advertisement
सोशल मीडिया पर इस सप्ताह भी कई भ्रामक और गलत दावों की भरमार रही. कभी किसी खबर को गलत सांप्रदायिक रूप देकर शेयर किया गया तो कभी विधानसभा चुनावों वाले राज्यों से संबंधित भ्रामक खबरें वायरल की गईं.
अजय देवगन की दिल्ली में पिटाई की झूठी खबर से लेकर भगत सिंह के अंतिम संस्कार की वायरल फोटो तक और बंगाल चुनाव से जुड़ी भ्रामक खबरों से लेकर बीजेपी नेता वसीम रिजवी से मारपीट के दावे वाले वीडियो तक. इस हफ्ते हमने ऐसी ही कई फेक खबरों की पड़ताल की और सच आप तक पहुंचाया.
सोशल मीडिया पर इस सप्ताह किए गए ऐसे ही भ्रामक और गलत दावों का सच एक नजर में जानिए.
चार राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में होने जा रहे विधानसभा चुनावों की वोटिंग शुरू हो चुकी है. इसी बीच सोशल मीडिया पर दावा किया जा रहा है कि तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल चुनाव के नतीजों का एक आकलन सामने आया है, दावा किया जा रहा है ये आकलन इटेलीजेंस ब्यूरो (IB) और इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (I-PAC) का है.
सर्वे को फेसबुक और ट्विटर पर शेयर किया जा रहा है.
इंटेलीजेंस ब्यूरो (IB) केंद्रीय गृह मंत्रालय के अंतर्गत काम करने वाली भारतीय जांच एजेंसी है. इसकी स्थापना आजादी से पहले 1887 में हुई थी.
इकनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली के साल 2005 के आर्टिकल के मुताबिक, गृह मंत्रालय ने कहा कि राजनीतिक और सामाजिक टकराव से जुड़ी सूचना का प्रमुख सोर्स IB है.
प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो ने भी IB नाम पर शेयर की जा रही सर्वे रिपोर्टस को फेक बताया है.
वायरल हो रही दोनों ही सर्वे रिपोर्ट्स में बीजेपी को हारता दिखाया गया है. लेकिन, I-PAC के नाम पर वायरल हो रहे सर्वे में दिखाया गया है कि पश्चिम बंगाल की नंदीग्राम सीट पर बीजेपी जीत रही है. हालांकि, I-PAC के ऑफिशियल हैंडल से ट्वीट कर इस सर्वे को फेक बताया जा चुका है.
वायरल हो रहे कथित सर्वे डॉक्यूमेंट को ध्यान से देखने पर इसमें ‘Prateek Jain’ के हस्ताक्षर भी देखे जा सकते हैं. I-PAC के को-फाउंडर और डायरेक्टर प्रतीक जैन ने ट्वीट कर बताया कि यहां उनके नाम की स्पेलिंग तक गलत लिखी है.
वायरल स्क्रीनशॉट में तृणमूल कांग्रेस के लिए ‘AITMC’ लिखा हुआ है. जबकि पार्टी के नाम के लिए ‘TMC’ या ‘AITC’ का इस्तेमाल होता है, ‘AITMC नहीं. मतलब साफ है कि ये वायरल आकलन फेक है.
पूरी पड़ताल यहां पढ़ें
ISKCON, कोलकाता के वाइस प्रेसीडेंट और प्रवक्ता Radharamn Das ने इस वीडियो को शेयर कर दावा किया है कि 'जिहादियों' ने बुलंदशहर में होली मना रहे हिंदुओं पर एसिड फेंका.
हालांकि, बाद में इस ट्वीट को डिलीट कर लिया गया. कई यूजर्स ने इस ट्वीट के स्क्रीनशॉट को ट्विटर और फेसबुक पर शेयर कर बताया है कि ये झूठा दावा है. इन पोस्ट को आप यहां, यहां और यहां देख सकते हैं.
पड़ताल में हमने पाया कि Radharamn Das के ट्वीट पर बुलंदशहर पुलिस ने जवाब दिया था. जिसमें बताया गया था कि घटना में शामिल दोनों शख्स की पहचान टिंकू और रोहित के तौर हुई है. ये घटना खानपुर इलाके में हुई है.
इस घटना में तीसरा कोई शामिल नहीं था. ट्वीट के मुताबिक, टिंकू ने होली के जश्न के दौरान नाचते समय अनजाने में शराब की बोतल की जगह एसिड की बोतल सर पर फोड़ ली.
