रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध (Russia-Ukraine War) के बीच अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तेल की कीमते आसमान छू रही हैं. रूस पर अमेरिका समेत तमाम पश्चिमी देशों के आर्थिक प्रतिबंधों में तेल से सप्लाई चेन को बुरी तरह प्रभावित किया है. कुछ ही महीनों में क्रूड ऑयल की कीमतें 65 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर 130 डॉलर डॉलर प्रति बैरल से भी अधिक हो गईं.
खास बात है कि यूक्रेन पर रूस के आक्रमण से पहले भी बढ़ती मांग और सप्लाई में लिमिटेड ग्रोथ के कारण क्रूड ऑयल की कीमतें तेजी से चढ़ रही थीं. मौजूदा मुक्त बाजार (फ्री मार्केट) में कई फैक्टर तेल की कीमत में उछाल को ट्रिगर कर सकते हैं.
चूंकि तेल एक वैश्विक वस्तु (ग्लोबल कमॉडिटी) हैं इसलिए दुनिया में कहीं भी इसकी मांग या आपूर्ति में बड़ा बदलाव कीमत में उछाल का कारण बन सकता है. युद्ध, प्रमुख आयातक देशों में तीव्र आर्थिक विकास और आपूर्ति करने वाले देशों की अंदरूनी समस्याएं भी इसका कारण हो सकती हैं.
हम आपको बताते हैं ऑयल इंडस्ट्री के इतिहास की उन घटनाओं को जब तेल की कीमतों में आज की तरह ही छप्पर फाड़ तेजी देखी गयी थी.
योम किप्पुर युद्ध से मची थी खलबली
वैश्विक स्तर पर तेल का उत्पादन 1800 के दशक के बीच में शुरू हुआ और 20वीं सदी के पूर्वार्द्ध में तेजी से बढ़ा. ईरान, इराक, कुवैत, सऊदी अरब और वेनेजुएला ने 1960 में पेट्रोलियम निर्यातक देशों का एक संगठन- OPEC बनाया. साथ ही उन्होंने अपने तेल भंडार का राष्ट्रीयकरण (नेशनलाइजेशन) किया.
बाद के दशकों में मिडिल एस्ट, एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के दूसरे देश भी इस संगठन में शामिल हुए - कुछ अस्थायी रूप से, अन्य स्थायी रूप से.
1973 में ओपेक के अरब सदस्य देशों ने अपने तेल उत्पादन में तब कटौती की जब पश्चिमी देशों ने मिस्र और सीरिया के साथ योम किप्पुर युद्ध में इजरायल को अपना समर्थन दिया. उत्पादक देशों द्वारा सप्लाई में इस कटौती के कारन क्रूड ऑयल की कीमतें चार गुना बढ़कर $ 2.90 प्रति बैरल से बढ़कर 11.65 डॉलर हो गईं.
जवाब में अमीर पश्चिमी देशों के नेताओं ने तेल आपूर्ति को स्थिर करने के लिए पॉलिसी बनाई.
ईरान की क्रांति
योम किप्पुर युद्ध के छह साल बाद जब ईरान की क्रांति ने देश के तेल उत्पादन को रोक दिया तो वैश्विक स्तर पर तेल की कीमतें फिर से दोगुने से अधिक हो गईं. 1979 के मध्य और 1980 के मध्य के बीच क्रूड ऑयल की कीमत 13 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर 34 डॉलर हो गयी.
अगले कई सालों में हीटिंग के लिए और इंडस्ट्री में तेल की जगह प्राकृतिक गैस के प्रयोग को बढ़ाकर और छोटे वाहनों को बढ़ावा देने के साथ आर्थिक मंदी जैसे कई कारकों से तेल की मांग और कीमतों को कम करने में मदद मिली.
इराक का कुवैत पर हमला
तेल की कीमतों में अगला बड़ा उछाल 1990 में आया जब इराक ने कुवैत पर आक्रमण किया. संयुक्त राष्ट्र (UN) ने इराक और कुवैत के साथ व्यापार पर प्रतिबंध लगा दिया जिसके कारण जुलाई 1990 में तेल की कीमतें जहां 15 डॉलर प्रति बैरल थी वो अक्टूबर में लगभग तीन गुनी होकर 42 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गयी.
