ADVERTISEMENTREMOVE AD

नीतीश कुमार और बिहार में जाति जनगणना, BJP है असली निशाना?

Nitish Kumar नहीं भूले हैं कि कैसे BJP ने 2020 के विधानसभा चुनावों में उनके खिलाफ चिराग पासवान का इस्तेमाल किया था

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

बिहार में विवादास्पद जातीय जनगणना (Caste Census) को लेकर एक राजनीतिक सामंजस्य पर पहुंचने के लिए नीतीश कुमार सर्वदलीय बैठक बुलाने की पूरी तैयारी कर चुके हैं.

जहां जनता दल (यूनाइटेड) (JD-U) की सहयोगी भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने स्पष्ट कारणों से राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह की जनगणना की मांग को खारिज कर दिया था, मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टी लालू प्रसाद यादव के Rashtriya Janata Dal (RJD) ने जातीय जनगणना का समर्थन किया, जो सरकार को समाज के कमजोर तबकों के लिए विकास कार्य करने में सक्षम बनाएगी.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

दोनों ही नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव जयप्रकाश नारायण आंदोलन से निकले समाजवादी नेता हैं, जो राज्य में मजबूत ओबीसी लीडर हैं.

इस बात को लेकर अटकलबाजी जोरों पर है कि नीतीश दोबारा महागठबंधन कैम्प में जाने का मन बना रहे हैं. हाल में यादव परिवार पर सीबीआई की छापों को भी दोनों नेताओं के बीच बढ़ती दोस्ती से जोड़कर देखा गया.

नीतीश ने 2020 के अनुभव को सहजता से नहीं लिया

राजनीतिक विशेषज्ञ और वो लोग जो नीतीश कुमार के करीबी हैं, वो उन्हें अहंवादी व्यक्ति मानते हैं. वो अभी तक ये नहीं भूले हैं कि कैसे बीजेपी ने 2020 के विधानसभा चुनावों में उन्हें कमतर दिखाने के लिए चिराग पासवान का इस्तेमाल किया. उस समय अजीबोगरीब कदम उठाते हुए लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) ने JD(U) के सामने अपने उम्मीदवार खड़े किए, बीजेपी के खिलाफ नहीं.

इससे JD(U) की सीटों की गिनती जो साल 2015 में 71 थी, साल 2020 में 43 रह गई. दूसरी तरफ बीजेपी की सीटों की गिनती 53 से बढ़कर 74 हो गई. JD(U) वो पार्टी थी जो करीब दो दशकों तक अलायंस में सीनियर पार्टनर के तौर पर थी, लेकिन फिर उसे जूनियर बना दिया गया. चिराग की पार्टी, एलजेपी ने JD(U) की संभावनाओं को 28 सीटों पर नुकसान पहुंचाया.

इस बड़ी तबदीली को नीतीश कुमार ने सहजता से नहीं लिया. वहीं बीजेपी ने ज्यादा विधायकों के साथ ऐसा कोई मौका नहीं छोड़ा कि नीति बनाने या गर्वनेंस में उनका दखल हो या कहीं से भी उन्हें खुला हाथ दिया जाए.

हालांकि नीतीश की बस इसमें रुचि है कि जब तक उनका कार्यकाल खत्म नहीं होता, वो बिहार के मुख्यमंत्री बने रहें, किसी भी कीमत पर. जहां बीजेपी के पास उनकी पार्टी से 30 ज्यादा विधायक हैं, ऐसा नहीं लगता कि साल 2025 में होने वाले चुनावों बीजेपी उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा बनाने के लिए तैयार होगी. यही बात नीतीश कुमार को परेशान कर रही है.

जब साल 2025 में चुनाव होंगे, तो नीतीश कुमार 74 साल के होंगे और अभी के कुछ मुख्यमंत्रियों से वो कम उम्र के होंगे जैसे कि नवीन पटनायक और पिनरई विजयन.

वहीं जिस तरह आरजेडी दोबारा सत्ता में आना चाहती है, वह साल 2025 में भी महागठबंधन से मुख्यमंत्री का चेहरा होने को लेकर मोल-भाव कर सकते हैं.

