टोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympics 2020) में ईरान के जावद फोरोही ने 10 मीटर एयर पिस्टल इवेंट में गोल्ड मेडल अपने नाम किया है. उनका यह पदक कई मायनों में अहम है. वे पिस्टल और राइफल इवेंट में ईरान के पहले गोल्ड मेडलिस्ट हैं. लेकिन इससे भी खास यह है कि वे कोरोना फ्रंटलाइन वर्कर हैं. कोविड-19 के दौर में इन फ्रंटलाइन वर्कर्स पर काफी जिम्मेदारियां रही हैं. ऐसे में ये पदक और भी महत्वपूर्ण हो जाता है. आइए जानते हैं ऐसे और पांच एथलीट्स के बारे में जिन्होंने बतौर फ्रंटलाइन वर्कर अपनी सेवाएं दी हैं...
जावद खुद को मानते हैं सोल्जर, ओलंपिक से पहले दो बार हुए संक्रमित
41 वर्षीय ईरानी एथलीट जावद फोरोही ने अपने ओलंपिक डेब्यू में ही ओलंपिक रिकॉर्ड बना दिया है. पुरुष 10 मीटर एयर पिस्टल में 244.8 अंकों के साथ उन्होंने स्वर्ण पदक हासिल किया. इस उपलब्धि पर फोरोफी ने कहा कि “ यह सबसे महत्वपूर्ण स्वर्ण है, क्योंकि यह मेरे देश में निशानेबाजी के लिए पहला स्वर्ण है.”
फोरोही पदक जीतने के बाद कहते हैं कि "मैं बहुत खुश हूं कि मैंने देश के सैनिक के तौर पर अच्छा काम किया. मैं नर्स हूं और अस्पताल में काम करता हूं. विशेषकर कोविड महामारी के दौरान मैंने अस्पताल में काम किया. पिछले साल मैं भी संक्रमित हो गया था, क्योंकि मैं अस्पताल में काम कर रहा था. बीमारी से उबरने के बाद मैंने अभ्यास शुरू किया था.''
आईआरजीसी के बघियातल्लाह अस्पताल में काम करने वाले फोरोही ने 2010 में अपने शूटिंग कॅरियर की शुरुआत की थी. बाद में वे ईरान की नेशनल टीम में सलेक्ट हुए थे.उन्होंने ISIS आतंकवादियों के खिलाफ सीरिया में एक मिशन के दौरान नर्स के रूप में भी काम किया है.
ओलंपिक की तैयारियों के दौरान जावद दूसरी बार कोविड की चपेट में आ गए थे. लेकिन उन्होंने इसका मुकाबला करने के साथ-साथ एक माह बाद फिर से ट्रेनिंग में भी काफी ध्यान दिया. उन्होंने कहा है कि "एक नर्स के रूप में, मैं सभी को बताना चाहता हूं कि अगर हम प्रोटोकॉल का पालन करते हैं, तो किसी को भी COVID-19 नहीं होगा और पूरी दुनिया स्वस्थ होगी.''
ये एथलीट्स भी हैं फ्रंटलाइन वर्कर
1. जो ब्रिजडेन-जोन्स (ऑस्ट्रेलिया)
33 वर्षीय जोन्स न्यू साउथ वेल्स एम्बुलेंस सर्विस में 2016 से काम कर रही हैं. वे एक विश्व स्तरीय एथलीट भी हैं, ये कायकिंग स्पर्धा का हिस्सा हैं. ऐसे में एक कायकर और पैरामेडिकल टीम का सदस्य होने के नाते उनकी दिन-चर्या काफी अस्त-व्यस्त रही. वे कहती हैं कि कभी-कभी मैं तीन ट्रेनिंग सेशन अटेंड करती थी और रात को अपनी ड्यूटी पर जाती थी.
जोन्स ने एक इंटरव्यू में कहा है कि "जब स्टार्टिंग लाइन में होती हूं तो पैडल मारते वक्त थोड़ा बहुत दबाव होता है लेकिन तभी मैं सोचती हूं कि पिछली शिफ्ट में शायद मेरी वजह से किसी की जान बची हो. ऐसा सोचने से मेरा दबाव दूर हो जाता है."
