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कोरोना से जुड़ी झोलाछाप ट्रिक्स की पूरी पड़ताल, अजब-गजब दावे

कोरोना के इलाज और वैक्सीन को लेकर किए जा रहे झूठे दावों का सच एक नजर में

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इस समय देश कोरोना की दूसरी लहर की चपेट में है. हर दिन कोविड संक्रमितों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है. ऐसे में कोरोना से बचाव और उसे ठीक करने से जुड़े दावों की भी भरमार सोशल मीडिया पर देखने को मिल रही है.

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डॉक्टर्स की मानें तो इस तरह के दावों को फॉलो करने के बजाय अगर जागरुकता दिखाई जाए और कोरोना संक्रमण को रोकने के ठीक उपाय किए जाएं तो बीमारी के गंभीर होने के मौके कम हो जाएंगे.

कभी ये दावा वायरल होता है कि खाली नेबुलाइजर से ऑक्सीजन लेवल बढ़ाया जा सकता है, तो कभी फिटकरी के पानी से कोरोना को ठीक करने का तरीका बताया जा रहा है. ऐसी ही एक झोलाछाप ट्रिक भी वायरल हुई कि अगर 20 सेकंड सांस रोक ली, तो मानिए कि आपको कोरोना नहीं है. हम ऐसे झूठे दावों का सच आपके सामने हर रोज लाते रहते हैं. इस सप्ताह हमने ऐसे ही कुछ दावों की पड़ताल की और सच आपके सामने लेकर आए.

कोरोना पॉजिटिव मरीज फिटकरी का पानी पीकर नहीं होता नेगेटिव,दावा गलत

कई लोग सोशल मीडिया पर फिटकरी के फायदे शेयर कर दावा कर रहे हैं कि फिटकरी से कोरोना से बचाव होगा और अगर कोरोना हो भी गया है तो इसका पानी पीने से ठीक हो जाएगा.

हालांकि, हमने पाया कि ये दावा भ्रामक है. अभी तक ऐसी कोई रिसर्च नहीं हुई है जिससे साबित हो कि फिटकरी का पानी पीने से या इससे कुल्ला करने से कोरोना ठीक हो जाता है.

हमने इस दावे का सच जानने के लिए, डॉ. चंद्रकांत लहारिया, जन नीति और स्वास्थ्य तंत्र विशेषज्ञ, नई दिल्ली से बात की. उन्होंने क्विंट को बताया कि दुनिया के किसी भी हिस्से में अभी तक कोरोना का कोई प्रमाणित इलाज नहीं मिला है. वैज्ञानिक आधार पर फिटकरी में ऐसा कुछ नहीं होता जिससे कोरोना ठीक हो. इस बारे में कोई रिसर्च नहीं की गई है और न ही ये वैज्ञानिक तौर पर ये बात लॉजिकल लगती है.

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इस बारे में और जानकारी के लिए हमने Ayurveda Growth at NirogStreet के को-फाउंडर और एवीपी डॉ. अनिरुद्ध मोहिते से बात की. उन्होंने बताया कि आयुर्वेद के मुताबिक फिटकरी का इस्तेमाल गरारा करने के लिए किया जाता है, लेकिन इससे कोविड ठीक नहीं होगा.

मतलब साफ है कि ये दावा भ्रामक है कि फिटकरी वाला पानी पीने से या उस पानी से गरारा करने से कोरोना का इलाज संभव है.

पूरी पड़ताल पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

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20 सेकेंड सांस रोक सके तो कोरोना नहीं? जानिए इस झोलाछाप ट्रिक का सच

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सोशल मीडिया पर कई यूजर्स एक वीडियो शेयर कर रहे हैं. जिसमें दावा किया जा रहा है कि वीडियो में दिए गए टेस्ट से ये पता लगाया जा सकता है कि आपको कोरोना है या नहीं.

टेस्ट में एक निश्चित समय के लिए सांस रोकने की सलाह दी गई है. अगर आप टेस्ट में दिए समय तक सांस रोक लेते हैं, तो इसका मतलब है कि आपको कोरोना नहीं है.

