चंद हफ्ते पहले दिल्ली में आरएसएस (RSS) के बड़े नेताओं की बैठक हुई. अंदर से खबर यही निकली कि यूपी पर जमकर माथापच्ची हुई. अब खबर आ रही है कि संघ यूपी पर फिर मंथन करने जा रहा है. जब ये खबरें आ रही हैं तो कुछ सुर्खियों से कदमताल कर रही हैं. जैसे यूपी बीजेपी (BJP) का एक नेता कह रहा है कि यूपी में चुनाव योगी के नेतृत्व में लड़ा जाएगा तो दूसरा बोल रहा है-अगला मुख्यमंत्री पद का दावेदार कौन होगा, ये तो आलाकमान तय करेगा.
यूपी पर बैक टू बैक संघ में मंथन
यूपी चुनाव से पहले बीजेपी और संघ में किस कदर बेचैनी है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है जून के बाद जुलाई में यूपी पर संघ बैठक कर रहा है. बीएल संतोष अभी यूपी घूमकर आए और फिर वही चल दिए. इससे पहले योगी ने दिल्ली में मैराथन मुलाकातें कीं. बीजेपी जो खुद को सर्वशक्तिमान बताती है और सर्वविद्यमान हो जाना चाहती है उसे राम की कृपा प्राप्त राज्य में इतनी बेचैनी क्यों हो रही है? कई कारण हैं.
कोई कह सकता है कि योगी के नेतृत्व को लेकर उठाए गए तमाम सवाल सिर्फ कयास हैं. कोरोना के कुप्रबंधन को लेकर पिछले महीनों में योगी सरकार के कामकाज के खिलाफ कई बेजीपी नेता खुलकर बोले हैं, ये पुरानी कहानी हो गई. लेकिन अब जो यूपी के श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने कह दिया है, उससे कयास की गुंजाइश भी खत्म हो गई. मौर्य ने कहा कि योगी अगले सीएम उम्मीदवार होंगे या नहीं ये तो आलाकमान तय करेगा.इतना ही नहीं डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य भी कह चुके हैं कि पार्टी में सीएम कैंडिडेट आलाकमान तय करता है.
ये अपने आप में किसी भी पार्टी के लिए सामान्य हो सकती थी लेकिन ये बात खास इसलिए हो गई क्योंकि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने कुछ दिन पहले ही कहा था कि पार्टी योगी के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ेगी. योगी को लेकर प्रदेश के वरिष्ठ बीजपी नेताओं की दो तरह की बातों से कई बातें निकलती हैं.
क्या प्रदेश बीजेपी में योगी के नेतृत्व को लेकर असमंजस की स्थिति है?
क्या दोनों मौर्य प्रदेश अध्यक्ष से अलग बोली किसी के इशारे पर बोल रहे हैं?
'जो तुमको हो पसंद' छाप खबरों की बाढ़ के बावजूद बीजेपी नेताओं का योगी के 'एकछत्र' नेतृत्व पर सवाल उठाना बताता है कि उन्हें पब्लिक के मूड का बहुत कुछ अंदाजा है.
जब संकट हो तब तो सबका साथ चाहिए लेकिन यूपी बीजेपी में उल्टा हो रहा है. इन सारी परिस्थितियों में संघ के अंदर यूपी को लेकर सरगर्मियां चौंकाती नहीं हैं. ऐसा लगता है कि यूपी में बीजेपी की डगमगाती नैया की खेवैया अब संघ ही है.
बात सिर्फ बैक टू बैक यूपी मंथन की नहीं है, जनवरी से जून तक काम के इंतजार में बैठे पीएमओ से लखनऊ आए एके शर्मा को पार्टी का प्रदेश उपाध्यक्ष बनाना काफी कुछ कहता है. एक कांग्रेस नेता ने पूछा भी कि क्या पीएमओ से यूपी उपाध्यक्ष बनने आए थे. एके शर्मा पीएम के भरोसेमंद थे. चर्चा थी कि वो डिप्टी सीएम बनाए जाएंगे. कहते हैं आलाकमान की भी यही इच्छा थी, लेकिन योगी को आपत्ति थी. संभव है झगड़ा शांत कराने के लिए संघ ने बीच का रास्ता निकाला. न एमएलसी न, डिप्टी सीएम, उपाध्यक्ष बनाइए.
संतोष गंगवार जैसे सीनियर लीडर की चिट्ठी और यूपी में खुलेआम योगी के कामकाज का विरोध, आलाकमान की नाफरमानी, पंचायत चुनाव में हार....इन सबके बावजूद के बावजूद योगी यूपी में अचर हैं, तो ये संघ की माया है. सबका साथ, पार्टी का विकास-लगता है कि यूपी में संघ का फिलहाल यही मंत्र है. मोदी को चुनौती के बावजूद योगी ही क्यों, संघ के दीर्घकालीन एजेंडे में जवाब ढूंढना चाहिए.
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