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चुनावी कैंपेन में होता फेक न्यूज का इस्तेमाल, कितना खतरनाक, कैसे बचें?

सच सामने आने के बाद भी रूस- यूक्रेन युद्ध, आतंकवाद, बेरोजगारी को लेकर राजनीतिक पार्टियां भ्रामक दावे करना बंद नहीं करतीं

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2024 के लोकसभा चुनाव (Loksabha Election 2024) सिर पर हैं. चुनावी कैंपेन या फिर भाषण देते हुए किए गए दावों का हमने कई बार फैक्ट चेक किया है और पड़ताल में दावे भ्रामक साबित हुए हैं. ये कोई छिपी हुई बात नहीं रही कि चुनावों के वक्त राजनीतिक पार्टियां फेक न्यूज का इस्तेमाल अब एक टूल के रूप में करने लगी हैं. सिर्फ भारत में नहीं, दुनिया भर में ये ट्रेंड देखा जा सकता है.

हाल में बीजेपी (BJP) ने अपना एक चुनावी विज्ञापन का वीडियो जारी किया. इस वीडियो में रूस - यूक्रेन युद्ध के समय भारत लौट रहे छात्रों को दिखाया गया है, जिसमें एक युवती अपने पिता से कहती है, ''पापा मोदी जी ने वॉर रुकवा दी और हमारी बस निकाली.''

हाल में इंडिया टुडे ग्रुप के डिजिटल चैनल 'द लल्लनटॉप' पर हुए विदेश मंत्री एस. जयशंकर से जब ऐसे दावों पर सवाल पूछा गया था, तो उन्होंने जवाब में कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी ने रूस और यूक्रेन के राष्ट्राध्यक्षों से भारतीय नागरिकों को सुरक्षित रास्ता उपलब्ध कराने के लिए बात की थी. जयशंकर ने इंटरव्यू में ये भी दावा किया कि वो उस वक्त पीएम मोदी के साथ ही थे जब उनकी रूस-यूक्रेन के राष्ट्राध्यक्षों से बात हुई.

इसमें गलत क्या है? : इसके जवाब के लिए हमें थोड़ा पीछे जाना होगा. ये जो दावा है, इसे केंद्र सरकार का ही विदेश मंत्रालय ने उस वक्त गलत करार दिया था, जब बड़ी संख्या में भारतीय सचमुच यूक्रेन में फंसे थे. 3 मार्च 2022 को हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने इस दावे से जुड़े सवाल का जवाब देते हुए कहा कि ''यह कहना कि कोई युद्ध रोक रहा है या ये कहना कि हम ऐसा कुछ करा रहे हैं, बिल्कुल गलत है.''

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पर ये ना तो इकलौता मामला है ना ये पहली बार हुआ है. ऐसे कई राजनीतिक दावे हैं, जिनका बार बार फैक्ट चेक होने के बाद, बार बार झूठ की पोल खुलने के बाद भी वो दावे किए जाते हैं. न सिर्फ सोशल मीडिया से बल्कि राजनीतिक मंचों से भी.

फेक न्यूज का चक्र ही कुछ ऐसा है. आज ऐसे ही कुछ दावों पर दोबारा नजर डालेंगे, जिनका सच फैक्ट चेकर्स ने कई बार पाठकों तक पहुंचाया पर वो जस के तस बने हुए हैं. वो कहते हैं न कि ''सच जब अपने जूते के फीते बांध रहा होता है, झूठ दुनिया का आधा चक्कर लगा चुका होता है.''

एक - एक कर इन दावों पर नजर दौड़ाने से पहले देखते हैं कि चुनावी फेक न्यूज की समस्या कितनी गंभीर है

चुनावी फेक न्यूज कितनी बड़ी समस्या ? 

लोकतंत्र के सबसे बड़े उत्सव चुनाव में खटास पैदा करती हैं भ्रामक सूचनाएं और झूठे दावे. भ्रामक सूचनाएं भारत के चुनावों की सबसे बड़ी समस्या हैं. ये बात हम नहीं कह रहे, दुनिया भर में हो रहे शोध इसकी गवाही देते हैं. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की साल 2024 की ग्लोबल रिस्क रिपोर्ट कहती है कि चुनावी साल में भारत वो देश है जहां सबसे बड़ा खतरा भ्रामक सूचनाओं की समस्या है.

socialmediamatters.in ने हाल में पहली बार 2024 में वोट देने जा रहे मतदाताओं का सर्वे किया. सर्वे में शामिल 65.2% वोटर्स ने बताया कि उनका सामना फेक न्यूज से हुआ. वहीं 37.1% ने इस बात को स्वीकार किया कि वो फेक न्यूज से प्रभावित हुए थे.

