एक शानदार जीत के बाद 26 मई, 2014 को नरेंद्र मोदी ने भारत के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी. उनसे भारी उम्मीदें जुड़ी हुई थीं. इस शपथ ग्रहण समारोह में जिन भाग्यशाली लोगों ने शिरकत की थी, उनमें से एक मैं भी था. तब मैं अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का लेफ्टिनेंट गवर्नर था. 4 जून, 2014 को मुझे उनसे बातचीत करने का मौका मिला और मैंने उन्हें इस क्षेत्र की चुनौतियों के बारे में बताया.
मैंने सुरक्षा बलों जैसे कई दूसरे मुद्दों के बारे में भी उनसे बातचीत की और इस पर लिखा एक पेपर पेश किया. इसमें दो महत्वपूर्ण मुद्दों को मैंने खास तौर से दर्शाया था- पहला, नेशनल वॉर मेमोरियल का निर्माण और इंटिग्रेटेड थियेटर कमांड्स के साथ सीडीएस की नियुक्ति. प्रधानमंत्री हमेशा से सब कुछ धैर्यपूर्वक सुनते हैं, वह एक अच्छे श्रोता हैं. सो, उन्होंने भरोसा दिलाया कि ये दोनों विषय उनके ध्यान में हैं, और उनकी पार्टी बीजेपी के एजेंडा में भी शामिल हैं.
मोदी ने रक्षा क्षेत्र में महत्वपूर्ण पहल की
इसमें पांच साल लगे, लेकिन प्रधानमंत्री ने दोनों विषयों पर महत्वपूर्ण पहल की. देश भर में इन कदमों का स्वागत किया गया. इस लेख में प्रधानमंत्री के दूसरे कार्यकाल के पहले वर्ष के समाप्त होने पर सरकार के प्रदर्शन का विश्लेषण किया गया है, खास तौर से राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा के क्षेत्र के विशेष संदर्भ के साथ.
मोदी 2.0 से पहले फरवरी 2019 में दो ऐतिहासिक घटनाएं हुईं, जिन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा पर सरकार की स्पष्टता और संकल्प को दर्शाया:
- नेशनल वॉर मेमोरियल का मुद्दा: इसे सबसे पहले 1960 में पेश किया गया था. अक्टूबर 2015 में केंद्रीय कैबिनेट ने नेशनल वॉर मेमोरियल बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी. दिल्ली के इंडिया गेट पर बने इस मेमोरियल का उद्घाटन प्रधानमंत्री मोदी ने 25 फरवरी, 2019 को किया. जैसे ही उन्होंने अनंत ज्योति जलाई, देश ने उन तमाम वीर जवानों को श्रद्धांजलि अर्पित की, जिन्होंने आजादी के बाद से युद्धों और संघर्षों में भारत की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दी है. इसके साथ ही एक प्रतिज्ञा पूरी हुई.
- बालाकोट हवाई हमला, पाकिस्तान को सबक: 26 फरवरी, 2018 की सुबह भारतीय लड़ाकू विमानों ने जम्मू और कश्मीर की नियंत्रण रेखा को पार किया और पाकिस्तान के बालाकोट शहर के आस-पास हवाई हमले किए. हमले की पुष्टि करते हुए भारत ने इसे आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों पर जवाबी कार्रवाई बताया जोकि पुलवामा आत्मघाती बम हमले के बदले में की गई थी. पुलवामा में सीआरपीएफ के लगभग 40 जवान शहीद हुए थे. बालाकोट में भारत की साहसिक कार्रवाई ने पाकिस्तान के छद्म युद्ध से निपटने में एक ‘न्यू नॉर्मल’ को स्थापित किया और पारंपरिक प्रतिक्रिया के लिए फिर से जगह बनाई.
चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ, सैन्य मामलों के विभाग और एंटिग्रेटेड थियेटर कमांड- एक अन्य उल्लेखनीय कदम
पिछले साल स्वतंत्रता दिवस पर अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) की नियुक्ति की घोषणा की. रक्षा सुधारों में यह एक ऐतिहासिक कदम था. दिसंबर में जनरल बिपिन रावत को पहला सीडीएस बनाया गया और साथ ही सैन्य मामलों के विभाग (डीएमए) का गठन किया गया. यह रक्षा मंत्रालय का एक अलग वर्टिकल है, और सीडीएस उसके पदेन सचिव हैं. इन दोनों कदमों से नागरिक और सैन्य संबंधों को एक नई दिशा और संतुलन मिलेगा. इसके अतिरिक्त इंटिग्रेटेड थियेटर कमांड के जरिए ऐसे सुधार किए गए हैं, जो भारतीय रक्षा बलों को 21वीं सदी के आधुनिक रक्षा बल के रूप में स्थापित करेंगे.
