वीडियो एडिटर: पूर्णेन्दू प्रीतम
News18 से बात करते हुए, पीएम नरेंद्र मोदी को ये कहते हुए सुना गया कि बंगाल में हर फेज के चुनाव के दौरान हिंसा हुई, और इसके उलट, जम्मू और कश्मीर में पंचायत चुनाव पूरी तरह से शांतिपूर्ण थे. हां, बंगाल के चुनावों में हिंसा देखी गई, दशकों से बंगाल के हर चुनाव की तरह जिसमें टीएमसी, वामपंथी अराजक तत्व और इस बार बीजेपी के अराजक तत्वों ने उत्पात मचाया. लेकिन, जम्मू-कश्मीर के पंचायत चुनावों पर आपकी कही बात चौंकाने वाली है.
हम बताते हैं क्यों-
वेबसाइट स्क्रॉल के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर में 70% सरपंच पदों के लिए कोई चुनाव नहीं हुआ! इन सरपंच पदों पर या तो कोई उम्मीदवार नहीं था या सिर्फ एक उम्मीदवार था! इसलिए सरपंच के 30% पदों के लिए ही चुनाव हुआ था. हां, कोई हिंसा नहीं हुई थी, लेकिन पीएम मोदी का ये मतलब निकालना कि ये चुनाव शांतिपूर्ण थे, सही नहीं कहा जा सकता.
क्योंकि इसे शांति नहीं कह सकते. ये एक थोपी गई चुप्पी थी. डर, गुस्सा और अलगाव से पैदा हुई चुप्पी!
पिछले कुछ सालों में जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों ने रणनीतिक रूप से सरपंचों को निशाना बनाया है. उन्हें पीटा, उनका या उनके रिश्तेदारों का अपहरण किया और कई की हत्या कर दी.
- मोहम्मद सुल्तान भट - शोपियां जिले के एक गांव में सरपंच. नवंबर 2014 में आतंकवादियों ने हत्या की.
- गुलाम मोहम्मद मीर - सोपोर जिले के एक गांव में सरपंच. दिसंबर 2014 में आतंकवादियों ने हत्या की.
- गुलाम अहमद भट - सोपोर जिले के एक गांव में सरपंच. दिसंबर 2014 में आतंकवादियों ने हत्या की.
- मोहम्मद अमीन पंडित - पुलवामा जिले के एक गांव में सरपंच. अप्रैल 2015 में आतंकवादियों ने हत्या की.
- एजाज अहमद मलिक - नवंबर 2016 में सुरक्षा बलों द्वारा मारे गए एक सरपंच. वो कांग्रेस मेंबर थे. कांग्रेस ने इसे फर्जी मुठभेड़ बताया. वो 2 महीने तक पुलिस की हिरासत में थे.
- गुलाम रसूल गनाई- अनंतनाग जिले के एक गांव में सरपंच. अक्टूबर 2017 में आतंकवादियों ने हत्या की.
- मोहम्मद रमजान शेख - शोपियां जिले के एक गांव में सरपंच. अक्टूबर 2017 में आतंकवादियों ने हत्या की.
और सिर्फ पंचायत चुनाव ही क्यों देखें? श्रीनगर और अनंतनाग में अभी-अभी खत्म हुए लोकसभा चुनाव का वोटर टर्नआउट देखें.
श्रीनगर में 2014 में 26% मतदान हुआ था. ये 2019 में नाटकीय रूप से 15% तक गिर गया. जम्मू-कश्मीर की राजधानी जहां 85% आबादी है, जिसमें सरकारी कर्मचारी, कारोबारी, मैन्यूफैक्चरर्स, टूरिस्ट टैक्सी मालिक, शिकारा मालिक शामिल हैं- जिनसे हम श्रीनगर में मिलते हैं जब हम वहां छुट्टी मना रहे होते हैं. वे वोट देना पसंद नहीं करते.
तो, हां, मतदान के दिन सड़कों पर शांति हो सकती है. लेकिन ये कैसी शांति है?
अनंतनाग ने 2014 में लगभग 29% मतदान देखा. ये 2019 में 9% गिर गया! यानी 91%... वहां रहने वाले हर 10 में से 9 लोगों ने वोट नहीं देने का विकल्प चुना.
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