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बाइडेन-पुतिन मुलाकात के बावजूद अनिश्चित हैं अमेरिका-रूस संबंध

Joe Biden-Vladimir Putin के बीच जेनेवा में हुए बैठक के क्या मायने हैं?

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पहले किसी को सोललेस किलर यानी निर्मम हत्यारा कहना और फिर उसके साथ चार घंटे बैठकर बातें करना आसान नहीं हो सकता, लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन (Joe Biden) ने ऐसा ही किया, जब उन्होंने हाल ही में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) के साथ जेनेवा के 18th सेंचुरी लेकसाइड विला में अपनी पहली शिखर बैठक के दौरान मुलाकात की.

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सबसे पहले एक नजर बाइडेन-पुतिन समिट की पृष्ठभूमि पर

हालिया दिनों में अमेरिका और रूस के संबंधों में गिरावट देखने को मिली है. अमेरिकी चुनावों में रूसी हस्तक्षेप के आरोप लगे इसके साथ ही क्रीमिया के रूसी कब्जे पर अमेरिका का गुस्सा भी जगजाहिर है. वहीं पूर्वी यूक्रेन में सैन्य उपस्थिति, मानवाधिकारों का हनन और अमेरिकी संपत्तियों पर रैंसमवेयर हमलों ने संयुक्त रूप से यूएस-रूस संबंधों को एक नए निचले स्तर पर ले जाने का काम किया है. जैसे को तैसा की होड़ में वाणिज्य दूतावासों को बंद कर दिया गया और राजदूतों को वापस बुलाने का काम भी किया गया.

अमेरिकी संस्थान और उसके सहयोगियों ने रूस की कार्रवाइयों का जवाब तोड़ दिया. एक ओर जहां अमेरिकी संस्थान रूस के खिलाफ बोल रहे थे वहीं तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप 2018 के हेलसिंकी शिखर सम्मेलन में अंतर्विरोध दूर के लिए सार्वजनिक रूप से अपनी खुफिया एजेंसियों के खिलाफ बोलकर पुतिन का साथ दिया था. उनकी इस हरकत की काफी आलोचना भी हुई थी.

रूस के साथ संबंधों को सुधारने या फिर से शुरू करने का वादा करते हुए जो बाइडेन सत्ता में नहीं आए हैं. इसलिए दोनों के संबंधों में या तो तनातनी बनी रहने या उसके और ज्यादा गहराने की उम्मीद थी. यह उम्मीद की गई थी कि विदेश नीति का लंबा अनुभव और रूस के साथ आधी सदी डील करने के बाद बाइडन पुतिन से सख्ती से निपटेंगे.

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पहली मुलाकात से उम्मीदें

यह शिखर वार्ता दृढ़ इरादे को प्रदर्शित करने, महत्वपूर्ण मुद्दों को संबोधित करने और दोनों परस्पर धुर विरोधी नेताओं के विरोध को एक मंच पर लाने के लिए बहुत जरूरी थी.

हालांकि इस शिखर सम्मेलन से उम्मीदें कम ही रखी गई थीं. इस समिट को शीत युद्ध की समिट जैसी रहस्यमयी और रोमांचकारी नहीं होना था. जिसमें दुनिया किसी बड़ी सफलता, नाटकीय तौर पर हाथ मिलाने या जंगल में टहलने जैसी घटनाओं की उम्मीद लगाए बैठी रहती थी. इसमें बातचीत का प्रमुख मुद्दा हेयर-ट्रिगर अलर्ट पर न्यूक्लियर-टिप्ड मिसाइल नहीं, बल्कि दुर्भावनापूर्ण कंप्यूटर मैलवेयर होना था.

यदि जिनेवा शिखर सम्मेलन सौहार्दपूर्ण ढंग से संपन्न होता तो इससे तनाव कम करने और कामकाजी संबंधों को बहाल करने में मदद मिलनी थी. इस समिट के होने मात्र से शांतिपूर्ण ढंग से संबंध बहाली की कूटनीति वापस आती और डोनाल्ड ट्रंप के समय की अप्रत्याशित और नाटकीय व्यवहारों की यादें मिटनी थीं.