हालांकि, क्विंट की पड़ताल में ये दावा गलत निकला. WHO के मुताबिक अगर आप 10 सेकंड या इससे ज्यादा समय तक सांस रोक लेते हैं, तो इसका मतलब ये नहीं कि आपको कोरोना नहीं है. ये दावा गलत है.

हमने सबसे पहले WHO की साइट में जाकर चेक किया कि क्या ऐसे कोई सुझाव दिए गए हैं. हमें साइट में ‘Myth Buster’ सेक्शन मिला. इसमें बताया गया है कि अगर आप 10 सेकंड या इससे ज्यादा समय तक सांस रोक लेते हैं, तो इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि आप कोरोना संक्रमण से मुक्त हैं.

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WHO ने बताया है कि कोरोना के संक्रमण का पता लगाने का सबसे अच्छा तरीका लैब में टेस्ट कराना है, न कि कोई ब्रीदिंग एक्सरसाइज. क्योंकि ये खतरनाक हो सकती है.

हमने इस बारे में ज्यादा जानकारी के लिए, फोर्टिस हॉस्पिटल शालीमार बाग के पल्मोनॉलजी डिपार्टमेंट के डायरेक्टर और हेड डॉ. विकास मौर्या से संपर्क किया. उन्होंने वायरल वीडियो टेस्ट में बताई गई जानकारी से इनकार करते हुए इसे गलत बताया.

अगर आपको कोविड के लक्षण नजर आ रहे हैं, तो तुरंत जांच कराएं. बुखार, खांसी, जुकाम और सांस फूलने की समस्या के साथ-साथ खुशबू आना बंद हो गई है या स्वाद चला गया है, तो कोविड टेस्ट करवा लें. खुद को आइसोलेट कर लें और ध्यान रखें कि आप किसी और को संक्रमित न कर रहे हों. कोविड हवा में छोटी-छोटी बूंदों (ड्रॉप्लेट्स) के जरिए ट्रैवल करता है. अगर आप अपनी सांस को 10, 15 या 20 सेकंड रोक पा रहे हैं, तो इसका मतलब ये नहीं है कि आपको कोविड का संक्रमण नहीं हो सकता.
डॉ. विकास मौर्या, फोर्टिस हॉस्पिटल शालीमार बाग
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मतलब साफ है कि 20 सेकंड तक सांस रोककर रखने वाली विशेष तकनीक वाले वीडियो के जरिए भ्रामक दावा किया जा रहा है कि अगर आप ये टेस्ट पास कर लेते हैं तो आपको कोरोना नहीं है. ये दावा गलत है. ऐसे किसी भी दावे से प्रेरित होने के बजाय अपने चिकित्सक से एक बार सलाह जरूर ले लें.

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नेबुलाइजर से नहीं बढ़ाया जा सकता ऑक्सीजन लेवल, गलत है दावा

सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें दावा किया जा रहा है कि खाली नेबुलाइजर का इस्तेमाल करने से ऑक्सीजन का लेवल बढ़ाने में मदद मिलती है. यानी नेबुलाइजर में कोई दवा डालने के जरूरत नहीं है. इससे लोगों को ऑक्सीजन सिलिंडर के लिए भटकना नहीं पड़ेगा.

वीडियो में दिख रहे शख्स ने खुद को डॉ. आलोक बताया है. सोशल मीडिया पोस्ट के मुताबिक ये सर्वोदय हॉस्पिटल, फरीदाबाद में कार्यरत है.

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हमने सर्वोदय हॉस्पिटल से जुड़ी पड़ताल की, ताकि ये जान सकें कि क्या हॉस्पिटल ने ये तकनीक सिखाने वाला वीडियो जारी किया है. हमने पाया कि हॉस्पिटल के फेसबुक पेज पर दावे को झूठा बताया गया है. साथ ही, इसके लिए चेतावनी भी दी गई है.

हमने KEM हॉस्पिटल मुंबई के सीनियर रेजीडेंट (चेस्ट मेडिसिन) डॉ. अर्नब से बात की. डॉ. अर्नब ने बताया कि ये दावा गलत है. उन्होंने बताया कि ये संभव नहीं है कि नेबुलाइजर से रक्त में ऑक्सीजन का लेवल बढ़े, चाहे इसका इस्तेमाल दवा के साथ किया जाए या दवा के बिना.

