ADVERTISEMENTREMOVE AD

Rajasthan Elections: गुर्जर वोट-ERCP मुद्दा, कौन जीतेगा पूर्वी राजस्थान की जंग?

Battle for East Rajasthan: सचिन को दरकिनार करके, कांग्रेस को गुर्जर बहुल सीटो का नुकसान हो सकता है

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

Rajasthan Elections 2023: जैसे-जैसे चुनावी जंग अपने अंतिम चरण में पहुंच रही है, राजस्थान (Rajasthan) की राजनीति रेगिस्तान की रेत की मानिंद अस्थिर हो रही है. राज्य में बीजेपी और कांग्रेस के बीच रस्साकशी जारी है लेकिन एक ऐसा इलाका है, जिसने पिछले तीन दशकों में बदलते इतिहास के साथ किंगमेकर की भूमिका निभाई है. यह इलाका है पूर्वी राजस्थान का.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

पूर्वी राजस्थान क्यों अहम?

पूर्वी राजस्थान वह इलाका है, जहां 15 साल पहले अनुसूचित जाति के आरक्षण को लेकर गुर्जर आंदोलन शुरू हुआ था. पिछले कई दशकों में इस राज्य का यह सबसे उग्र आंदोलन था. यह वही इलाका है, जिसके चलते 2018 में कांग्रेस ने राज्य में सत्ता हासिल की थी. कांग्रेस के अभियान का केंद्रीय मुद्दा, विवादास्पद पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ERCP) भी यहीं शुरू की गई है. इस नहर परियोजना के जरिए इस इलाके के 13 जिलों के लोगों की प्यास बुझाई जाएगी.

इस क्षेत्र में 83 विधानसभा सीटें हैं. 2018 के चुनावों में कांग्रेस ने इनमें से 49 सीटें जीतीं, जबकि बीजेपी को 25 सीटें मिली थीं. गौरतलब है कि बीजेपी पूर्वी राजस्थान के चार जिलों में एक भी सीट नहीं जीत पाई थी.

गुर्जर-मीणा वोट फैक्टर

कई मायनों में 2018 के चुनाव में बीजेपी की हार की पटकथा पूर्वी राजस्थान में लिखी गई थी. इसीलिए कांग्रेस चाहती है कि वह 2018 की अपनी जीत को दोहराए. जातिगत समीकरण के लिहाज से देखा जाए तो इसे अक्सर राजस्थान की गुर्जर-मीणा बेल्ट कहा जाता है.

हालांकि, 2018 में सचिन पायलट के राज्य कांग्रेस प्रमुख के रूप में और मुख्यमंत्री बनने की उम्मीद के साथ, पूर्वी राजस्थान में गुर्जर वोट निर्णायक रूप से कांग्रेस की तरफ खिसक गए. नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस को इस गुर्जर-मीणा बहुल क्षेत्र की 39 में से 35 सीटों पर जीत हासिल हुई, जबकि बीजेपी को सिर्फ तीन सीटें मिलीं.

0

लेकिन पिछले पांच साल के दौरान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच कड़वाहट के चलते गुर्जर सत्तारूढ़ कांग्रेस से झल्ला गए हैं. कई गुर्जरों का कहना है कि सचिन पायलट को अपमानित किया गया है और बहुतों ने कांग्रेस पर 'विश्वासघात' का आरोप लगाया है. उनका कहना है कि कांग्रेस ने सचिन को मुख्यमंत्री बनाने के नाम पर वोट मांगे थे लेकिन बाद में वह अपना वादा भूल गई.

इस चुनाव में सचिन को दरकिनार कर दिया गया है, और कोई बड़ी भूमिका भी नहीं दी गई है. इससे गुर्जर समुदाय में नाराजगी है, जिसके चलते कांग्रेस को गुर्जर बहुल सीटों पर गंभीर झटका लग सकता है.

पूर्वी राजस्थान बीजेपी के प्रचार अभियान की धुरी

बेशक, पूर्वी राजस्थान कांग्रेस और बीजेपी, दोनों के चुनाव अभियानों की धुरी रही है. गुर्जरों में असंतोष को बीजेपी भांप चुकी है, और उन्हें लुभाने की लाख कोशिशें कर रही है.

प्रधानमंत्री फरवरी की शुरुआत से ही इस इलाके में रैलियां कर रहे हैं. इस साल भगवान देवनारायण की जयंती के दौरान वह देवनारायण मंदिर भी गए, जो गुर्जर लोगों के लिए बहुत खास है. बीजेपी के आला नेताओं ने इस क्षेत्र में लगातार रैलियां की हैं और सितंबर में पार्टी प्रमुख जेपी नड्डा ने यहां से बीजेपी की परिवर्तन यात्रा को हरी झंडी दिखाई थी.

