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बंगाल हिंसा, कोरोना और इजरायल-फिलिस्तीन से जुड़े झूठे दावों का सच

इस हफ्ते पश्चिम बंगाल हिंसा, कोरोना और इजरायल-फिलिस्तीन को लेकर भ्रामक और झूठी खबरों की भरमार रही

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देश कोरोना जैसी महामारी की दूसरी लहर से जूझ रहा है. ऐसे में न सिर्फ कोरोना से जुड़े झूठे दावे सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं, बल्कि पश्चिम बंगाल में 2 मई को आए चुनावी नतीजों के बाद से ही बंगाल से जुड़े कई भ्रामक दावे भी खूब शेयर हो रहे हैं. कभी ब्राजील में हुई हिंसा का वीडियो बंगाल का बताकर शेयर किया जा रहा है तो कभी अलग-अलग जगहों में हुई हिंसा के पुराने वीडियो बंगाल के बताकर शेयर किए जा रहे हैं. साथ ही, इन्हें सांप्रदायिक रंग भी दिया जा रहा है.

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जेरुसलम की अल-अक्सा मस्जिद में इजरायली सुरक्षा बलों और मुस्लिमों के बीच हुई हिंसा के बाद से ही इजरायल और फिलिस्तीन दोनों ही देश युद्ध जैसी स्थिति में हैं. ऐसे में इजरायल और फिलिस्तीन से भी जुड़ी कई फेक खबरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं. ऐसी ही तमाम खबरों की पड़ताल हमने इस पूरे हफ्ते की और सच आपके सामने लाए.

बंगाल हिंसा को एडिटेड वीडियो से सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश

पश्चिम बंगाल में 2 मई को चुनाव के नतीजे घोषित होने के बाद हिंसा की कई खबरें सामने आईं. ऐसे में एक भड़काऊ एडिटेड वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल किया जा रहा है. इसे बंगाल का बताकर दावा किया जा रहा है कि अब हिंदुओं ने बदला लेना शुरू कर दिया है.

कई यूजर्स फेसबुक और ट्विटर पर इस वीडियो को इस कैप्शन के साथ शेयर कर रहे हैं: ''बंगाल के हिंदुओं ने पलटवार करना शुरू कर दिया है. अभी देखना लोकतंत्र खतरे में आ जाएगा''पोस्ट का आर्काइव देखने के लिए यहां क्लिक करें

(सोर्स: स्क्रीनशॉट/फेसबुक)पोस्ट का आर्काइव देखने के लिए यहां क्लिक करें

हालांकि, पड़ताल में हमने पाया कि देश की अलग-अलग जगहों में हुई हिंसा और मारपीट के पुराने वीडियो की क्लिप जोड़कर ये वीडियो तैयार किया गया है. इस वीडियो का पश्चिम बंगाल में हुई हिंसा से कोई संबंध नहीं है.

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हमने Invid के गूगल क्रोम एक्सटेंशन का इस्तेमाल कर वीडियो को कई कीफ्रेम में बांटा. वीडियो को 5 क्लिप जोड़कर तैयार किया गया है. कीफ्रेम में से एक पर रिवर्स इमेज सर्च करने पर हमें साल 2017 में अपलोड किया गया एक यूट्यूब वीडियो मिला. इस वीडियो में वही विजुअल मिले जो वायरल वीडियो के पहले 23 सेकंड में देखे जा सकते हैं.

पड़ताल में हमने पाया कि वीडियो में इस्तेमाल की गई पहली क्लिप पंजाब के फगवाड़ा की है हमें The Indian Express और Times of India की साल 2016 की कुछ रिपोर्ट्स मिलीं जिनमें इस घटना के संबंध में बताया गया था.

Indian Express की रिपोर्ट के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर में अमरनाथ यात्रा को बाधित करने को लेकर फगवाड़ा में शिवसेना के कार्यकर्ताओं और मुस्लिम समुदाय के बीच हिंसक झड़प हुई थी.

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वीडियो की दूसरी क्लिप की पड़ताल करने पर हमने पाया कि ये वीडियो साल 2018 से इंटरनेट पर है जिससे साबित होता है कि ये पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद हुई हिंसा से संबंधित नहीं है. हालांकि, क्विंट वीडियो में दिख रही जगह को व्यक्तिगत तौर पर वेरिफाई नहीं कर पाया है.