हमें Times of India में भी घटना से जुड़ी रिपोर्ट मिली. क्विंट की वेबकूफ टीम से बातचीत में बुलंदशहर एसएसपी संतोष कुमार सिंह ने इस दावे को गलत बताया कि घटना में शामिल शख्स मुस्लिम थे.
मतलब साफ है कि होली का जश्न मनाते दो लड़कों का वीडियो, जिसमें एक अपने सिर पर एसिड की बोतल फोड़ते हुए दिख रहा है, इस गलत दावे से शेयर किया जा रहा है कि इस घटना के पीछे 'जिहादियों' का हाथ है.
पूरी पड़ताल यहां पढ़ें
कुछ लोगों के बीच हुए विवाद का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. वीडियो को इस गलत दावे से शेयर किया जा रहा है कि एनडीए सरकार के विवादास्पद कृषि कानूनों का सपोर्ट करने वाले एक्टर अजय देवगन को इन कानूनों का विरोध करने वाले किसान पीट रहे हैं.
इस वीडियो को शेयर कर दावा किया जा रहा है: “पहले बीजेपी विधायक अब अजय देवगन की धुलाई, ये क्या हो रहा है? भाजपा की धुलाई मशीन खराब हो गई क्या जो जनता इन्हे धो रही है??”
पड़ताल में हमें बॉलीवुड एक्टर के साथ हाल ही में हुई किसी मारपीट की कोई रिपोर्ट नहीं मिली. जिसकी वजह से हमने वीडियो को कई कीफ्रेम में बांटा और एक कीफ्रेमको रिवर्स इमेज सर्च करके देखा.
हमें India Today की ओर से 27 मार्च को अपलोड किया गया यही वीडियो मिला.
India Today की रिपोर्ट के मुताबिक, ये वायरल वीडियो दिल्ली के एयरोसिटी का है जहां कार भिड़ने की वजह से दो गुट आपस में भिड़ गए थे.
इस वीडियो पर NDTV की भी एक रिपोर्ट मिली. जिसमें इस घटना से संबंधित यही जानकारी बताई गई थी.
मतलब साफ है कि दिल्ली में हुए दो गुटों के बीच विवाद के वीडियो को इस गलत दावे से शेयर किया जा रहा है कि विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों ने अजय देवगन के साथ इसलिये मारपीट की क्योंकि उन्होंने किसान कानूनों का समर्थन किया था.
पूरी पड़ताल यहां पढ़ें
सोशल मीडिया पर अंतिम संस्कार की एक ब्लैक एंड व्हाइट फोटो इस दावे से वायरल है कि ये फोटो स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के अंतिम संस्कार की है. इस फोटो में सैकड़ों लोग दिख रहे हैं.
इस फोटो को कई यूजर्स ने फेसबुक और ट्विटर पर शेयर किया है. फोटो के कैप्शन में लिखा गया है, ''ये तस्वीर शहीद भगत सिंह , सुखदेव और राजगुरु के अंतिम संस्कार की है. हो सके तो इसे हर भारतीय तक पहुंचाने की कोशिश करें.''
पड़ताल में हमें वो रिपोर्ट्स और ब्लॉग मिले जिनमें इस फोटो को इस्तेमाल किया गया था. ये रिपोर्ट्स और ब्लॉग साल 1978 में अमृतसर में सिखों और निरंकारियों के बीच हुए संघर्ष और जनसंहार के बारे में थे.
निरंकारी, सिख धर्म का एक संप्रदाय है और ये बाबा बूटा सिंह के अनुयायी हैं. बाबा बूटा सिंह ने 1929 में संत निरंकारी मिशन की स्थापना की थी. The Indian Express की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ये संप्रदाय "धर्मनिरपेक्ष, आध्यात्मिक संप्रदाय और किसी भी धर्म से संबद्ध नहीं होने का दावा करता है और इस बात से इनकार करता है कि सिखों का उन पर कोई अधिकार है.''
इस समूह ने 'कुर्बानी' नाम की एक किताब पब्लिश की थी, जिसमें इस घटना के बारे में बताया गया था. किताब के 71वें पेज पर वायरल हो रही फोटो का इस्तेमाल किया गया है. किताब के मुताबिक, ये लड़ाई तब शुरू हुई जब निरंकारियों ने कथित रूप से गुरु ग्रंथ साहिब और सिख धर्म के खिलाफ नारे लगाए.