अब यह दायित्व रक्षा बलों पर है कि वे इस मौके का भरपूर फायदा उठाएं और इन सुधारों को सफल बनाएं- न सिर्फ अपने, बल्कि देश हित के लिए भी. बेशक, प्रधानमंत्री ने इस संकल्प को भी पूरा किया.
जम्मू और कश्मीर का नया दौर और यथास्थिति की समाप्ति
जम्मू और कश्मीर में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक साहसिक और बड़ी घोषणा की. 5 अगस्त, 2019 को मंत्रालय ने ऐलान किया कि सरकार अनुच्छेद 370 को हटाने जा रही है और राज्य को क्रमशः दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख में बांटा जाएगा. अगस्त 2019 में संसद ने जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 को पारित किया और 2019 में ही जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को राष्ट्रपति के आदेश के साथ समाप्त कर दिया गया.
यह निश्चित रूप से यथास्थिति को तोड़ने और जम्मू कश्मीर में मौजूद डर के माहौल को समाप्त करने की कोशिश थी.
देश भर में इस कदम का स्वागत किया गया, लेकिन इसे जल्दबाजी का फैसला बताया गया. इस बात पर भी लोगों ने रोष जाहिर किया कि इसका तरीका सही नहीं था. जिन लोगों को उम्मीद थी कि इस कदम से जम्मू कश्मीर में शांति कायम होगी, वे नौ महीने गुजर जाने के बाद भी निराश ही हैं. पाकिस्तान छद्म युद्ध की आग में लगातार घी डालने का काम कर रहा है और भारत की धैर्य की परीक्षा ले रहा है. हालांकि अभी किसी नतीजे पर पहुंचना जल्दबाजी होगी, लेकिन एक बात स्पष्ट है- यह एक लंबी दौड़ है और पाकिस्तान और उसके छद्म युद्ध से निपटने के लिए एक विशेष रणनीति की जरूरत होगी. केंद्र शासित प्रदेश के अंदरूनी हालात को काबू करने के लिए भी खास रणनीति अपनानी होगी.
डिफेंस साइबर, स्पेस और स्पेशल ऑपरेशंस एजेंसी/डिविजन
एक काम और अधूरा था. 2018 में अक्टूबर महीने में डिफेंस साइबर और स्पेस एजेंसियों तथा एक स्पेशल ऑपरेशंस डिविजन के गठन के आदेश दिए गए. मई 2019 में इन त्रिसेवा संगठनों के प्रमुखों की नियुक्ति की गई. सितंबर 2022 तक इन संगठनों के नियम कायदे पूरे कर लिए जाएंगे. इन संगठनों के प्रमुख चीफ्स ऑफ स्टाफ कमिटी को रिपोर्ट करेंगे, जोकि इसका स्थायी अध्यक्ष होगा. यह रणनीतिक- परिचालनगत स्तर
पर आला क्षमताओं के निर्माण की दिशा में एक बड़ा कदम है जिसकी जरूरत लंबे समय से रही है. हमें उम्मीद है कि आने वाले समय में इसे त्रिसेवा कमांड के स्तर पर अपग्रेड किया जाएगा.
रक्षा क्षेत्र के दूसरे सुधार
सरकार ने रक्षा खरीद में मेक इन इंडिया अभियान को गति देनी शुरू की है. डीपीपी में बदलाव किए जा रहे हैं, नेगेटिव इंपोर्ट लिस्ट जारी की गई है और एफडीआई को 49% से बढ़ाकर 74% किया है. पूंजीगत खरीद के लिए खास तौर से बजटीय सहयोग न मिलने के कारण सशस्त्र बलों का आधुनिकीकरण नहीं हो पाया है. हमें उम्मीद है कि वित्त मंत्री देश में बनने वाले वाले उपकरणें के लिए अलग से बजट निर्धारित करेंगी. बदले में सशस्त्र बल इंट्रा/इंटर सर्विसेज़ की अपनी प्राथमिकताएं स्पष्ट करेंगे जोकि अब सीडीएस का चार्टर है.
इसी प्रकार रक्षा अनुसंधान, मैन्यूफैक्चरिंग और खरीद एजेंसियों की जवाबदेही तय की जाएगी. सार्वजनिक और निजी क्षेत्र, दोनों में-और ऑर्डिनेंस फैक्ट्रियों का निगमीकरण इस दिशा में उठाया गया कदम है.
भारत-चीन सीमा के अग्रिम मोर्चों पर बुनियादी ढांचे के निर्माण को प्रोत्साहित किया जा रहा है, और साथ ही उन देशों के साथ रक्षा सहयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है जिनके साथ संबंध बनाना हमारे हित में है. इससे लंबे समय से लटकी रणनीतिक परियोजनाओं को लागू किया जा सकेगा.
