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चर्च पर बढ़ते हमलों के बीच सोशल मीडिया पर भी ईसाई धर्म के खिलाफ बढ़ी हेट स्पीच

सोशल मीडिया पर खुलेआम लोग मिशनरी स्कूल पर हमले में शामिल होना स्वीकार रहे, फेक न्यूज के हथियार का भी इस्तेमाल हो रहा

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पिछले तीन महीनों में देश के अलग-अलग हिस्सों से अचानक चर्च (Church) और मिशनरी स्कूल (Missionary School) पर हुए हमलों की एक नहीं कई घटनाएं सामने आई हैं. हमलों के पीछे एक कॉमन आरोप है ''धर्मान्तरण को बढ़ावा''. पहली नजर में ये घटनाएं भले ही इत्तेफाक लगती हों. क्या ये महज संयोग है कि इसी दौरान सोशल मीडिया पर ईसाई समुदाय के खिलाफ हेट स्पीच बढ़ती नजर आती है. हमारी पड़ताल में पता लगा कि ईसाइयों और चर्च के खिलाफ इन महीने में जमकर जहर उगला जा रहा है.

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सोशल मीडिया पर लगातार हेट स्पीच को बढ़ावा देते हैंडल्स, ग्रुप्स में संगठित तौर पर न सिर्फ इन हमलों को जायज ठहराया जा रहा है बल्कि ईसाई समुदाय के विरोध में एक नैरेटिव बनाने की कोशिश हो रही है.

कई बार तो ईसाई धर्म के खिलाफ माहौल तैयार करने के लिए फेक न्यूज तक फैलाई गई, जिसकी पड़ताल क्विंट की वेबकूफ टीम ने की. यानी ऑफलाइन हमलों के साथ-साथ नफरत फैलाने के लिए ऑनलाइन हथकंडों का भी भरपूर इस्तेमाल हो रहा है.

एक नजर हाल में चर्च और मिशनरी स्कूलों पर हुई हमले की घटनाओं पर 

सोशल मीडिया पर ईसाई धर्म के खिलाफ किस तरह नैरेटिव बनाया जा रहा है ये इन सोशल मीडिया पोस्ट्स में ही देखा जा सकता है.

हिंदुजन नाम के इस फेसबुक अकाउंट पर एक नहीं ईसाई धर्म के खिलाफ किए गए कई पोस्ट मिलेंगे. इस पोस्ट में तो सीधे तौर पर मिशनरी स्कूल पर हमले के लिए भड़काया जा रहा है.

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सोशल मीडिया पर खुलकर कर रहे ऐलान, हमने किया हमला

किसी स्कूल पर हमला करना अपराध है. आमतौर पर लोग अपराध छिपाते हैं, लेकिन ईसाई धर्म के खिलाफ सोशल मीडिया पर जो माहौल बन रहा है, उसमें लोग खुलकर मिशनरी स्कूल पर हुए हमले में अपनी मौजूदगी दिखा रहे हैं. 12 दिसंबर के इन सोशल मीडिया पोस्ट्स को देखिए. कैसे मध्यप्रदेश के गंजबासोदा में मिशनरी स्कूल पर हमले से जुड़ी तस्वीरें ऐसे शेयर कीं, जैसे उन्हें गर्व हो कि उन्होंने किस तरह कानून व्यवस्था की धज्जियां उड़ाईं.

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ईसाई धर्म के खिलाफ नफरत को बढ़ावा देते ट्विटर हैंडल

ट्विटर पर पिछले 2-3 महीनों से ऐसे कई हैंडल ज्यादा सक्रिय हो गए हैं, जो दावा करते हैं कि वो हिंदू धर्म के लोगों को धर्मान्तरण से बचने के लिए जागरुक करते हैं. ऐसा ही एक हैंडल है Mission Kaali - Say No To Conversion. ईसाई धर्म को लेकर कई आपत्तिजनक ट्वीट किए जाते हैं. हालांकि, ये हेट् स्पीच से जुड़ी पोस्ट करने वाला मामूली सोशल मीडिया हैंडल नहीं है. ट्विटर बायो में संगठन को डोनेशन देने का लिंक है.

इसी नाम से एक यूट्यूब चैनल भी है, जहां फिक्शनल वीडियो अपलोड किए जाते हैं. अधिकतर वीडियो ईसाई धर्मान्तरण पर ही आधारित हैं. ये सब देखकर समझना मुश्किल नहीं है कि इस तरह के हैंडल्स के पीछे एक पूरी टीम एक खास नैरेटिव सेट करने के लिए काम करती है.

ईसाई धर्मांतरण को एक बड़े खतरे की तरह पेश करता ये इकलौता ट्विटर हैंडल नहीं, No Conversion और Agniveer अग्निवीर जैसे कई ट्विटर हैंडल पिछले कुछ महीनों से ये नैरेटिव फैलाने में सक्रिय दिख रहे हैं.

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Fake News के जरिए भी ईसाई समुदाय पर साधा जा रहा निशाना

एक तरफ जहां सोशल मीडिया पर खुले तौर पर ईसाई धर्म को लेकर नफरत भरे पोस्ट हैं. तो दूसरी तरफ चालाकी के साथ फेक न्यूज के जरिए भी ईसाई धर्म के खिलाफ नैरेटिव बनाने की कोशिश हो रही है. इस तरह के दावों में अक्टूबर के बाद तेजी आई है. क्विंट की वेबकूफ टीम लगातार ऐसे दावों की पड़ताल कर रही है.

अक्टूबर में ही सोशल मीडिया पर सुदर्शन न्यूज के एडिटर इन चीफ सुरेश चव्हाणके ने एक ट्वीट करते हुए दावा किया कि ईसाई टीचर हिंदू छात्र को इसलिए पीट रहा है, क्योंकि उसने रुद्राक्ष पहना था.

जब हमने चव्हाणके द्वारा शेयर किए गए वीडियो की पड़ताल की तो सामने आया कि यहां कोई सांप्रदायिक मामला था ही नहीं. स्टूडेंट को बेरहमी से पीटने वाला टीचर भी हिंदू समुदाय से ही था. हालांकि, ये इकलौता मामला नहीं, ऐसे और भी उदाहरण हैं.

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फेसबुक और ट्विटर पर एक तरफ ये परसेप्शन कायम करने की कोशिश हो रही है कि पंजाब में तेजी से लोगों का जबरन ईसाई धर्म में धर्मान्तरण कराया जा रहा है. इस नैरेटिव को सही साबित करने के लिए झूठे दावों का सहारा लिया जा रहा है. पंजाब के नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को लेकर भी ऐसा ही दावा किया गया. बपतिस्मा करते एक अन्य शख्स का वीडियो शेयर कर दावा किया गया कि पंजाब सीएम ने ईसाई धर्म अपना लिया.

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नवंबर में एक वीडियो शेयर कर ये दावा किया गया कि Andhra Pradesh में भगवान बालाजी की रथयात्रा में ईसाई 'क्रॉस' के झंडे फहराए गए. हालांकि, हमारी पड़ताल में सामने आया कि वीडियो अमरावती पदयात्रा का है. ये 45 दिनों की पदयात्रा किसानों ने अमरावती को आंध्र प्रदेश की राजधानी बनाने की मांग के लिए निकाली थी. वीडियो में दिख रहा रथ धार्मिक नहीं बल्कि किसानों की पदयात्रा का है

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