वायरल वीडियो में दिख रहे डॉ. आलोक सेठी ने India Today से बात की और कहा कि वीडियो में बताई गई जानकारी सही नहीं है और जब से उन्हें पता चला है कि वीडियो वायरल हो गया है, तब से वो लोगों को इस बारे में सावधान कर रहे हैं.

मतलब साफ है कि ये दावा गलत है कि ऑक्सीजन सिलिंडर के विकल्प के रूप में नेबुलाइजर का इस्तेमाल किया जा सकता है.

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पीरियड्स में कोविड वैक्सीन लगवाने से नहीं बढ़ता संक्रमण का खतरा

सोशल मीडिया पर एक फोटो वायरल हो रही है जिसमें दावा किया जा रहा है कि 18 साल के ऊपर की महिलाएं पीरियड्स के 5 दिन पहले और 5 दिन बाद तक कोविड वैक्सीन न लगवाएं, क्योंकि इससे उनकी इम्यूनिटी पर असर हो सकता है.

हमने कई गायनोकॉलजिस्ट से इस दावे को लेकर बात की. उन सभी ने इस वायरल दावे को गलत बताया. उन्होंने कहा, ''अगर आप प्रेग्नेंसी प्लान नहीं कर रही हैं तो पीरियड्स के दौरान, उससे पहले या उसके बाद वैक्सीन लगवा सकती हैं. पीरियड्स की वजह से वैक्सीनेशन को रोकना नहीं है.''

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वायरोलॉजी में ICMR के सेंटर फॉर एडवांस्ड रिसर्च के पूर्व प्रमुख डॉ. जैकब टी जॉन ने वेबकूफ टीम से बताया था कि ये दावा पूरी तरह से गलत है

‘’कई रिसर्च के मुताबिक वैक्सीन पूरी तरह से प्रभावी नहीं है, लेकिन इससे संक्रमण का खतरा कम हो जाता है. अगर किसी व्यक्ति को संक्रमण नहीं हुआ है, तो उसे कोविड 19 का संक्रमण होने का खतरा भी कम हो जाता है. वैक्सीन की पहली डोज लेने के बाद शरीर की इम्यूनिटी कम होने का दावा पूरी तरह से गलत है.’’
डॉ. जैकब टी जॉन, वायरोलॉजी में ICMR के सेंटर फॉर एडवांस्ड रिसर्च के पूर्व प्रमुख

इसके अलावा, हमने इस बारे में कई गायनोकॉलजिस्ट से बात की कि क्या पीरियड्स के दौरान वैक्सीन लेने से इम्यूनिटी पर असर पड़ता है, तो उन्होंने इसे पूरी तरह से खारिज कर दिया.

नमः हॉस्पिटल में गायनोकॉलजिस्ट डॉ. मुंजाल कपाड़िया ने कहा:

‘’पीरियड्स का इम्यूनिटी पर कोई असर नहीं होता है. पीडियड्स के दौरान भी वैक्सीन ली जा सकती है. वैक्सीन का पीरियड्स पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता है. वैक्सीन जल्द से जल्द लगवा लेनी चाहिए. वैक्सीन लगवाने में सिर्फ इसलिए देरी नहीं करनी चाहिए, क्योंकि किसी को पीरियड्स हो रहे हैं.’’
डॉ. मुंजाल कपाड़िया, गायनोकॉलजिस्ट

मतलब साफ है कि ये दावा झूठा है कि पीरियड्स के दौरान या उसके पहले और बाद में वैक्सीन लगवाने से, कोविड संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है.

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रेमडेसिविर का नाम भारतीय वैज्ञानिक ‘रमेश’ के ऊपर होने का दावा गलत

सोशल मीडिया पर एक मैसेज वायरल हो रहा है जिसमें दावा किया जा रहा है कि कोविड 19 के इलाज में इस्तेमाल होने वाली एंटीवायरल दवा रेमडेसिविर का नाम तमिलनाडु के रमेश ईएम देसिगन नाम के एक भारतीय वैज्ञानिक के नाम पर रखा गया है.