इसके अलावा, तीसरी क्लिप की जांच करने पर हमें पता चला कि ये वीडियो मार्च 2019 का है जब हरियाणा के गुरुग्राम में होली के मौके पर 20-25 लोगों की भीड़ ने एक मुस्लिम परिवार को पीटा था. इस घटना के विजुअल कई न्यूज चैनल ने घटना से जुड़ी रिपोर्ट में इस्तेमाल किए थे. इन्हें NDTV और Times of India की रिपोर्ट में देखा जा सकता है.

वीडियो में इस्तेमाल की गई दो क्लिप्स की जानकारी हमें नहीं मिल पाई है. लेकिन, हमारी पड़ताल के मुताबिक वीडियो में इस्तेमाल की गई बाकी की 3 क्लिप पुरानी हैं और इनका पश्चिम बंगाल हिंसा से कोई संबंध नहीं है.

पूरी पड़ताल पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

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बंगाल चुनाव में धर्म के आधार पर वोटों को दिखाता ये चार्ट फेक है

राइट विंग की प्रोपेगेंडा वेबसाइट Postcard News ने पश्चिम बंगाल चुनाव को लेकर एक झूठा इन्फोग्राफ शेयर किया है. जिसमें बताया गया है कि, भारत के चुनाव आयोग ने कहा है कि हाल ही में हुए पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस (TMC) को 91 प्रतिशत मुस्लिमों ने वोट किया है. वहीं BJP को 41.6 प्रतिशत हिंदुओं ने वोट किया है.

Postcard News ने ECI को कोट करते हुए ग्राफिक शेयर किया है, जिसमें लिखा है:

  • 32.8% हिंदुओं ने वोट नहीं किया
  • शहरी और अर्द्धशहरी क्षेत्रों के 25.5% हिंदुओं ने TMC,CPM, कांग्रेस, ISF और नोटा के लिए बटन दबाया
  • 41.6% हिंदुओं ने बीजेपी को वोट किया
  • 91% मुस्लिमों ने TMC को वोट किया
  • 3% ने लेफ्ट पार्टियों, कांग्रेस, आईएसएफ और नोटा का बटन दबाया
  • 1% ने बीजेपी को वोट कियापोस्ट का आर्काइव देखने के लिए यहां क्लिक करें(सोर्स: स्क्रीनशॉट/फेसबुक)(सोर्स: स्क्रीनशॉट/फेसबुक)
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हालांकि, हमने चुनाव आयोग की वेबसाइट देखी और आधिकारिक प्रवक्ता से बात की. उन्होंने बताया कि किसी भी चुनाव के दौरान पोल बॉडी मतदाताओं की धर्म या जाति से संबंधित जानकारी न तो इकट्ठा करती है और न ही इसे शेयर करती है. हमें चुनाव आयोग की वेबसाइट में भी इस तरह का कोई क्लासिफिकेशन नहीं मिला.

चुनाव आयोग के रिजल्ट पोर्टल में वोटों की संख्या और हर पार्टी को मिले वोट शेयर से जुड़ा डेटा दिया गया है. इसके अलावा, किस पार्टी ने कितनी सीटें जीतीं, निर्वाचन क्षेत्र, सभी कैंडिडेट के लिए राउंड वाइज रुझान और हर निर्वाचन क्षेत्र में जीत के रुझान से संबंधित डेटा दिया गया है.

हमने चुनाव आयोग की आधिकारिक प्रवक्ता शेफाली शरण से संपर्क किया, ताकि किए जा रहे दावे से जुड़ा सच जान सकें. उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग धर्म के आधार पर डेटा नहीं रखता है.