मामूली उद्देश्यों को देखते हुए जिनेवा शिखर सम्मेलन सफल रहा, क्योंकि बाइडेन-पुतिन दोनों ने रचनात्मक और व्यावहारिक भावना से बैठक में हिस्सा लिया. इस बैठक में कोई दिखावा नहीं किया गया.

दोनों ने साथ प्रेंस कॉन्फ्रेंस न करके अपने बीच के मतभेदों को सार्वजनिक तौर पर जाहिर नहीं होने दिया. उन्होंने इस बैठक को सकारात्मक रूप से दिखाने का काम किया. लेकिन इसके साथ ही उन्होंने अपने-अपने स्टैंड पर बने रहने का काम भी किया. इस समिट में सहयोग के साथ-साथ मतभेदों के मुद्दों पर भी चर्चा की गई ताकि उनको हल करने के रास्ते निकाले जा सकें. उनके कामकाजी रिश्तों की शुरुआत के सबूत भी सामने आ गए हैं क्योंकि दो राजदूतों की अपने पदों पर वापसी हो गई है.

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अमेरिका और रूस के बीच विस्तारित ‘न्यू स्टार्ट समझौता'

प्रेस वार्ता में की गई चर्चा से कुछ विशेष बातें सामने आईं.

बाइडेन ने महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे के 16 क्षेत्रों की लिस्ट दी, जिन्हें रैंसमवेयर और अन्य माध्यमों से टारगेट नहीं किया जाना चाहिए. साथ ही साथ उन्होंने धमकी भरे शब्दों का प्रयोग न करते हुए भी यह स्पष्ट कर दिया कि अमेरिका महत्वपूर्ण रूसी संपत्तियों के खिलाफ जवाबी कार्रवाई कर सकता है.

इसमें आश्चर्य नहीं कि पुतिन ने किसी भी जिम्मेदारी से इनकार किया. रैंसमवेयर हमले को आसानी से ट्रेस नहीं किया जा सकता है और इसलिए यह समस्या का महत्वपूर्ण हिस्सा है. उम्मीद की जा रही है कि एक्सपर्ट्स का समूह आएगा और इस विशिष्ट मामले पर सीमा के परे जाकर काम करेगा और उसपर लगातार नजर रखते हुए काम करेगा. वहीं एक अन्य समूह हथियार नियंत्रण के मुद्दों पर काम करेगा और "रणनीतिक स्थिरता वार्ता’ शुरू करेगा. दोनों पक्षों ने पहले ही न्यू स्टार्ट ट्रीटी का विस्तार कर दिया है. इस बातचीत के आगे बढ़ने की उम्मीद है और आधुनिक हथियारों के मुद्दे पर भी चर्चा होगी.

मानवाधिकारों का उल्लंघन और असहमति का दमन

इस समिट के दौरान बाइडेन ने अपेक्षित रूप से रूस में मानवाधिकारों के हनन और असंतोष को दबाने का मुद्दा उठाया. उन्होंने खासतौर पर एलेक्सी नावालनी और "गलत तरीके से कैद’ दो अमेरिकियों का मुद्दा उठाया. पुतिन की प्रतिक्रिया भी अपेक्षित थी नवलनी का नाम लिए बिना उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि रूसी राजनीति में जो होता है वह उनका अंदरुनी मामला है और जो मानवाधिकार कार्यकर्ता थे वे सिर्फ अमेरिकी एजेंट थे. उन्होंने अमेरिकी ज्यादतियों और मानवाधिकारों के हनन के मामलों को उठाकर इस मुद्दे का विरोध किया. यहां यह ध्यान देने वाली बात है कि बाइडेन ने कहा है कि यदि जेल में नवलनी की मौत होती है तो इसके परिणाम "रूस के लिए विनाशकारी’ होंगे.