तेजस्वी यादव की उम्र उनके पक्ष में है और लालू यादव हो सकता है कि अभी झुक जाएं क्योंकि, किसी क्षेत्रीय दल को ऐसी स्थिति में बनाए रखना बहुत मुश्किल है, जब वो सत्ता से लंबे समय तक बाहर रह जाए.

खोने के लिए कुछ नहीं

लेकिन नीतीश कुमार क्यों आरजेडी से हाथ मिलाएंगे, जब विपक्षी दल राष्ट्रीय स्तर पर अव्यवस्थित स्थिति में है और अभी के माहौल को देखें तो नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी को देखकर ऐसा लगता है कि वो 2024 में सत्ता में लौटेगी? ऐसा इसलिए है क्योंकि, ये नीतीश कुमार को मौका देता है कि वो बीजेपी को दिखा सकें वो नीचे तो हैं, पर आउट नहीं हुए हैं. उनके पास खोने के लिए कुछ नहीं है क्योंकि, वो मुख्यमंत्री बने रहेंगे.

वो जातीय जनगणना का इस्तेमाल ओबीसी अधिकारों के चैम्पियन के तौर पर उभरने के लिए भी करेंगे, जो राष्ट्रीय स्तर पर उनकी छवि को बूस्ट कर सकता है. जबकि बीजेपी को बिहार में पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने की वजह से राष्ट्रीय स्तर पर ओबीसी समुदाय का भरपूर समर्थन मिला है, नीतीश को अति पिछड़ा समुदाय का अच्छा समर्थन है.

वो इसका इस्तेमाल नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (NDA) को छोड़ने के लिए कर सकते हैं और दोस्त से दुश्मन, दुश्मन से दोस्त और फिर दोस्त से दुश्मन बने लालू यादव को दोबारा दोस्त बना सकते हैं. वह दिल से समाजवादी हैं और उन्हें लगता है कि वो बीजेपी की तुलना में यादवों को आसानी से मैनेज कर सकते हैं.

जातिवाद की राजनीति वाले राज्य में नीतीश कुमार इसलिए इतने आत्मविश्वास से भरे हैं कि बीजेपी में अभी तक कोई ऐसा नेता नहीं है, जो उनके करिश्माई व्यक्तित्व और लोकप्रियता का मुकाबला कर सके.

कोई भी पार्टी बिहार में जेडीयू के बिना नहीं जीत सकती

एक समय जब नीतीश कुमार ने यादवों के साथ मिलकर साल 2015 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को हरा दिया था, तब राज्य में उनकी लोकप्रियता नरेंद्र मोदी से भी ज्यादा थी. कोई भी पार्टी चाहे वो बीजेपी हो या आरजेडी बिहार में जेडीयू के समर्थन के बिना नहीं जीत सकती.

बीजेपी भारतीय राजनीति में पोल प्लेयर की तरह उभर रही है और 2024 के चुनावों के लिए कांग्रेस पार्टी कहीं भी पिक्चर में नजर नहीं आती. यहां तक कि उसके हार्डकोर सपोर्टर्स के लिए भी. ये बात भी नीतीश कुमार के दिमाग में होगी. इसलिए वो क्यों हारने वाले की तरफ रहना चाहेंगे?

फिलहाल जेडीयू के पास लोकसभा में बीजेपी के गठबंधन के साथ 16 सांसद हैं. जब साल 2014 में पार्टी ने चुनाव लड़ा था, तो सिर्फ दो सीटें ही जीत पाई थी. अगर नीतीश कुमार कोई निर्णय लेते हैं तो पार्टी की ताकत लोकसभा और राज्यसभा दोनों में कम हो सकती है. ये फैसला उनके लिए आसान नहीं होगा.

लेकिन जितना नीतीश कुमार के बारे में लोग जानते हैं वो इस बात में आनंद लेते रहेंगे कि बीजेपी अलर्ट रहते हुए बस अंदाजा लगाती रहे कि उनका अगला कदम क्या होगा.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×