क्विंट की वेबकूफ टीम ने भगत सिंह के भतीजे अभय सिंह संधू से भी संपर्क किया. उन्होंने बताया कि वायरल फोटो को गलत दावे से शेयर किया जा रहा है. ये फोटो 1978 की है, 1931 में हुए स्वतंत्रता सेनानियों के अंतिम संस्कार की नहीं.
मतलब साफ है कि अमृतसर में 1978 में निरंकारियों के साथ हुए संघर्ष में मारे गए सिखों के अंतिम संस्कार की फोटो को इस झूठे दावे के साथ शेयर किया जा रहा है कि ये फोटो स्वतंत्रता सेनानियों और क्रांतिकारियों भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के अंतिम संस्कार की है.
पूरी पड़ताल यहां पढ़ें
पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के दौरान कई यूजर्स सोशल मीडिया पर ये गलत दावा कर रहे हैं कि तृणमूल कांग्रेस (TMC) कैंडिडेट सायनी घोष कथित रूप से ''अपनी पार्टी के सदस्यों से परेशान होकर'' आसनसोल में चुनाव प्रचार के दौरान दौड़ने पर मजबूर हो गईं.
हालांकि, घोष ने अपने सोशल मीडिया हैंडल्स पर कई वीडियो डाले हैं जिनमें वो अलग-अलग दिनों में चुनाव प्रचार के दौरान कई बार दौड़ी हैं. इसके अलावा, क्विंट के ग्राउंड रिपोर्टर देबायन दत्ता ने भी इस बात की पुष्टि की है कि उन्होंने खुद सायनी को चुनाव प्रचार में दौड़ते हुए देखा है.
राइट विंग वेबसाइट Opindia के सोमवार, 22 मार्च को प्रकाशित एक आर्टिकल की हेडलाइन थी: "बंगाल: आसनसोल से TMC कैंडिडेट एक्टर सायनी घोष अपनी ही पार्टी के सदस्यों से परेशान होकर दौड़ने पर हुईं मजबूर.''
रिपोर्ट में ETV Bharat के हवाले से लिखा गया था कि रविवार को बर्नपुर में चुनाव प्रचार के दौरान TMC कैंडिडेट को ''उनकी ही पार्टी के सदस्यों ने परेशान किया''.
कई सोशल मीडिया यूजर्स ने ट्विटर और फेसबुक पर ETV Bharat के वीडियो को ये दिखाने के लिए शेयर किया है कि घोष कथित रूप से परेशान किए जाने के बाद दौड़ने लगीं.
पड़ताल में हमने पाया कि TMC कैंडिडेट सायनी घोष ने आसनसोल में अपने चुनाव प्रचार से जुड़े कई वीडियो सोशल मीडिया हैंडल्स पर अपलोड किए हैं. नीचे दिए गए वीडियो के 2 मिनट 39 सेकंड पर उन्हें चुनाव प्रचार के दौरान दौड़ते हुए देखा जा सकता है.
हमने सायनी घोष के प्रेस नोट को देखा. हमें घोष के चुनाव प्रचार को लेकर किए जा रहे दावों पर उनका दिया जवाब मिला.
उन्होंने आगे कहा कि कुछ मीडिया हाउसेस की कवरेज में ''फैक्चुअल न्यूज'' की कमी है.
प्रेस नोट में ये भी लिखा है कि ''दीदी और हमारी पार्टी के सदस्यों ने मुझे अपने चुनाव प्रचार को जिस तरह करना चाहूं वैसे करने की आजादी दी है. मुझे विपक्ष की टिप्पणी हास्यास्पद लगी. वे किसी को अपने पक्ष में लाने में सक्षम नहीं हैं. इसलिए, वो कुछ भी कह रहे हैं. कुछ मीडिया हाउस की कवरेज देखकर मुझे हैरानी हुई. इनमें फैक्चुअल और सही न्यूज की कमी है.''
हमारे ग्राउंड रिपोर्टर देबायन दत्ता ने बताया ‘’इस इलाके में वो कई बार अपने चुनाव प्रचार के दौरान दौड़ीं. उनके आस-पास हर समय काफी सुरक्षा मौजूद थी. यहां तक कि उनके पार्टी के सदस्यों ने भी उनके चारों ओर सुरक्षा घेरा बना रखा था.’’
सायनी घोष के प्रेस नोट में ऐसा कोई दावा नहीं किया गया है कि उन्हें परेशान किया गया. मतलब साफ है कि अपने चुनाव प्रचार के दौरान दौड़तीं सायनी के वीडियो को इस गलत दावे से शेयर किया जा रहा है कि उन्हें ''उनकी ही पार्टी के लोगों ने परेशान किया.''
