्दारी का आरोप लगा रहे हैं. ‘मशाल’ चुनाव चिन्ह पर मिलने के बाद उन्होंने कहा था कि यह ‘मशाल’ अन्याय और गद्दारी को जलाने वाली है. उधर एकनाथ शिंदे ने अपने चुनाव चिन्ह को लेकर कहा था कि सज्जनों की रक्षा के लिए ढाल और दुर्जनों का नाश करने के लिए हाथ में तलवार लेंगे.

विधानसभा उपचुनाव लेगा उद्धव-शिंदे की परीक्षा

ऐसा कहा जा सकता है कि अंधेरी पूर्व विधानसभा उपचुनाव उद्धव के लिए एक सौगात लेकर आया है क्योंकि इस चुनाव में यह साबित हो जाएगा कि पार्टी पर उनकी कितनी पकड़ है और वे जनता की नब्ज समझने में भी कितने सक्षम हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि शिंदे गुट की ‘बाबासाहेबांची शिवसेना’ इस चुनाव में मैदान में नहीं है वहां उनका गुट बीजेपी को समर्थन दे रहा है इसलिए प्रत्यक्ष रूप से शिंदे को कुछ साबित नहीं करना है, लेकिन यह ध्यान रखना होगा कि राज्य में शिंदे के साथ बीजेपी की सरकार सत्तारूढ़ है और इस चुनाव में यदि बीजेपी को पराजय का मुंह देखना पड़ता है तो यह भी साबित हो जाएगा कि शिंदे गुट कमजोर है.

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असली कसौटी 2024 के चुनाव में होगी जब दोनों गुट राज्य में कई जगहों पर आमने-सामने होंगे. इस संघर्ष में शिवसेना समर्थकों के ही वोट कटेंगे जिसका प्रत्यक्ष लाभ बीजेपी को मिलेगा. राज्य में शिवसेना की स्थिति कमजोर करने में शरद पवार की राजनीति को अनदेखा नहीं किया जा सकता. बीजेपी तो 2014 में भी बढ़त पर थी और 2019 में भी. इस संदर्भ में शिवसेना को कमजोर करने में उद्धव ठाकरे की भूमिका भी उतनी ही प्रभावपूर्ण है.

लड़ाई में बालासाहब ही जीतेंगे और बालासाहब ही हारेंगे.

शिवसेना में पड़ी फूट को लेकर छगन भुजबल की यह टिप्पणी काफी महत्वपूर्ण है कि इस फूट से बालासाहेब ठाकरे की साख को धक्का पहुंचा है. इस समय मराठी सोशल मीडिया पर एक टिप्पणी वायरल हो रही है जिसमें लिखा है कि आज से उद्धव ठाकरे लोगों से कहेंगे- सब लोग ध्यान रखें ,हमें बालासाहेब की शिवसेना को हराना है. वास्तव में स्थिति बड़ी विचित्र है. उद्धव और शिंदे की लड़ाई में बालासाहब ही जीतेंगे और बालासाहब ही हारेंगे क्योंकि दोनों ही गुटों के नामों में बालासाहब का नाम शामिल है.

(विष्णु गजानन पांडे महाराष्ट्र की सियासत पर लंबे समय से नजर रखते आए हैं. वे लोकमत पत्र समूह में रेजिडेंट एडिटर रह चुके हैं. आलेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं और उनसे द क्विंट का सहमत होना जरूरी नहीं है)

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