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खालिस्तानी झंडा, महिलाओं से छेड़छाड़ - किसान आंदोलन को लेकर किए गए ये दावे झूठे

किसानों के रास्ते में एक बड़ी बाधा फेक न्यूज थी, जिसका इस्तेमाल लगातार किसान आंदोलन को बदनाम करने के लिए हुआ

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने 19 नवंबर (शुक्रवार) को उन तीनों विवादित कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया, जिनके विरोध में लगातार दिल्ली सीमा पर किसान प्रदर्शन कर रहे थे. केंद्र के इस फैसले को किसानों की बड़ी जीत माना जा रहा है.

हालांकि, जीत के लिए ये संघर्ष आसान नहीं था. कई बार किसान आंदोलन को फेक न्यूज के जरिए बदनाम करने की कोशिश की गई. कभी किसान आंदोलन में शराब बंटने का दावा किया गया तो कभी कॉपी पेस्ट कैंपेन के जरिए ये नैरेटिव बनाने की कोशिश की गई कि आंदोलनकारी महिलाओं के साथ छेड़छाड़ कर रहे हैं. क्विंट की वेबकूफ टीम ने इन दावों की पड़ताल कर सच आप तक पहुंचाया. एक नजर में जानिए ऐसे बड़े भ्रामक दावों के बारे में.

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किसान महापंचायत के मंच से अल्लाहु अकबर का नारा?

5 सितंबर को मुजफ्फरपुर में किसान महापंचायत हुई. एक वीडियो शेयर कर दावा किया गया कि किसान नेता राकेश टिकैत ने मंच से 'अल्लाहु अकबर' के नारे लगवाए. वीडियो शेयर कर ये साबित करने की कोशिश की गई कि किसान आंदोलन कट्टरपंथ की तरफ जा रहा है. सोशल मीडिया के अलावा मेन स्ट्रीम मीडिया में भी वीडियो को इसी दावे के साथ शेयर किया गया. हालांकि, ये सच नहीं था.

किसानों के रास्ते में एक बड़ी बाधा फेक न्यूज थी, जिसका इस्तेमाल लगातार किसान आंदोलन को बदनाम करने के लिए हुआ

असल में राकेश टिकैत ने मंच से ''अल्लाहु अकबर'' के बाद ''हर हर महादेव'' का नारा भी लगवाया था. लेकिन, एक खास नैरेटिव फैलाने के लिए अधूरा हिस्सा वायरल किया गया.

यूट्यूब पर राकेश टिकैत के पूरे भाषण के वीडियो भी उपलब्ध हैं. 17:21 मिनट के वीडियो में 14:24 मिनट बाद टिकैत को यही कहते हुए सुना जा सकता है. पंजाब तक के यूट्यूब चैनल पर भी ये भाषण है.

पूरी पड़ताल यहां देखें

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किसान आंदोलन में बांटी गई शराब?

एक वीडियो शेयर कर दावा किया गया कि किसान आंदोलन में बांटी गई. वीडियो शेयर कर ये साबित करने की कोशिश हुई कि आंदोलन में लोग शराब के लालच में पहुंच रहे हैं.

किसानों के रास्ते में एक बड़ी बाधा फेक न्यूज थी, जिसका इस्तेमाल लगातार किसान आंदोलन को बदनाम करने के लिए हुआ

हालांकि, वेबकूफ की पड़ताल में सामने आया कि वीडियो अप्रैल 2020 का है, जब संसद में कृषि से जुड़े तीन नए कानून तब पास भी नहीं हुए थे.

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किसानों ने लाल किले पर फहराया खालिस्तानी झंडा?

26 जनवरी, 2021 को, दिल्ली में 'किसान गणतंत्र परेड' हुई. इस दौरान किसानों और पुलिसबल के बीच झड़पें भी हुईं. हज़ारों प्रदर्शनकारी लालकिले के अंदर भी घुस गए. किसानों को लाल किले पर झंडा फहराते हुए भी देखा गया, जिन्हें सोशल मीडिया पर कई यूजर्स, कुछ टीवी चैनलों और यहां तक कि नेताओं ने भी "खालिस्तानी झंडा" बताया.

किसानों के रास्ते में एक बड़ी बाधा फेक न्यूज थी, जिसका इस्तेमाल लगातार किसान आंदोलन को बदनाम करने के लिए हुआ

वेबकूफ ने दावे की पड़ताल की और सामने आया कि जिन दो झंडों को फहराया गया था, वे खालिस्तान के झंडे नहीं थे. एक सिखों का धार्मिक झंडा निशान साहिब था और दूसरा झंडा किसानों का था. आज तक की पत्रकार, नवजोत रंधावा, जो कि लाल किले पर उस दिन मौजूद ग्राउंड रिपोटर्स ने भी क्विंट को बताया कि वो खालिस्तानी झंडे नहीं थे.

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फर्जी महिला पत्रकारों के अकाउंट से दावा- किसानों ने की अश्लील हरकत

ट्विटर पर महिलाओं के नाम से बने कुछ अकाउंट्स से ट्वीट कर ये दावा किया गया कि किसान आंदोलन में महिलाओं के साथ अश्लील हरकत हुई. महिलाओं के नाम पर बने अकाउंट से ये मैसेज छेड़छाड़ के एक निजी अनुभव की तरह शेयर किया गया.

मैसेज था - कल जो मेरे साथ अश्लील हरकत हुई उसके सीधे-सीधे जिम्मेवार राकेश टिकैत, योगेंद्र यादव हैं मैं दिल्ली पुलिस से मांग करती हूं इन दोनों को जल्द से जल्द गिरफ्तार करें मैं एक पत्रकार नहीं महिला भी

किसानों के रास्ते में एक बड़ी बाधा फेक न्यूज थी, जिसका इस्तेमाल लगातार किसान आंदोलन को बदनाम करने के लिए हुआ

वेबकूफ ने ऐसे दो ट्विटर अकाउंट्स की जांच की, जिनके ट्वीट पर बड़ी संख्या में यूजर्स रिएक्ट कर रहे हैं. सामने आया कि ये अकाउंट फर्जी हैं.

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''पाकिस्तान जिंदाबाद'' का नारा लगाने वाली अमूल्या किसान आंदोलन में शामिल?

तमिलनाडु की स्टूडेंट एक्टिविस्ट वलारमथी जनवरी में किसानों के विरोध में शामिल होने के लिए टिकरी बॉर्डर आईं थी. वलारमथी की फोटो को सोशल मीडिया में अमूल्या लियोना के तौर पेश किया गया. अमूल्या पर पिछले साल ''पाकिस्तान जिंदाबाद'' के नारे लगाने के आरोप लगे थे. कई सोशल मीडिया यूजर ने दोनों एक्टिविस्ट की फोटो एक साथ शेयर करके ये गलत दावा किया कि ये दोनों एक ही हैं.

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सोर्स : स्क्रीनश़ॉट /ट्विटर

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क्विंट की वेबकूफ टीम से बात करते हुए वलारमथी ने कहा कि यह दावा ‘’पूरी तरह से गलत’’ है. वलारमथी 25 से 27 जनवरी के बीच टिकरी और सिंघु बॉर्डर में कई लोगों के साथ पहुंची थी. हमें वलारमथी से जुड़ी कई न्यूज रिपोर्ट भी देखने को मिलीं. इनमें द हिंदू और न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट्स भी शामिल हैं.

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