शरण ने कहा ‘’चुनाव आयोग पुरुष, महिला, थर्ड जेंडर, वरिष्ठ नागरिक, ETPBS के लिए योग्य सर्विस वोटर्स, विदेशी वोटर, दिव्यांग व्यक्ति जैसी जनसांख्यिकीय कैटेगरी के आधार पर वर्गीकरण करता है, लेकिन धर्म के आधार पर कभी कोई वर्गीकरण नहीं करता है.’’
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चुनाव आयोग ने एक प्रेस रिलीज में कहा, ‘’आयोग ये स्पष्ट करना चाहता है कि हम मतदाताओं के धर्म या जाति से जुड़ी जानकारी नहीं इकट्ठा करते. आयोग की ओर से निर्देशित किया जा चुका है कि इस तरह की जानकारी किसी भी चुनाव प्राधिकरण की ओर से इकट्ठा नहीं की जानी चाहिए.''

मतलब साफ है कि ये दावा गलत है कि चुनाव आयोग ने मतदाताओं के धर्म के आधार पर डेटा जारी किया है.

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ब्राजील का वीडियो बंगाल में BJP कार्यकर्ता की हत्या का बताकर वायरल

सोशल मीडिया पर साल 2018 का एक वीडियो शेयर हो रहा है, जिसे बीजेपी वर्कर उत्तम घोष की हत्या का बताकर शेयर किया जा रहा है.

हालांकि, पड़ताल में हमने पाया कि कथित तौर पर बीजेपी कार्यकर्ता उत्तम घोष की हत्या चुनावी नतीजे आने के बाद हुई है. लेकिन वायरल हो रहा वीडियो बंगाल का नहीं, बल्कि ब्राजील का है.

उत्तम घोष की पत्नी के नाम से शेयर हो रहे इस मैसेज में लिखा है, “मेरे पति को घर से घसीट कर ले गए टीएमसी के लोग और बोले अब बोल जय श्री राम अब कहां है तेरे भाजपा वाले अब कहां हैं तेरे हिंदू अब कौन तुझे बचाएगा यह कह कर उन्होंने मेरे पति को गंगापुर राणाघाट पर मार दिया -उत्तम घोष की पत्नी ,(बंगाल) दैनिक भास्कर अखबार के इंटरव्यू का अंश!

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वीडियो को कीफ्रेम में बाटंकर रिवर्स इमेज सर्च करने पर, हमने पाया कि ये वीडियो बंगाल का नहीं, बल्कि ब्राजील का है और करीब 3 साल पुराना है. हमें sobral24horas नाम की एक वेबसाइट पर 7 जनवरी 2018 को पब्लिश एक रिपोर्ट मिली. जिसमें वही विजुअल इस्तेमाल किया गया था जो वायरल वीडियो में दिख रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक करीब 5 लोगों ने मिलकर एक 17 साल के किशोर की हत्या कर दी.ये घटना दिसंबर 2017 की है.

(सोर्स: स्क्रीनशॉट/वेबसाइट)

(सोर्स: स्क्रीनशॉट/वेबसाइट)

Dainik Bhaskar ने इस दावे को खारिज करते हुए लिखा है कि..

दैनिक भास्कर वीडियो के साथ किए जा रहे दावे का खंडन करता है. भास्कर ने उत्तम घोष की पत्नी का ऐसा कोई इंटरव्यू नहीं किया है.

मतलब साफ है कि ये वीडियो बंगाल का नहीं, बल्कि ब्राजील का है. जिसे पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद हुई हिंसा से जोड़कर शेयर किया जा रहा है.

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केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने कोरोना काल में बिना मास्क दिया धरना? झूठा दावा

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन के साथ प्रधानमंत्री कार्यालय के राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह और विजय गोयल की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर की जा रही है. इसे शेयर कर दावा किया जा रहा है कि स्वास्थ्य मंत्री बढ़ती महामारी के बीच सभी कोविड प्रोटकॉल को तोड़ते हुए प्रोटेस्ट कर रहे हैं.

ये तस्वीर ऐसे समय में वायरल हो रही है जब बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद हुई हिंसा के खिलाफ देशव्यापी विरोध प्रदर्शन की घोषणा की है. इस हिंसा में कई लोगों की जानें गई हैं.