अमेरिका और रूस के बीच अन्य मामलों में वार्ता का परिणाम बेहतर रहा. इस बातचीत के बाद ऐसा लग रहा है कि अफगानिस्तान में आतंकवाद का मुकाबला करने, सीरिया में मानवीय सहायता प्रदान करने और ईरान को न्यूक्लियर ईरान बनने से रोकने जैसे मुद्दों पर दोनों एक-दूसरे का सहयोग करेंगे.

आर्कटिक में बर्फ पिघलने के कारण वहां दोनों देशों के रणनीतिक हित बढ़ रहे हैं. इस मामले पर सहयोग के नजरिए से चर्चा की गई न कि संघर्ष के दृष्टिकोण से. हालांकि इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि यूक्रेन और बेलारूस को लेकर दोनों के बीच मतभेद बने रहते हैं.

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यूएस-रूस संबंधों के लिए आगे क्या?

दोनों ही पक्षों के लिए परिणाम सकारात्मक रहे हैं.

समिट के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन विदेश नीति के साथ-साथ यूरोपीय और नाटो सहयोगियों को एकजुट करने और सत्तावाद के खिलाफ लोकतांत्रिक दुनिया के नेता के रूप में अमेरिकी इरादों को प्रदर्शित करते हुए सहज थे. जहां संभव हो वहां उन्होंने भागीदारी को आगे बढ़ाया और जरूरत के मुताबिक प्रतिरोध भी जताया. इसके साथ ही उन्होंने यह भी जताया कि लोकतांत्रिक मूल्यों से किसी प्रकार से समझौता नहीं हो सकता है. इस तरह उन्होंने रूस के साथ संबंधों को घरेलू राजनीतिक की बहस से बाहर निकाल कर विदेश नीति का मुद्दा बना दिया है.

राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी इस समिट को एक सफलता के तौर पर भुनाएंगे. इस समिट के दौरान उन्होंने जिनेवा में सेंट्रल-स्टेज का आनंद लिया और रूस को अमेरिका की तरह एक महान शक्ति के रूप में प्रस्तुत किया. उन्होंने खुद को ऐसा दिखाया कि वह व्यावहारिक और रचनात्मक हैं. वे व्यापार करने के लिए तैयार तो हैं लेकिन किसी भी तरह के समझौते के लिए नहीं. उन्होंने केवल व्यवहारिक स्वार्थ का प्रदर्शन किया, किसी भी तरह की गर्मजोशी या मित्रता की पेशकश नहीं की.

अमेरिका के साथ इन शर्तों पर काम करना रूस के लिए नुकसानदायक नहीं है, बल्कि यह रूस को अमेरिका के बराबर महान शक्ति की कतार में वापस ले लाया है. इससे रूस को आंतरिक मुद्दों और चरमाराई हुए अर्थव्यवस्था को संभालने और अन्य रिश्तों को सही करने के लिए एक अवसर मिलेगा. लेकिन इस बात की परीक्षा निश्चित रूप से होगी कि दोनों देशों के बीच यह कामकाजी संबंध वास्तव में कितना स्थिर और अनुमानित होगा. क्या अमेरिका रूसी व्यवहार में बदलाव को समझेगा? अगर नहीं, तो क्या बाइडेन जो कुछ बोलकर आए हैं उस पर पालन करते हुए कार्रवाई भी करेंगे? कुछ क्षेत्रों में सहयोग से क्या दूसरे क्षेत्रों में एक दूसरे के बारे में नकारात्मक सोच को कम करने में मदद मिलेगी?

क्या होगा ये वक्त ही बताएगा और जैसा कि जो बाइडेन ने कहा कि "अगले तीन से छह महीने दोनों के संबंधों की प्रगति को मापने में महत्वपूर्ण होंगे.’

(नवतेज सरना संयुक्त राज्य अमेरिका में भारत के पूर्व राजदूत रह चुके हैं. इसमें व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)

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