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सोरेन पर ED शिंकजा,कांग्रेस MLA की गिरफ्तारी, झारखंड में भी चल रहा 'ऑपरेशन कमल'?

पश्चिम बंगाल से झारखंड कांग्रेस के 3 MLA कैश के साथ पकड़े गए, पार्टी ने इसे बीजेपी की साजिश बताया है

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झारखंड में क्या हेमंत सोरेन की सरकार खंड-खंड हो जाएगी? क्या महाराष्ट्र के बाद अब 'ऑपरेशन लोटस' का अगला मिशन झारखंड है? क्या कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायकों को बीजेपी अपने पाले में लाने के लिए साम दाम दण्ड भेद का रास्ता अपना रही है? ये सवाल इसलिए है क्योंकि झारखंड में जो हो रहा है वो संयोग कम प्रयोग ज्यादा लग रहा है.

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'ऑपरेशन लोटस' फिलहाल फेल?

पश्चिम बंगाल के हावड़ा से झारखंड कांग्रेस के तीन विधायक भारी मात्रा में कैश के साथ पकड़े गए हैं. यही नहीं बेरमो से कांग्रेस विधायक अनूप सिंह ने बीजेपी पर आरोप लगाया है कि सोरेन सरकार को गिराने के लिए उन्हें 10 करोड़ रुपए ऑफर हुए थे और उन्हें बीजेपी नेता और असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा से मिलाने के लिए गुवाहाटी चलने को कहा गया था.

विधायक अनूप सिंह ने दर्ज एफआईआर में कहा है कि कांग्रेस के तीन विधायक डॉ इरफान अंसारी, नमन विक्सल कोंगारी और राजेश कच्छप की तरफ से ये ऑफर दिया गया.

अब हिमंत बिस्वा सरमा ने आरोप के जवाब में कहा कि वे लंबे समय तक कांग्रेस में रहे हैं, इसलिए कांग्रेस के नेता उनके दोस्त हैं और वे उनके संपर्क में हैं. 

उधर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने कहा,

झारखंड में बीजेपी का ‘ऑपरेशन लोटस’ हावड़ा में बेनकाब हो गया. दिल्ली में ‘हम दो’ का गेम प्लान झारखंड में वही करने का है, जो उन्होंने महाराष्ट्र में एकनाथ-देवेंद्र की जोड़ी से करवाया.

इन विधायकों पर सरकार गिराने की साजिश में शामिल होने के आरोप इसलिए भी अहम हैं क्योंकि कहा जा रहा है राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस के जिन 9 विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की. जिन नौ ने क्रॉस वोटिंग की उनमें ये तीनों भी शामिल थे.

एक और अहम घटना है उस वकील की गिरफ्तारी जिसने सोरेन के खिलाफ खनन मामले में याचिका डाली, उसकी गिरफ्तारी हो चुकी है. वकील राजीव कुमार को कोलकाता में गिरफ्तार किया गया है. उनपर बंगाल के किसी व्यापारी को ब्लैकमेल करने का आरोप है. सोरेन की करीबी आईएएस अधिकारी पूजा सिंघल के खिलाफ भी याचिका डाली थी, जिसमें वो गिरफ्तार हो चुकी हैं. इन तमाम मामलों से भी सोरेन सरकार दबाव में है. लोग सवाल पूछ रहे हैं कि क्या याचिकाओं की बौछार और केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई भी सरकार को गिराने का एक पार्ट है.

झारखंड के सियासी खेल की क्रोनोलोजी समझिए

झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा की अगुवाई में चल रही सरकार में कांग्रेस दूसरी बड़ी पार्टी है. 81 सीटों वाली झारखंड विधानसभा में सरकार बनाने के लिए 41 विधायकों का समर्थन जरूरी है. फिलहाल जेएमएम के 30, कांग्रेस के 18 और आरजेडी के एक विधायक हैं, यानी कुल 49 विधायकों के समर्थन से सरकार चल रही है. वहीं सीपीआईएमएल के एक विधायक ने बाहर से समर्थन दे रखा है. दूसरी तरफ बीजेपी के पास कुल 26 विधायक हैं. बीजेपी की सहयोगी पार्टी आजसू के दो विधायक हैं. ऐसे में बीजेपी सरकार बनाने से अभी 13 विधायक दूर है.

साल 2018 में हेमंत सोरेन की गठबंधन सरकार बनने के बाद से ही विपक्षी दल बीजेपी सरकार के ज्यादा दिन न चलने की बात कहती रही है.

यहां दिलचस्प बात ये है कि साल 2021 में भी हेमंत सरकार गिराने के आरोप में पुलिस ने तीन लोगों को गिरफ्तार किया था. झारखंड पुलिस की स्पेशल सेल ने दावा किया था कि उसने रांची के एक होटल से 3 लोगों को 2 लाख कैश के साथ गिरफ्तार किया था. ये एक्शन कांग्रेस के विधायक कुमार जयमंगल सिंह की शिकायत पर हुई थी. जयमंगल ने थाने में एक पत्र लिखकर विधायकों की खरीद-फरोख्त की आशंका जताई थी.

महाराष्ट्र वाली कहानी झारखंड में?