मनोविज्ञान पर दुनिया भर के शोध ये कहते हैं कि जब एक दावा बार - बार किया जाता है तो लोग उसे सच मानने लगते हैं. यही नहीं, समस्या ये भी है कि बड़ी संख्या में लोग सिर्फ हेडलाइन या टाइटल पढ़कर दावे को सच मान लेते हैं. जितने लोग दावे को सच मानते हैं, उतने लोग ना तो कभी उसके सोर्स तक पहुंचने कि कोशिश करते हैं ना ही उसपर हुए फैक्ट चेक को पढ़ने की जहमत उठाते हैं.

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अब लौटते हैं रूस यूक्रेन युद्ध रुकवाए जाने के दावे पर....

रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान कई न्यूज एंकरों और बीजेपी ने सोशल मीडिया पर दावा किया कि भारत सरकार ने कुछ देर के लिए रूस-यूक्रेन युद्ध रुकवा दिया है.

जाहिर है ये बात हजम होना जरा मुश्किल थी कि दो देशों के बीच चल रहे युद्ध को किसी तीसरे देश के कहने पर कुछ देर रोक दिया जाए. ये बात भारत के विदेश मंत्रालय के लिए भी हजम करना उतनी ही मुश्किल थी जितनी आम इंसान के लिए. विदेश मंत्रालय ने अपने आधिकारिक बयान में कहा कि युद्ध रुकवाए जाने का दावा सरासर गलत है.

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2 मार्च को जारी की गई इस एडवाइजरी से ही स्पष्ट हो रहा है कि भारत सरकार युद्ध रुकवाने की स्थिति में नहीं थी. इस एडवाइजरी में साफ लिखा है कि अगर वाहन की व्यवस्था नहीं हो रही है, तो उस स्थल तक भारतीयों को पैदल पहुंचना होगा, जहां से मदद उपलब्ध कराई जाएगी.

पर इस स्पष्टीकरण के बाद भी फेक न्यूज का चक्र नहीं रुका. गृह मंत्री अमित शाह ने गुजरात की एक चुनावी रैली में ये दावा कर दिया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस यूक्रेन युद्ध 3 दिन के लिए रुकवा दिया था. और फिर अब बीजेपी के ऐड कैंपेन में भी यही दावा किया जा रहा है.

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आतंकवाद के खात्मे से जुड़े भ्रामक दावे

2 सितंबर 2021 को देश के गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने दावा किया कि 2014 में पीएम मोदी के सत्ता पर आने के बाद से जम्मू-कश्मीर को छोड़कर देश में कोई बड़ा आतंकवादी हमला नहीं हुआ है. क्विंट हिंदी की फैक्ट चेकिंग टीम वेबकूफ समेत देश भर के कई फैक्ट चेकर्स ने इस दावे की पड़ताल की तो ये भ्रामक निकला.

आतंकी हमलों का सच सामने आने के बाद दावे को एक अलग रंग में पेश किया गया. ये दावा किया जाने लगा कि मोदी सरकार आने के बाद आतंकी हमले में कोई मौत नहीं हुई. इस दावे सच फैक्ट चेकर्स सामने लाए.
  • गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने राज्य सभा में 9 अगस्त 2023 को इस सवाल का जवाब दिया था.

  • डेटा के मुताबिक 2018 में देश के भीतरी इलाकों में 3 आम लोगों ने आतंकी हमलों में अपनी जान गंवाई.

  • वहीं करीब 174 नागरिकों ने जम्मू और कश्मीर में 2018 से 2022 में हुए आतंकी हमलों में अपनी जान गंवाई.

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पर इस भ्रामक दावे का सिलसिला अब भी नहीं थमा. फरवरी 2024 में बीजेपी के एक विज्ञापन में फिर ये दावा किया गया कि देश में 2014 के बाद एक भी आतंकी हमला नहीं हुआ.

क्विंट हिंदी की फैक्ट चेक रिपोर्ट में वो सरकारी आंकड़े देखे जा सकते हैं जो इस दावे को गलत साबित करते हैं.

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पिछले चुनावों में फेक न्यूज का इस्तेमाल

सिर्फ 2024 के लोकसभा चुनावों में फेक न्यूज का इस्तेमाल पॉलिटिकल फायदे के लिए हो रहा है ऐसा नहीं है. पिछले कई विधानसभा चुनावों में भी ऐसा देखा गया है. कुछ उदाहरणों से समझते हैं.

  • उत्तरप्रदेश के 2022 विधानसभा चुनावों से पहले गृह मंत्री अमित शाह ने दावा किया था कि 2017 में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार बनने के बाद उत्तरप्रदेश दंगा मुक्त हो गया. जबकि NCRB की 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक इस साल राज्य में दंगे के 5,714 मामले दर्ज किए गए.

  • महाराष्ट्र और बिहार के बाद उत्तर प्रदेश सबसे ज्यादा दंगों वाला तीसरा राज्य था. इस दावे पर हमारी फैक्ट चेक रिपोर्ट यहां देख सकते हैं. गौर करने वाली बात ये है कि उत्तरप्रदेश के दंगा मुक्त होने के ये दावा एक नहीं कई बार किया गया.