कमियां और चुनौतियां
राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति का अभाव
भारत में अब तक कोई राष्ट्रीय सुरक्षा नीति मौजूद नहीं है, हालांकि इसकी जरूरत काफी पहले से है. इसके लिए कई मसौदे तैयार किए गए लेकिन ब्यूरोक्रेटिक हेरारकी यह काम करने से हिचकचाती रही है. राजनीतिक इच्छा शक्ति भी दिखाई नहीं दी है. 20वीं सदी में एक दुविधा के माहौल के चलते राजनीतिक स्तर पर नेतागण यह फैसला नहीं ले पाए लेकिन 21वीं में भारत ने उच्च स्तर पर अपनी जगह बनाई है और अब इसकी कमी साफ तौर पर नजर आ रही है. अब यह कोई कठिन प्रस्ताव नहीं और इसका अंतिम मसौदा आने वाले महीनों में सर्कुलेट किया जा सकता है. हमें पूरी उम्मीद है कि मोदी 2.0 के तहत इसे जल्द मंजूरी मिलेगी.
चूंकि सुरक्षा मामलों में रक्षा क्षेत्र की बड़ी मुख्य भूमिका है, इसलिए इसमें कोई संदेह नहीं कि रक्षा पृष्ठभूमि वाले किसी डिप्टी एनएसए को एनएसए के सैन्य सलाहकार के रूप में नियुक्त किया जाएगा.
पाकिस्तान से निपटने के लिए विशिष्ट रणनीति
लंबे समय से पाकिस्तान से निपटने के लिए एक खास रणनीति की जरूरत महसूस की जाती रही है. हालांकि बालाकोट ने भारत की सहनशीलता की सीमा को स्पष्ट किया था, लेकिन पाकिस्तान उस दहलीज को पार करके नित नई मुसीबतें बढ़ा रहा है. पाकिस्तान से बातचीत न करने की मौजूदा रणनीति नाकाम साबित हुई है. दिन ब दिन पाकिस्तान की घरेलू और अंतरराष्ट्रीय परेशानियां बढ़ रही हैं और इसे एक मौके के तौर पर देखा जा सकता है. चूंकि प्रधानमंत्री को व्यापक समर्थन हासिल है, इसलिए कुछ निर्भीक और व्यापक कदम उठाए जा सकते हैं.
कोविड-19 से भी हुआ नुकसान
कोविड-19 के कारण राष्ट्रीय सुरक्षा को दो बड़े नुकसान हुए:
- रक्षा बजट में कटौती: हालांकि कम समय के लिए तो यह कटौती उचित है लेकिन आने वाले समय में चुनौतियां विकट हो सकती हैं जो दिनों दिन बढ़ेंगी. रक्षा बजट में कटौती करने से जोखिम और बढ़ सकता है.
- बड़े पैमाने पर प्रवासी मजदूरों का अपने गांव लौटना: प्रवासी मजदूरों ने जिस पैमाने पर अपने गांवों की तरफ कूच किया है, उससे हमारे सिस्टम की कमियां ही उजागर होती हैं. साथ ही इसमें क्षेत्रवाद भी नजर आता है, जहां लोगों की राज्य स्तरीय से अधिक अखिल भारतीय पहचान बनी है. इंडिया-भारत के बीच की इस ऊंची खाई से राष्ट्रीय सुरक्षा को भी खतरा पैदा हो सकता है जिसे देखा और परखा जाना चाहिए.
इसके अतिरिक्त सशस्त्र बलों से जुड़े कुछ और मुद्दे भी हैं, जैसे एनएफयू न देना, (जोकि बाकी सभी सेवाओं को दिया जाता है). ऐसे मुद्दों से मौजूदा सरकार के कार्यकाल में ही निपटा जाना चाहिए.
मोदी 2.0 में राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा क्षेत्र में सक्रिय और भरोसेमंद शुरुआत हुई है. प्रधानमंत्री मोदी की सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि रक्षा सुधार एक राजनैतिक जिम्मेदारी है और उनके राजनैतिक नेतृत्व में वह अपने वादे पूरे करेगी. अगले चार वर्ष आशाजनक प्रतीत होते हैं.
(लेफ्टिनेंट जनरल ए. के सिंह (सेवानिवृत्त) लेफ्टिनेंट गवर्नर और सेना के कमांडर रह चुके हैं. इसके अलावा वह क्लॉज के विशिष्ट फेलो और जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के सलाहकार भी रह चुके हैं. यह एक विचार प्रधान लेख है और इसमें व्यक्त किए गए विचार लेखक के स्वयं के हैं. द क्विंट इनकी पुष्टि नहीं करता और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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