ADVERTISEMENTREMOVE AD
मेंबर्स के लिए
lock close icon

CAA विरोध:‘हम देखेंगे’ से ‘हम कागज नहीं दिखाएंगे’ के बीच की दुनिया

CAA-NRC का विरोध करने के लिए क्रिएटिविटी का जैसे तूफान आ गया है

Updated
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

नोट बंदी पे हम एटीएम पे ही सो गए थे

GST की मार के बाद हम सड़क के ही हो गए थे

पूछा तो बोले के डाल लो पकोड़े का धंधा

अब प्याज के भाव उतने है कि बिक जाए पूरा बंदा

370 हटा तो सोचा मुझको क्या लेना-देना है

दूसरे के मसले से दूर रहो, मेरी मम्मी का कहना है

इसी सोच के कारण हम CAB के चक्के के नीचे

और कुछ बैठे हैं उस पागल ड्राइवर के पीछे

राउंड-राउंड, गोल-गोल ये तुमको घुमाएगी

सरकार सड़कें छोड़के अबकी बार बस फैन्स बनाएगी

आज बात उसकी है, कल बात तुझपे भी आएगी

बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाएगी

- गौरव काडू की कविता

ADVERTISEMENTREMOVE AD

CAA-NRC का विरोध करने के लिए क्रिएटिविटी का जैसे तूफान आ गया है. चूंकि सामने यूथ है तो ऐसे-ऐसे आइडिया आ रहे हैं किसी भी सियासी पार्टी का पेड आईटी सेल पानी मांगने लग जाए. कोई गाता है, कोई कविता सुनाता है तो कोई रैप करने खड़ा हो जाता है. जब CAA पास हुआ और NRC का आभास हुआ तो कुछ लोगों ने आशंका जताई कि आम लोगों को अभी समझ नहीं आ रहा कि CAA-NRC कितना डेडली कॉकटेल है. लेकिन अब इसके विरोध में खड़े लोग इसको ऐसी भाषा में समझा रहे हैं कि समझना जटिल है कि ये हुआ कैसे? सबसे खास बात ये है कि इस पूरे विरोध में हिंदुस्तानी रंग है, अपने देश का ढंग है.

मैं महामहिम को नई कलम भेंट करना चाहता हूं

कल रात नए कानून पर दस्तखत करने के साथ ही

धर्मनिरपेक्षता की फांसी मुकर्रर करने के बाद

उनकी कलम की निब और बिस्मल, अस्फाक के सपनों

के टूटने की आवाज अब तक मुल्क में गूंज रही है

मगर मुल्क का हर इंसान बेचैन क्यों नहीं है?

-कौशिक राज

0

'हम देखेंगे' और 'कागज नहीं दिखाएंगे' के आगे

ज्यादा चर्चा में आए है 'हम देखेंगे...'और 'कागज नहीं दिखाएंगे...' लेकिन ये तो समंदर में कुछ मोतियां हैं. कोई पूछ रहा है कि 'हिंदुस्तान से मेरा सीधा रिश्ता है, तुम कौन हो बे...' कोई कह रहा है 'मैं महामहिम को नई कलम भेंट करना चाहता हूं क्योंकि उनकी कलम की निब धर्मनिरपेक्षता को फांसी देकर टूट गई होगी'. क्रिएटिविटी ऐसी है कि विरोध की आवाज तो बुलंद होती ही है, आवाज देने का तरीका भी तारीफ पा लेता है. जब कोई कहता है कि विरोध करने वालों को कपड़ों से पहचान लेते हैं, कुछ छात्र शर्ट उतार कर प्रदर्शन करने लगते हैं. डिटेंशन कैंपों के खौफ की बात होती है तो धरने की जगह ही टेम्पररी डिटेंशन कैंप बनाकर रहने लगते हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

इस बार सोशल मीडिया का स्यापा नहीं

जब सोशल मीडिया पर भरे कचरे की बदबू से दम घुटने को ही आया था कि इसने अपनी उपयोगिता का आईना भी दिखा दिया है. CAA विरोध के बहाने पता चला है कि सोशल मीडिया का ऐसा भी इस्तेमाल हो सकता है, जिसका मायना है. कथ्य से कई असहमत हो सकते हैं लेकिन वो भी कथानक की कद्र जरूर करेंगे. सड़कों पर लाठियां चल रही हैं, आंसू गैस के गोले दागे जा रहे हैं तो लोग सोशल मीडिया पर बोल रहे हैं:

लाठियों से तुम हौसला तोड़ न सके

टियर गैस से इरादा मोड़ न सके

कलम से लाठी जब तुम लड़वाओगे

बड़ा पछताओगे

-पूजन साहिल

ADVERTISEMENTREMOVE AD

फिर वही 'आंदोलन'

अन्ना हजारे आंदोलन के पटाक्षेप ने हजारों लाखों में जो निराशा भरी. उसके बाद यही लगा कि अब शायद निकट भविष्य में इस देश में कोई जन आंदोलन खड़ा नहीं होगा, क्या पता था कि इतनी जल्दी हो जाएगा. सत्ता का धर्म है कि वो छात्रों के आंदोलन, महिलाओं के आंदोलन को विपक्ष की साजिश बता दे, लेकिन शाहीन बाग की मद्धम रौशनी में भी नजर आता है कि ये स्वत:स्फूर्त है. TISS, IIT जैसे संस्थान जब बोलने लगें तो ये दलील राइट नहीं लगती कि इन्हें लेफ्ट ने भड़काया है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

विरोध का रंग भी हिंदुस्तानी है

महात्मा की मिट्टी पर हो रहा विरोध आम तौर पर शांतिपूर्ण है. जहां हिंसा हुई है, वहां आरोप भी हैं कि पुलिस ने भी गड़बड़ी की है. यहां न पिंक रिवोल्यूशन का लाल रंग है, न 'अरब स्प्रिंग' की तरह लाल छींटें हैं. यहां सुनने-सुनाने की रवायत है, जो तमाम हमलों के बावजूद नब्ज में बह रही है.

एक खासियत ये भी कि रहीम के लिए राम खड़ा है और सुलेमान के लिए श्याम भी बैठा है. जामिया में कोई सरदार जी प्रदर्शनकारियों को चाय-समोसे बांट रहे हैं तो कोई हिंदू साउथ इंडिया से वहां आकर अपनी पहचान के कागजात जला रहा है. कहना बस इतना है हम एक हैं, हमें अलग न करो.

इसे दबाने और अनसुना करने की जितनी भी कोशिश हो रही है, आवाज और बुलंद होती जा रही है, लय पकड़ रही है. लगता है इस वक्त देश का इतिहास लिखा जा रहा है, और आगे जब भारतीय इतिहास के पन्ने पलटे जाएंगे तो विरोध की ये स्वर लहरियां जरूर इठलाएंगी. इन दिनों की याद दिलाएंगी.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

विरोध की आवाज उठाते क्रिएटिविटी के कुछ और नमूने नीचे देखिए:

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×