होली के त्यौहार पर जब आप रंगों की खुशियां मना रहे थे, उसी समय बिहार के कई घरों में बेरंग मातम पसरा हुआ था. अलग-अलग जिलों में जहरीली शराब पीने की वजह से दर्जनों लोगों की मौत हो गई. कहीं चोरी-छिपे आधी रात को लाशें जला दी गईं, तो कहीं प्रशासन के दबाव में परिजनों ने बीमारी का हवाला देकर पोस्टमॉर्टम तक कराने से इंकार कर दिया. होली के दो दिनों में बिहार में कम से कम 40 लोगों की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हुई है, आरोप है कि इसकी वजह जहरीली शराब है. होली पर भागलपुर, बांका, मधेपुरा और सीवान जैसे जिलों से बड़ी संख्या में मौतों की खबरें आईं, जबकि कई जगहों पर तो इन खबरों को भी दफना दिया गया. जिन मृतकों का पोस्टमॉर्टम हुआ उनकी मेडिकल रिपोर्ट में शराब की पुष्टि हुई है. लेकिन हैरानी की बात ये है कि जिस भागलपुर जिले में कथित जहरीली शराब से बीते दिनों में सबसे ज्यादा मौतें हुई हैं, वहां के डीएम ने ये कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया कि परिजनों ने पोस्टमॉर्टम कराने की इच्छा नहीं जताई, इसलिए उनका पोस्टमॉर्टम नहीं कराया गया. जबकि, बांका के डीएम और एसपी ने बिना पोस्टमॉर्टम कराए ही इन मौतों के पीछे जहरीली शराब होने की बात को सिरे से नकार दिया.
बिहार में जहरीली शराब से मौतों का आंकड़ा दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है. जिस वक्त आप ये खबर पढ़ रहे हैं, सम्भव है कि बिहार के किसी कोने में जहरीली शराब से किसी ने दम तोड़ दिया हो. हालात ये हैं कि किसी एक जगह से मौत की खबरें पूरी भी नहीं होतीं कि किसी दूसरी जगह से मौतों की खबर आ जाती है. होली से ठीक पहले भी 10 दिनों में ही भागलपुर, गोपालगंज, सीवान, कटिहार और बेतिया में दो दर्जन से ज्यादा संदिग्ध मौतें हुई थीं, आरोप है कि ये मौतें जहरीली शराब के कारण हुई थीं. इसी साल जनवरी में एक हफ्ते के भीतर ही नालंदा में 13, सारण में 17 और बक्सर में 6 लोगों की मौत रिपोर्ट हुई थी. जनवरी से मार्च के बीच में भी कई जगहों से संदिग्ध मौतें रिपोर्ट हुई हैं. पिछले साल अक्टूबर और नवंबर में 15 दिनों के भीतर गोपालगंज, बेतिया, समस्तीपुर और बक्सर जैसे जिलों में करीब 60 लोगों की मौत हुई थी. सिर्फ पिछले 5 महीनों में ही बिहार में जहरीली शराब से करीब 200 मौतें रिपोर्ट हुई हैं, जबकि कई मौतें तो दर्ज ही नहीं हुईं.
दरअसल, शराबबंदी के बाद बिहार में देशी शराब का धंधा अप्रत्याशित तौर पर बढ़ चुका है. बिहार के गांव-गांव में कच्ची शराब की भठ्ठियां खुल चुकी हैं, जहां बनने वाली शराब जानलेवा साबित हो रही है. सिर्फ पाउच में मिलने वाली देशी शराब ही जान नहीं ले रही, बल्कि शराब के धंधेबाज विदेशी शराब की बोतलों में भी मिलावटी शराब बेच रहे हैं, जिससे जानें जा रही हैं. पहले सस्ती विदेशी शराब पीने वाले अवैध शराब महंगी होने की वजह से देशी शराब पीने लगे हैं. इसके आलावा बिहार में ड्रग्स का इस्तेमाल भी काफी बढ़ गया है और युवा दूसरे तरीके के नशों की ओर आकर्षित हो रहे हैं, जो ज्यादा खतरनाक साबित हो रहा है. शराब के धंधेबाजों ने बिहार में एक समानांतर अर्थव्यवस्था खड़ी कर ली है. आरोप है कि बड़े शराब माफिया दूसरे राज्यों में बैठकर अपना सिंडिकेट चला रहे हैं और बिहार में पुलिस छोटे धंधेबाजों को पकड़कर अपनी पीठ थपथपाती रहती है.