महाराष्ट्र में जिस तरह से महाविकास अघाड़ी सरकार और खासकर शिवसेना के बिखरने का मामला सामने आया है उससे सवाल यही उठ रहा है कि क्या झारखंड में भी कुछ ऐसा ही होने वाला है? दरअसल, महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे पर विधायकों को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया था. साथ ही शिंदे ने कहा था गठबंधन सरकार में कांग्रेस और एनसीपी का विकास हो रहा है लेकिन शिवसेना पार्टी कमजोर हो रही है. ठीक इसी तरह झारखंड में भी कई बार ये देखने को मिला है कि कांग्रेस के विधायक हेमंत सरकार पर नजरअंदाज करने का आरोप लगाते रहे हैं.

  • इसी साल अप्रैल के महीने में कांग्रेस झारखंड प्रभारी अविनाश पांडे ने हेमंत सोरेन सरकार पर हमला बोलते हुए कहा था कि किसी को भी इस गफलत में नहीं रहना चाहिए कि वे उनके बिना सरकार चला सकते हैं.

  • इसके अलावा कांग्रेस विधायक दीपिका पांडे सिंह ने सोरेन सरकार पर 'सभी फैसलों का क्रेडिट' लेने का आरोप भी लगाया था.

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इसका मतलब साफ है कि जेएमएम और कांग्रेस में सब कुछ ठीक नहीं है जिसका फायदा बीजेपी उठा सकती है.

अमित शाह से हेमंत सोरेन की मुलाकात

हेमंत सोरेन पर ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के मामले में तलवार लटकी हुई है. उनकी खुद की विधानसभा की सदस्यता खतरे में है. चुनाव आयोग ने सोरेन से खनन पट्टा लेने के मामले में जवाब मांगा है. लेकिन इन सबके बीच हेमंत सोरेन की 27 जून को बीजेपी नेता और गृह मंत्री अमित शाह से दिल्ली में मुलाकात ने भी कई सवाल खड़े कर दिए.

राष्ट्रपति चुनाव से पहले हेमंत सोरेन बीजेपी नेता और गृह मंत्री अमित शाह से दिल्ली में मुलाकात करने पहुंच थे, साथ ही सोरेन राष्ट्रपति चुनाव के लिए एनडीए उम्मीदवार और झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने का भी ऐलान किया था.

हेमंत सोरेन के इन राजनीतिक कदम से कहीं न कहीं कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा के गठबंधन में दरार पड़ती नजर तो आई है.

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हेमंत पर बीजेपी का 'शिकंजा'

झारखंड में सरकार पर आंच आने से पहले आसपास के माहौल पर नजर डालना भी जरूरी हो जाता है. गठबंधन में तकरार के साथ-साथ अवैध खनन घोटाला मामले में झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता से लेकर हेमंत सोरेन (Hemant Soren) प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी के रडार पर चल रहे हैं. पहले ED ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के सदस्य और हेमंत सोरेन के विधायक प्रतिनिधि पंकज मिश्रा (Pankaj Mishra) को गिरफ्तार किया फिर हेमंत सोरेन के प्रेस सलाहकार अभिषेक प्रसाद ‘पिंटू’ को ईडी ने समन भेजा है.

यही नहीं सीएम हेमंत सोरेन की सरकार इसलिए भी मुश्किल में है क्योंकि मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ईडी ने झारखंड खनन विभाग की सचिव और साल 2000 बैच की झारखंड कैडर की IAS अधिकारी पूजा सिंघल को गिरफ्तार किया था और आपको बता दें कि हेमंत सोरेन के पास खनन का प्रभार भी है. पूजा सिंघल पर खूंटी जिले में मनरेगा योजना के तहत बड़े पैमाने पर गड़बड़ी का आरोप लगा है.

कौन किसके साथ जाएगा?

अब आते हैं असली सवाल पर. क्या हेमंत सरकार को झुकाने के लिए ईडी के एक्शन से लेकर विधायकों की 'बिक्री' की खबरें आ रही हैं?

हेमंत सोरेन की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं. गठबंधन, ईडी, चुनाव आयोग सबका प्रेशर है. ऐसे में झारखंड के राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा भी है कि हेमंत सोरेन के पास बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने का भी ऑप्शन खुला हुआ है.

एक रास्ता है कि सोरेन कांग्रेस से हाथ छुड़ा लें और महाराष्ट्र की तरह बीजेपी से हाथ मिला लें. क्योंकि अगर ऐसा होता है तो ये पहला मौका नहीं होगा जब जेएमएम और बीजेपी साथ आएगी. इससे पहले भी बीजेपी और जेएमएम ने मिलकर सरकार चलाई थी.

दूसरा रास्ता अपने और कांग्रेस के विधायकों को एकजुट रखने का है, जो फिलहाल मुश्किल लग रहा है.

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आखिर में आप एक संयोग देखिए, झारखंड के बिहार से अलग होकर नया राज्य बनने के बाद से सिर्फ एक बार रघुबर दास (2014-19) सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया था. मतलब अस्थिर गठबंधन सरकारें झारखंड की एक खासियत रही हैं. ऐसे में इस बार भी सरकार के पांच साल पूरा करने पर संशय बना हुआ है.

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