पिछले चुनाव में पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन को देखते हुए बीजेपी ने अब इस क्षेत्र में बड़ी बढ़त हासिल करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी है. इस क्षेत्र के लिए बीजेपी उम्मीदवारों की घोषणा सबसे पहले की गई थी. पार्टी की तरफ से मैदान में उतारे गए 7 सांसदों में से 6 पूर्वी राजस्थान में उम्मीदवार हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

एक प्रमुख गुर्जर उम्मीदवार विजय बैंसला हैं, जो कर्नल केएस बैंसला के बेटे हैं. इन्होंने आरक्षण के लिए गुर्जर आंदोलन का नेतृत्व किया था. देवली-उनियारा निर्वाचन क्षेत्र से उनके बेटे को मैदान में उतारकर बीजेपी कर्नल बैंसला की विरासत को भुनाने की कोशिश कर रही है.

गुर्जरों के बीच सचिन पायलट की धाक है, और उसे कम करने के लिए बीजेपी ने अपने दो गुर्जर धुरंधरों को उतारा है, सुखबीर सिंह जौनपुरिया और रमेश बिधूड़ी. दोनों कई हफ्तों से पूर्वी राजस्थान में डेरा डाले हुए हैं. टोंक-सवाई माधोपुर से लोकसभा सांसद जौनपुरिया इस क्षेत्र में बीजेपी का सबसे बड़ा गुर्जर चेहरा हैं.

लोकसभा में सांसद दानिश अली के खिलाफ अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने के कुछ दिन बाद ही बीजेपी ने रमेश बिधूड़ी को टोंक का प्रभारी भी बना दिया था. उत्तर प्रदेश में पहले गुर्जरों के बीच सांप्रदायिक ध्रुवीकरण बहुत काम आया था. बिधूड़ी के जरिए बीजेपी राजस्थान में भी गुर्जर समुदाय के बीच उसी ध्रुवीकरण का इस्तेमाल करना चाहती है. साफ तौर से बीजेपी पुरजोर कोशिश कर रही है कि पायलट फैक्टर का मुकाबला किया जाए और कांग्रेस से गुर्जरों की नाराजगी का फायदा उठाया जाए.

क्या ERCP कांग्रेस का हथियार बन सकती है?

गुर्जर वोटों पर खींचतान के बीच, दोनों पार्टियां दूसरी जातियों/जनजातियों को भी रिझाने का काम कर रही हैं. इस इलाके में मीणा लोग भी अहम समुदाय हैं. मीणा लोगों ने आरक्षण के मुद्दे पर गुर्जरों का कड़ा विरोध किया था. परंपरागत रूप से ऐसा माना जाता है कि अगर गुर्जर वोट एक तरफ जाते हैं, तो मीणा लोग दूसरी तरफ जाएंगे. उन्हें अपने पाले में करने के लिए बीजेपी ने इस क्षेत्र में अपने कद्दावर नेता किरोड़ी लाल मीणा को मुख्य चेहरे के तौर पर मैदान में उतारा है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
बीजेपी इस रणनीति पर काम कर रही है कि इस बार कांग्रेस अपने गुर्जर वोट गंवा सकती है. इसके अलावा वह कांग्रेस के मीणा वोटों में सेंध लगाने की तैयारी में है.

अब इस क्षेत्र में गुर्जरों की नाराजगी और जमीनी हकीकत से कांग्रेस अच्छी तरह वाकिफ है. इसीलिए उसने ईआरसीपी या पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना को राष्ट्रीय दर्जा देने की मांग को अहम मुद्दा बनाया है.

अक्टूबर में पार्टी ने इस परियोजना के तहत 13 जिलों में यात्रा निकाली थी. इस चुनावी अभियान के दौरान ईआरसीपी चर्चा का मुद्दा रही. एक तरफ कांग्रेस इस परियोजना को इलाके के जल संकट को दूर करने का जरिया बता रही है, वहीं बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि कांग्रेस ने इस परियोजना के नाम पर लोगों के साथ दगाबाजी की है, और अपना वादा पूरा नहीं किया है.

कांग्रेस का कहना है कि केंद्र सरकार ने इस परियोजना को अनदेखा किया और गहलोत सरकार ने इसके लिए 25,000 करोड़ रुपए का आवंटन किया. यह इलाका पानी की कमी से जूझ रहा है. घरेलू और सिंचाई की जरूरतों के लिए यह परियोजना महत्वपूर्ण है, इसीलिए ERCP को राजनीतिक शोहरत हासिल हुई है.