इस तस्वीर को फेसबुक और ट्विटर पर इस कैप्शन के साथ शेयर किया जा रहा है "यह है देश कि सिस्टम..!! बीच में बैठा आदमी, इस देश का “स्वास्थ्य मंत्री” है. बंगाल की हार नही पचने के कारण राष्ट्रपति शासन लगा दो यह कहते हुए धरना पर बैठ गये बिना मास्क ! देश मे रोज “ऑक्सिजन और दवा” की कमी से 3000 से 3500 और ज्यादा भी मर रहे हैं यह दिखाई नहीं देते क्योकि इनको सिर्फ अपने कुर्सी कि चिंता है जनता जाए भाड़ में...!!"

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हमने वायरल फोटो पर रिवर्स इमेज सर्च करके देखा. हमें न्यूज पोर्टल 'HW Hindi' की 15 मई 2019 को पब्लिश एक रिपोर्ट मिली. इस रिपोर्ट में इसी फोटो का इस्तेमाल किया गया था. इस आर्टिकल की हेडलाइन है, ''ममता के खिलाफ BJP का जंतर-मंतर पर साइलेंट प्रोटेस्ट''.

बीजेपी के नेता 15 मई 2019 को कोलकाता में बीजेपी और टीएमसी समर्थकों के बीच हुई झड़पों के विरोध में जंतर-मंतर में इकट्ठा हुए थे. गृहमंत्री अमित शाह के कोलकाता में रोड शो के दौरान हुई हिंसा के एक दिन बाद ये विरोध किया गया था.

इस घटना को क्विंट के साथ-साथ और भी कई न्यूज आउटलेट ने कवर किया था. हमें प्रोटेस्ट के ऐसे ही विजुअल कई वेबसाइट पर मिले.

मतलब साफ है कि करीब 2 साल पुराने बीजेपी लीडर्स के साइलेंट प्रोटेस्ट की फोटो हाल की बताकर भ्रामक दावे से शेयर की जा रही है.

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मास्क से गिरता है ऑक्सीजन लेवल? इस झूठे दावे की पूरी पड़ताल

सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो में एक शख्स ये दावा कर रहा है कि मास्क लगाना नुकसानदायक है. 12 मिनट के इस वीडियो में एक शख्स ये कहता दिख रहा है कि मास्क लगाने की वजह से लोग कम ऑक्सीजन इन्हेल कर पा रहे हैं, जिस वजह से उनकी मौत हो रही है. वीडियो में ये भी दावा किया गया है कि मास्क वायरस रोकने में प्रभावी नहीं है, क्योंकि वायरस के पार्टिकल इतने छोटे होते हैं कि मास्क कि अंदर भी घुस सकते हैं.

वेबकूफ से बातचीत में पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. विकास मौर्य ने भी वायरल वीडियो में किए गए सभी दावों को फेक बताया.हमने हर दावे की एक-एक करके पड़ताल की. पहला दावा था कि 8 घंटे मास्क लगाने से हम कम ऑक्सीजन ले पाते हैं, कुछ समय बाद ऑक्सीजन की कमी होती है

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हमने हर दावे की एक-एक करके पड़ताल की. पहला दावा था कि 8 घंटे मास्क लगाने से हम कम ऑक्सीजन ले पाते हैं, कुछ समय बाद ऑक्सीजन की कमी होती है.

इस दावे की पड़ताल में हमें अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन के रिसर्च जर्नल JAMA में छपी एक रिपोर्ट हमें मिली. वृद्ध लोगों पर की गई इस स्टडी में सामने आया कि मास्क पहनने से ऑक्सीजन लेवल में गिरावट होने का दावा झूठा है. पब्लिक प्लेस में मास्क पहनना असुरक्षित नहीं है.

हम (हेल्थ वर्कर्स) N95 मास्क पूरा दिन पहनते हैं, ऑक्सीजन लेवल गिरने जैसी दिक्कत अब तक नहीं आई. ये बात सच है कि शुरुआत में शरीर को आदत नहीं होती, जो धीरे-धीरे अपने आप हो जाती है.
डॉ. विकास मौर्य, पल्मोनोलॉजिस्ट, फोर्टिस हॉस्पिटल

इसके अलावा, दूसरे दावे जिसमें कहा गया है कि मास्क के छिद्रों से कोरोना वायरस अंदर चला जाता है, की पड़ताल करने पर रिसर्च जर्नल Lancet में छपी रिपोर्ट मिली. जिस मुताबिक, स्टडी में वो वर्ग कोरोना वायरस के दूसरे स्ट्रेन के संक्रमण से ज्यादा सुरक्षित पाया गया, जिसने मास्क पहना था. एक्सपर्ट्स के मुताबिक ये दावा भी झूठा है कि वायरस मास्क के एयरोसोल्स के अंदर से शरीर में घुस जाता है, इसलिए मास्क पहनने का कोई मतलब नहीं.