क्विंट ने सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध दवा के विकास और ट्रायल से जुड़े डेटा को खंगाला और दवा की पैरेंट कंपनी Gilead Sciences से भी बात की. कंपनी ने बताया कि ये दावा सही नहीं है.

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हमें दवा बनाने वाली कंपनी Gilead Sciences की वेबसाइट पर रमेश ईएम देसिगन (Ramesh EM Desigan) के बारे में कुछ भी नहीं मिला.

हमने Gilead Sciences से भी संपर्क किया, ताकि पुष्टि की जा सके कि रेमडेसिविर बनाने वाली और इसके ट्रायल से जुड़ी टीम में, क्या रमेश ईएम देसिगन नाम का कोई था?

कंपनी ने क्विंट की वेबकूफ टीम को ईमेल के जरिए बताया कि इस नाम का कोई भी शख्स उनके साथ काम नहीं करता है.

‘’ये दावा सही नहीं है. आपके ईमेल में पूछे गए नाम वाला कोई भी शख्स नहीं है, जिसका रेमडेसिविर से कोई संबंध है.’’
Bahar Turkoglu, सीनियर डायरेक्टर (पब्लिक अफेयर्स), Gilead Sciences

मतलब साफ है कि एंटीवायरल ड्रग रेमडेसिविर से जुड़े कई झूठे दावों वाला मैसेज सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. ये दावा गलत है कि रेमडिसिविर का नाम भारतीय वैज्ञानिक रमेश के नाम पर रखा गया है.

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RSS ने बनाया देश का सबसे बड़ा कोविड सेंटर? झूठा है ये दावा

सोशल मीडिया पर एक वायरल मैसेज में ये दावा किया जा रहा है कि RSS ने देश का सबसे बड़ा 6000 बेड्स वाला कोविड सेंटर मध्य प्रदेश के इंदौर में बनाया है. वेबकूफ की पड़ताल में सामने आया कि ये बात सच है कि इंदौर में 6000 बेड्स वाला कोविड सेंटर बन रहा है. फिलहाल इस सेंटर में 600 बेड हैं. लेकिन, ये आरएसएस ने नहीं बनवाया है.

दावे से जुड़े अलग-अलग कीवर्ड गूगल सर्च करने से हमें दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट मिली. इस रिपोर्ट के मुताबिक राधा स्वामी सत्संग में बने कोविड सेंटर का संचालन इंदौर प्रशासन कर रहा है. रिपोर्ट में ऐसा उल्लेख कहीं भी नहीं है कि ये कोविड सेंटर आरएसएस ने बनवाया.

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न्यूज एजेंसी ANI की 22 अप्रैल, 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक, इंदौर के राधा स्वामी सत्संग के मैदान को 600 बेड्स वाले कोविड केयर सेंटर में बदल दिया गया है. आगे यहां बढ़ाकर बेड्स की संख्या 6000 की जाएगी. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सत्संग का धन्यवाद दिया है और बताया है कि सेंटर में आरएसएस के वॉलेंटियर भी काम कर रहे हैं. ANI की रिपोर्ट में भी कहीं ये उल्लेख नहीं है कि सेंटर आरएसएस ने बनवाया है.

हमने RSS के मालवा प्रांत के प्रचार प्रमुख विनय दीक्षित से भी संपर्क किया. वेबकूफ से बातचीत में उन्होंने ये पुष्टि की कि RSS के वॉलेंटियर्स कोविड केयर सेंटर के लिए काम कर रहे हैं, लेकिन इस सेंटर की फंडिंग संगठन नहीं कर रहा.

इंदौर के कोविड केयर सेंटर का संचालन प्रशासन, सामाजिक संगठनों और कुछ उद्योगपतियों के मिले-जुले सहयोग से हो रहा है. RSS के वॉलेंटियर भी कोविड केयर सेंटर में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. लेकिन, ये दावा सही नहीं है कि पूरे सेंटर की फंडिंग RSS ने की है
विनय दीक्षित, मालवा प्रांत प्रचार प्रमुख, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

मतलब साफ है - सोशल मीडिया पर किया जा रहा ये दावा गलत है कि इंदौर का कोविड केयर सेंटर आरएसएस ने बनवाया.

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