दावा है कि प्रशासन भी नीचे से लेकर ऊपर तक इस अर्थव्यवस्था का हिस्सा बन चुका है. हालांकि, बिहार में शराब के धंधेबाजों पर लगाम लगाने के लिए नीतीश कुमार ने पूरे पुलिस महकमे को लगाया हुआ है. अब तो घर-घर सर्च ऑपरेशन के साथ ही बिहार पुलिस और मद्य निषेध विभाग नदियों में मोटरबोट का भी इस्तेमाल कर रही है. इतना ही नहीं, हवा से नजर रखने के लिए बिहार सरकार हेलीकॉप्टर और ड्रोन की मदद ले रही है. लेकिन इन सारे प्रयासों का कोई खास नतीजा नजर नहीं आ रहा, सरकार न तो शराब के धंधेबाजों पर लगाम लगा पा रही है और न ही उसका सेवन करने वालों पर.
बिहार में खुद पुलिस और प्रशासन पर शराब माफियाओं के साथ मिलकर शराब बिकवाने का आरोप लगता रहता है. कई जगहों पर तो थाने से ही शराब का धंधा चलाने की खबर आती रही है. ये आरोप सिर्फ आम लोग नहीं, बल्कि सत्ताधारी दलों के नेता भी लगाते रहे हैं. चाहे बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल हों या हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के अध्यक्ष जीतन राम मांझी या फिर विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा, पुलिस और शराब माफियाओं की सांठ-गांठ के आरोप लगाकर सहयोगी दलों के नेताओं ने कई मौकों पर नीतीश कुमार के लिए असहज स्थिति खड़ी की है. विपक्ष के साथ ही एनडीए के घटक दल भी शराबबंदी कानून की समीक्षा की मांग कर चुके हैं. सिर्फ नेता ही नहीं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट ने भी कई मौकों पर बिहार सरकार के शराबबंदी कानून पर सवाल खड़े किए हैं. अदालतों पर लगातार बढ़ते दबाव को देखते हुए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एन वी रमना शराबबंदी कानून को अदूरदर्शी फैसला तक करार कर चुके हैं. बिहार की भौगोलिक स्थिति, सिस्टम में व्याप्त भ्रष्टाचार और लोगों का नशे के प्रति रुझान वो कारक हैं, जो शराबबंदी की व्यावहारिकता पर भी हमेशा सवाल खड़े करते रहे हैं.
शराबबंदी नीतीश कुमार की महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक है. 2016 में बिहार विधानमंडल से सर्वसम्मति से शराबबंदी कानून पास होने के बाद नीतीश कुमार को महिलाओं का बड़ा समर्थन हासिल हुआ. यही वजह है कि 2020 के चुनाव में घोर एंटी इंकम्बेंसी होने के बावजूद महिलाओं ने नीतीश कुमार की नैया पार लगा दी. बिहार में कई बार जहरीली शराब कांड हो चुके हैं. लेकिन 2020 में फिर से मुख्यमंत्री बनने के बाद शराबबंदी, नीतीश कुमार के गले की फांस बनता जा रहा है. बीते डेढ़ साल में जहरीली शराब से जितनी मौतें हुई हैं, शायद इससे पहले कभी नहीं हुईं. हाल ही में नीतीश कुमार ने अपनी समाज सुधार यात्रा के दौरान बिहार के कोने-कोने में जाकर लोगों को शराबबंदी के प्रति जागरुक करने की कोशिश की. इसके इतर भी वो तमाम मौकों पर शराबबंदी को जरूरी बताते हुए लोगों से इस कानून का पालन करने की अपील करते रहे हैं.
लेकिन जो महिलाएं शराबबंदी के मुद्दे पर नीतीश कुमार के साथ खड़ी नजर आती थीं, उनमें से कई अब इसके विरोध में हैं. इसका कारण है उनके किसी अपने का जेल में होना और तमाम कोशिशों के बावजूद बेल न मिलना. सुप्रीम कोर्ट की फटकार, जेलों पर बढ़ते दबाव और लोगों में बढ़ते गुस्से को देखते हुए ही नीतीश कुमार ने शराबबंदी कानून में दोबारा संशोधन करने का फैसला लिया है, जिसमें शराब पीकर पकड़े जाने वालों को कुछ रियायतें दी जाएंगी. लेकिन जहरीली शराब से होने वाली मौतों में आई इस अप्रत्याशित वृद्धि को रोकने का कोई भी प्लान फिलहाल सरकार के पास नजर नहीं आ रहा.
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