ETV Bharat के जिस आर्टिकल का Opindia ने अपनी रिपोर्ट में हवाला दिया था उस आर्टिकल में ये दावा नहीं किया गया था कि घोष को उनकी ही पार्टी के लोगों ने परेशान किया.
पूरी पड़ताल यहां पढ़ें
पश्चिम बंगाल, केरल, असम, पुदुचेरी और तमिलनाडु में विधानसभा चुनावों के चलते कई राजनीतिक पार्टियों के नेता चुनाव प्रचार कर रहे हैं. ऐसे समय में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की फोटो के साथ खाली पड़ी कुर्सियों की फोटो का एक सेट वायरल हो रहा है.
तस्वीरों का सेट शेयर कर ये दावा किया जा रहा है, ''अभी तो आगाज है, अंजाम क्या होगा.''
हमने Yandex पर उस फोटो को रिवर्स इमेज सर्च करके देखा जिसमें खाली पड़ी कुर्सियां दिख रही हैं. हमें इस फोटो से संबंधित साल 2019 में शेयर किया गया एक ट्वीट मिला जिसमें बताया गया था कि फोटो यूपी के वाराणसी की है.
हमें कीवर्ड सर्च करने पर, 2018 में अपलोड किया गया एक वीडियो मिला. इसे बीजेपी के ऑफिशियल हैंडल से अपलोड किया गया था.
वीडियो के कैप्शन में लिखा गया था कि अमित शाह ने वाराणसी में 20 जनवरी 2018 को युवा उद्घोष रैली में भाषण दिया.
अमित शाह ने भी इस इवेंट के बारे में साल 2018 में ट्वीट किया था. उन्होंने वही कपड़े पहन रखे हैं जो वायरल हो रही फोटो में दिख रहे हैं.
Navbharat Times और Amar Ujala जैसे मीडिया आउटलेट ने भी इस रैली में खाली पड़ी कुर्सियों के विजुअल वाली तस्वीरों का इस्तेमाल किया था. Navbharat Times की रिपोर्ट में बताया गया था कि जितना अनुमान लगाया गया था उतनी संख्या में लोग नहीं आए. इसकी वजह से हजारों की संख्या में कुर्सियां खाली रह गईं. हालांकि, Live Hindustan और Amar Ujala में प्रकाशित रिपोर्ट्स में इस रैली में आई भीड़ के विजुअल भी दिखाए गए थे.
मतलब साफ है कि वाराणसी में रैली को संबोधित करते अमित शाह की पुरानी तस्वीरों को विधानसभा चुनावों के बीच भ्रामक दावे से फिर से शेयर किया जा रहा है.
पूरी पड़ताल यहां पढ़ें
बीजेपी विधायक अरुण नारंग पर पंजाब में किसानों के हमले का वीडियो सोशल मीडिया पर शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी पर हुए हमले का बताकर शेयर किया जा रहा है. सैय्यद वसीम रिजवी ने हाल में कुरान की 26 आयातों को हटाने के लिए सुप्रीम में एक याचिका दायर की थी.
वीडियो के साथ शेयर किया जा रहा कैप्शन है - वसीम रिजवी की हालत देखो
यूपी शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी सुप्रीम कोर्ट में कुरान की 26 आयतें हटाने की याचिका दायर करने को लेकर विवादों में हैं. रिजवी का दावा है कि ये आयतें हिंसा को बढ़ावा देती हैं. ऐसी कोई मीडिया रिपोर्ट नहीं है, जिससे पुष्टि होती हो कि वसीम रिज्वी के साथ प्रदर्शनकारियों ने मारपीट की है.
हमने वायरल वीडियो के की-फ्रेम्स को रिवर्स सर्च किया. टाइम्स ऑफ इंडिया और इंडिया टुडे वेबसाइट पर 28 मार्च को अपलोड किया गया वीडियो हमें मिला.
इन रिपोर्ट्स के मुताबिक वीडियो में बीजेपी विधायक अरुण नारंग पर गुस्साए किसानों के हमले का है. एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, जब नारंग स्थानीय नेताओं के साथ मलोट में प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए पहुंचे, तो उन्हें प्रदर्शनकारी किसानों ने घेर लिया और उनपर स्याही फेंक दी.
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी ट्विटर पर इस हमली की निंदा की थी.
मतलब साफ है - बीजेपी विधायक पर किसानों के हमले का वीडियो सोशल मीडिया पर गलत दावे के साथ शेयर किया जा रहा है.
पूरी पड़ताल यहां पढ़ें
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)