अमेरिका के साथ उसके सहयोगी देशों की सेना अलगे कुछ महीनों में कुवैत में घुसी और कुछ ही महीनों में इराकी सेना को हरा दिया.
इराक-कुवैत संतक के दौरान सऊदी अरब ने अपने तेल उत्पादन में प्रति दिन 3 मिलियन बैरल से अधिक की वृद्धि की थी ( लगभग जितना इराक सप्लाई करता था). इस वजह से सप्लाई चेन को फिर से मजबूत किया जा सका और तेल की कीमत स्थिर हो सकी.
2005-2008- चीन और भारत ने बढ़ाई मांग
साल 2005-2008 के बीच चीन और भारत में आर्थिक विकास से तेल की डिमांड में तेजी के कारण भी कीमत ऊपर की ओर भागी. उस समय ओपेक लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट की कमी के कारण अपने उत्पादन को बढ़ाने में असमर्थ था.
2010-2014
2010-2014 के बीच
मिडिल एस्ट देशों और उत्तरी अफ्रीका में अरब स्प्रिंग के बीच लोकतंत्र समर्थक विरोध-प्रदर्शन
इराक में संघर्ष
ईरान पर परमाणु हथियार कार्यक्रम को धीमा करने के लिए लगे अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध
इन तीन कारणों ने ऑयल सप्लाई चेन को कमजोर किया और बढ़ती मांग ने कीमतों को बड़ा दिया. इन तीनों कारणों से लगातार चार साल तक तेल की कीमत $ 100 प्रति बैरल से ऊपर ही रही जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है.
2022- रूस-यूक्रेन युद्ध और मांग-आपूर्ति के बीच बड़ा अंतर
24 फरवरी 2022 को यूक्रेन पर रूस के हमले से पहले ही तीन ऐसे बड़े कारक थे जिसने क्रूड ऑयल की कीमतों में आग लगाने का काम किया:
कोरोना महामारी लॉकडाउन से बाहर आने के बाद अर्थव्यवस्था में तेल की मांग अपेक्षा से अधिक तेजी से बढ़ी है.ओपेक+ (ओपेक और रूस के बीच एक साझेदारी) ने अपने उत्पादन को मांग के अनुरूप स्तर पर नहीं बढ़ाया है और न ही अमेरिकी शेल तेल कंपनियों ने.
मांग और आपूर्ति के अंतर को कम करने के लिए देशों ने अपने तेल और ईंधन के भंडार को कम कर दिया है, जिससे कारण देशों के ये इमरजेंसी स्टॉक निचले स्तर पर आ गए हैं.
इन समस्यायों के बीच रूस ने यूक्रेन पर हमला कर इसे और गंभीर बना दिया. Shell, BP और ExxonMobil सहित प्रमुख तेल कंपनियां रूस में अपना ऑपरेशन खत्म कर रही हैं.
स्पॉट मार्केट (जहां तत्काल डिलीवरी के लिए वित्तीय साधनों या वस्तुओं का कारोबार किया जाता है) के खरीदारों ने प्रतिबंधों के डर से समुद्री रूसी कच्चे तेल को अस्वीकार कर दिया है. 8 मार्च को अमेरिका और UK सरकारों ने रूसी तेल के आयात पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की.
समाधान क्या है ?
एक साथ कई कारकों ने तेल की कीमतों को बढ़ाने का काम किया है. एक्सपर्ट्स का मानना है कि OPEC देश- खासकर सऊदी अरब- अपने उत्पादन को बढ़ाकर फौरी तौर पर थोड़ी राहत दे सकता है. दूसरा समाधान ईरान परमाणु समझौते को बहाल करना हो सकता है. इसके बाद ईरान के तेल पर प्रतिबंध हटेगा और से बाजार में तेल की सप्लाई भी बढ़ेगी. हालांकि कीमतों को बहुत कम करने के लिए यह पर्याप्त नहीं है.
गुयाना, नॉर्वे, ब्राजील और वेनेजुएला जैसे छोटे उत्पादक देशों द्वारा अधिक उत्पादन से भी मदद मिलेगी. इन सब उपायों के बीच वर्तमान में यह जानने का कोई तरीका नहीं है कि तेल की कीमतों में आग लगाने वाले कारक कितने समय तक बने रहेंगे या कीमतें आगे और अधिक बढ़ेंगी या नहीं.
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