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तीसरे दावे में कहा गया है कि मास्क पहनने से हाइपोकैप्निया होता है. इसकी पड़ताल में हमने पाया कि अमेरिकी रिसर्च संस्था NCBI की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक, हाइपोकैपिया में शरीर में कार्बन डायऑक्साइड बनना काफी कम हो जाती है. ऐसी कोई रिसर्च रिपोर्ट हमें नहीं मिली जिससे पुष्टि होती हो कि मास्क पहनने से हाइपोकैपिया की समस्या आ सकती है.

इसके अलावा, हमने पड़ताल में ये भी पाया कि WHO ने सभी अस्पतालों से रेमडेसिविर इंजेक्शन हटाने का आदेश नहीं दिया है. हां, नवंबर 2020 में WHO ने रेमडेसिविर इंजेक्शन के संबंध में बयान जारी कर ये जरूर कहा है कि अब तक ऐसा कोई वैज्ञानिक प्रमाण सामने नहीं आया है, जिससे पुष्टि होती हो कि रेमडेसिविर इंजेक्शन कोरोना वायरस के इलाज में कारगर है. WHO ने सिर्फ कोरोना संक्रमण के गंभीर मामलों में रेमडेसिविर इंजेक्शन लगाए जाने की सलाह दी है.

मतलब साफ है - वायरल वीडियो में किया जा रहा ये दावा झूठा है कि मास्क पहनने से ऑक्सीजन लेवल गिरता है और मास्क कोरोना संक्रमण को रोकने में प्रभावी नहीं है. वायरल वीडियो में किए गए अन्य सभी दावे भी वेबकूफ की पड़ताल में भ्रामक साबित हुए.

पूरी पड़ताल पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

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फिलीस्तीन के नहीं हैं नकली मैय्यत निकालते लोग, जॉडर्न का है वीडियो

इजरायल और फिलिस्तीन के बीच चल रहे हालिया विवाद से जोड़कर एक पुराना वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. वीडियो गजा का बताकर दावा किया जा रहा है कि फिलिस्तीनी लोग युद्ध में हुई मौतों को लेकर झूठा दावा कर रहे हैं.

हमारी पड़ताल में सामने आया कि वीडियो मार्च 2020 का है और ये घटना जॉडर्न की है, जब कोरोना कर्फ्यू के दौरान नकली शोक सभा आयोजित की थी.

वीडियो शेयर कर दावा किया जा रहा है कि- आज गाजा में, फिलिस्तीनियों ने एक अंतिम संस्कार का नाटक किया और इसकी तस्वीर खींची. लेकिन तभी एक अलार्म बजने लगापोस्ट का अर्काइव देखने के लिए यहां क्लिक करें

सोर्स : स्क्रीनशॉट/ट्विटरपोस्ट का अर्काइव देखने के लिए यहां क्लिक करें

पड़ताल में हमें इजिप्ट के अखबार Youm7 की रिपोर्ट मिली. 24 मार्च, 2020 की इस रिपोर्ट में बताया गया है कि कोरोना कर्फ्यू के दौरान, घर से बाहर निकलने के लिए कुछ युवाओं ने नकली मैय्यत निकाली थी.

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रिपोर्ट में अबु धाबी की वेबसाइट 24.ae का वह ट्वीट भी है, जिसके साथ ये वीडियो शेयर किया गया है.

मतलब साफ है कि जॉर्डन के पुराने वीडियो को सोशल मीडिया पर इस गलत दावे के साथ शेयर किया जा रहा है कि फिलिस्तीनी लोग हाल में चल रहे संघर्षो में हुई मौतों को लेकर झूठ फैला रहे हैं.

पूरी पड़ताल पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

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