  • यही नहीं, अमित शाह ने उत्तरप्रदेश की जीडीपी और रोजगार को लेकर ऐसे कई दावे किए थे जो तथ्यों की कसौटी पर खरे नहीं उतरते. यूपी में रोजगार से जुड़े ऐसे भ्रामक दावे एक नहीं कई बार, यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ भी कर चुके हैं.

  • साल 2021 में पंजाब के विधानसभा चुनावों के लिए कैंपेन करते वक्त आम आदमी पाटी (AAP) के प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने दावा किया था कि पंजाब में सबसे महंगी बिजली है. जब दावे की पड़ताल की तो सामने आया कि असल में उस वक्त राजस्थान और महाराष्ट्र में सबसे महंगी बिजली थी, न कि पंजाब में.

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  • उत्तरप्रदेश से बंगाल की तरफ चलते हैं. 2021 में हुए बंगाल विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले जब अमित शाह राज्य के दौरे पर गए, तो कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने उनको लेकर एक भ्रामक दावा किया, वो भी संसद में.

  • 8 फरवरी को संसद में भाषण देते हुए अधीर ने दावा किया कि अमित शाह शांति निकेतन में रविंद्र नाथ टैगोर की कुर्सी पर बैठ थे. ये दावा सच नहीं था. यही नहीं, AIMIM प्रमुख असदउद्दीन ओवैसी के साथ एक अवॉर्ड फंक्शन में खड़े वरिष्ठ बीजेपी नेता मुरली मनोहर जोशी की तस्वीर को भी कांग्रेस के वेरिफाइड हैंडल से शेयर कर भ्रम फैलाने की कोशिश की जा चुकी है.

  • 2022 में छत्तीसगढ़ में भी विधानसभा चुनाव हुए. इस दौरान कैंपेन के लिए छत्तीसगढ़ पहुंचे बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या ने बिना तथ्यों की जांच किए ये दावा कर दिया कि कांग्रेस की सरकार में बेरोजगारी बढ़ी है. आंकड़े खंगाले गए तो सच कुछ और ही निकला.

  • जनवरी 2022 में पंजाब कांग्रेस के आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल्स से पिंक बसों के सामने सेल्फी लेती महिलाओं की फोटो शेयर की गई. दावा किया गया कि कांग्रेस सरकार राज्य में महिलाओं के लिए खास बसें चला रही है, जिससे उनकी यात्रा और सुरक्षित हो सके. पड़ताल की चला कि ये तस्वीरें असल में असम सरकार की चलाई गई योजना की थीं.

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भ्रामक सूचनाओं के शिकार हैं वोटर, पर सक्रिय नहीं 

2 वैश्विक संगठनों UNESCO और Ipsos ने 2024 में होने जा रहे कई देशों के चुनावों से पहले 16 देशों में एक सर्वे किया. इसमें सामने आया कि,

सर्वे में शामिल 56% लोगों ने बताया कि वो सोशल मीडिया का इस्तेमाल जानकारी के पहले सोर्स के तौर पर करते हैं.

68% ने ये माना कि डिसइनफॉर्मेशन, यानी जान बूझकर फैलाई गई भ्रामक सूचनाओं का इंटरनेट पर अंबार लगा हुआ है.

87% लोगों ने अपने देश में होने जा रहे चुनावों में पड़ने वाले फेक न्यूज के प्रभाव पर चिंता व्यक्त की. वहीं 47% लोग ''बहुत ज्यादा चिंतित'' थे.

इस सर्वे में शामिल केवल 48% नागरिक ही ऐसे थे, जिन्होंने चुनावी कैंपेन के बीच फैल रही भ्रामक सूचनाओं को प्लेटफॉर्म पर 'रिपोर्ट' किया.

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चुनावी कैंपेन में किए जा रहे भ्रामक दावों को कैसे करें वेरिफाई ? 

समस्या को समझने के बाद सबसे बड़ा सवाल ये आता है कि वेरिफाई कैसे किया जाए? जब कोई कहे कि फलां राज्य की जीडीपी इतनी हो गई, आतंकवादी हमलों की संख्या इतनी है, बेरोजगारों की संख्या इतनी है ? ये सभी जवाब आपको मिलेंगे हमारी खास सीरीज 'वेरिफाई किया क्या' के इस खास एपिसोड में, बिल्कुल आसान भाषा में.

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(रूस - यूक्रेन युद्ध में भारत के हस्तक्षेप के दावों को लेकर विदेश मंत्री एस.जयशंकर का जवाब इस रिपोर्ट में बाद में अपडेट किया गया है)

(इसके बाद भी आपको चुनावी कैंपेन में किए गए किसी दावे पर शक है, तो पड़ताल के लिए हमें भेजिए, हमारे वॉट्सऐप नंबर 9540511818  या फिर मेल आइडी WebQoof@TheQuint.Com पर. )

(Edited by Abhilash Malik)

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