जल संकट से राजनीतिक घमासान छिड़ा

सालों से ईआरसीपी को लेकर मुख्यमंत्री गहलोत और केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के बीच तीखी नोंकझोंक होती रही है. शेखावत राजस्थान से ही हैं. जहां कांग्रेस ने केंद्र पर जानबूझकर ईआरसीपी को राष्ट्रीय दर्जा देने से इनकार करने का आरोप लगाया, वहीं बीजेपी का दावा है कि कांग्रेस इस परियोजना को लागू नहीं कर रही, बल्कि उस पर राजनीति कर रही है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

आरोप-प्रत्यारोपों के बीच, एक सच यह भी है कि इस महत्वपूर्ण जल परियोजना में सालों की देरी हुई है. इससे बीजेपी परास्त भी हुई है, क्योंकि उसने इस परियोजना को पूरा करने के लिए कोई खास काम नहीं किया है. चूंकि पानी का मामला, हरेक की कमजोरी है. इसलिए कांग्रेस को उम्मीद है कि ईआरसीपी का मुद्दा मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा करेगा और क्षेत्र में गुर्जरों की नाराजगी से निपटने में मदद करेगा.

कांग्रेस के बढ़ते दबाव के कारण इस क्षेत्र में हाल ही में एक सार्वजनिक रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने मजबूरन वादा किया कि बीजेपी चुनाव के बाद प्राथमिकता के आधार पर ईआरसीपी को पूरा करेगी. हालांकि इस बारे में कोई खास जानकारी नहीं मिली है.

दलित वोट बैंक पर विवाद

गौरतलब है कि इस क्षेत्र में दलित वोट भी एक अहम फैक्टर है. 2018 में कांग्रेस ने अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित 59 सीटों में से 31 सीटें जीती थीं, और बीजेपी को सिर्फ 21 सीटें मिली थीं. अनुसूचित जातियों की 34 सीटों में से कांग्रेस ने 19 सीटें जीती थीं, जबकि बीजेपी को 11 सीटें मिली थीं. लेकिन बीजेपी का प्रदर्शन इतना खराब था कि उसे पूर्वी राजस्थान के सात जिलों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति की एक भी सीट नहीं मिली थी.

हैरानी नहीं कि इस बार के चुनावी अभियान में बीजेपी और कांग्रेस एक दूसरे को दलित विरोधी साबित करने पर उतारू हैं.

बीजेपी राज्य में दलितों पर होने वाले अत्याचारों की दुहाई दे रही है. पूर्वी राजस्थान में एक चुनावी रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने यहां तक कह दिया कि कांग्रेस दलित विरोधी पार्टी है, क्योंकि उसने देश के पहले दलित मुख्य सूचना आयुक्त, हीरालाल सामरिया की नियुक्ति का विरोध किया और रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति बनाने का भी.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

बदले में कुछ ही घंटों के भीतर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पलटवार किया. उन्होंने दावा किया कि कांग्रेस के एक दलबदलू नेता, जिस पर दलित इंजीनियर की पिटाई का आरोप है, को अपना उम्मीदवार बनाकर बीजेपी ने अपने दलित विरोधी नजरिए को ही जाहिर किया है.

गौरतलब है कि धौलपुर जिले में दलित इंजीनियर हर्षाधिपति वाल्मिकी से मारपीट के आरोप में मौजूदा विधायक गिर्राज सिंह मलिंगा को कांग्रेस ने टिकट देने से इनकार कर दिया था, लेकिन उन्हें तुरंत बीजेपी का टिकट मिल गया. बाद में राहुल गांधी ने कहा कि दलितों को कुछ 'सजावटी आला पद' दे देना काफी नहीं है, इसके बजाय उन्हें अधिक भागीदारी, और देश की पॉवर सिस्टम में जगह दी जानी चाहिए.

कुल मिलाकर पूर्वी राजस्थान में यह एक जबरदस्त, लेकिन दिलचस्प चुनावी लड़ाई है. अपनी कल्याणकारी योजनाओं और गारंटियों के अलावा, कांग्रेस इस क्षेत्र में ईआरसीपी को एक मुद्दे के रूप में इस्तेमाल कर रही है. दूसरी तरफ बीजेपी को गुर्जर वोटों का सहारा है. वह सत्ता विरोधी लहर और मोदी के जादू पर उम्मीदें टिकाए हुए है. यह एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है जो रूख पलट सकता है, और राजस्थान में चुनावी फैसले पर निर्णायक असर डाल सकता है.

(लेखक एक अनुभवी पत्रकार और राजस्थान की राजनीति के विशेषज्ञ हैं. वह एनडीटीवी में रेजिडेंट एडिटर रह चुके हैं और जयपुर में राजस्थान विश्वविद्यालय में पत्रकारिता के प्रोफेसर भी रहे हैं. वह @rajanmahan पर ट्वीट करते हैं. यह एक ओपिनियन पीस है. ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए ज़िम्मेदार है.)

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×