वायरस के शुरुआती दौर के बारे में जोन्स कहती हैं कि जब मैंने एक पॉजिटिव मरीज को अस्पताल पहुंचाने में मदद की थी तब वह पल औरों की तरह मेरे लिए भी डरावना था. क्योंकि हम नहीं जानते थे कि इससे क्या हो सकता है. कोराना काल हम जैसे एथलीट्स के लिए काफी चुनौतीपूर्ण रहा है.
2. ऐलेना गैलियाबोविच (ऑस्ट्रेलिया)
कुछ महीनों पहले जब बाकी एथलीट्स ओलंपिक जाने की तैयारी कर रहे थे तब ऑस्ट्रेलिया की 31 वर्षीय शूटर (निशानेबाज) ऐलेना गैलियाबोविच ड्राइव-थ्रू क्लीनिक में खड़ी होकर लोगों के स्वैब परीक्षण करा रही थीं. यूरोलॉजिकल सर्जन बनने की ट्रेनिंग ले रहीं ऐलेना कोविड-19 के पहले दौर में मेलबर्न के कोविड वार्डों में अपनी सेवाएं दे चुकी हैं.
ऐलेना का कहता है कि "सर्जरी और शूटिंग दोनों ही एक जैसी हैं. जिस तरह सर्जरी में काफी स्क्लि की जरूरत होती, आपको कई ऑपरेशन करने होते हैं. उसी तरह शूटिंग में भी कौशल और तकनीक का अहम योगदान रहता है."
3. रेचल लिंच (ऑस्ट्रेलिया)
वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया की रहने वाली रेचल हॉकी के मैदान के साथ-साथ महामारी के मैदान की भी सजग प्लेयर हैं. वे एक रजिस्टर्ड नर्स हैं. पिछले लगभग एक साल से वे एक माइनिंग कंपनी के लिए काम कर रही हैं.
35 वर्षीय रेचल का कहना है कि वे महामारी के दौर में अपने कंपनी के कर्मचारियों की टेस्टिंग करती थीं ताकि वे सुरक्षित रूप से माइनिंग साइट्स पर पहुंच सकें और काम का संचालन जारी रह सके. इस दौरान रेचल ने कई कोविड मरीजों की पहचान की थी.
रेचल ने रियो ओलंपिक में भी हिस्सा लिया था. उनका मानना है कि रियो के मुक़ाबले टोक्यो का ओलंपिक काफी अलग है. लोग टीवी पर ही इसका आनंद ले सकते हैं. रेचल कहती हैं कि महामारी के दौरान उनके द्वारा किया गया हार्ड वर्क उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है. यह मुझे एक बेहतर एथलीट बनाता है. वे कहती हैं कि जीवन में जो कुछ बुरा हुए उसे पीछे छोड़कर आगे बढ़ना चाहिए.
4.पाउला पारेतो (अर्जेंटीना)
पाउला पारेतो को ला पेक यानी स्माल वन के नाम से भी जाना जाता है. इसके पीछे की वजह उनकी हाइट है. वे 4 फीट 10 इंच की हैं. इस छोटी हाइट वाली अर्जेंटीनियाई खिलाड़ी का यह चौथा ओलंपिक है.
2008 बीजिंग ओलंपिक में सिल्वर और 2016 रियो में गोल्ड मेडल जीतने वाली पाउला ने एक चिकित्सक के तौर पर सैन इसिड्र अस्पताल में बतौर ट्रामा स्पेशलिस्ट अपनी सेवाएं देती हैं. 2020 और 2021 का अधिकांश समय उन्होंने कोविड के विरुद्ध युद्ध में फ्रंटलाइन वर्कर के तौर पर दिया है.
तमाम व्यस्तताओं के बीच पाउला ने चिकित्सीय जिम्मेदारी के साथ-साथ अपनी ट्रेनिंग भी जारी रखी और टोक्यो का टिकट कटाया. वे अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखती हैं कि "आप जिस साहस के साथ जीते हैं, वह आपको मिलने वाली संतुष्टि को निर्धारित करता है." यानी आपका साहस ही आपकी संतुष्टि का पैमाना है.
5. गैबी थॉमस (अमेरिका)
गैबी को दुनिया की फास्टेस्ट एपिडिमियोलॉजिस्ट कहा जा सकता है. क्योंकि इस 24 वर्षीय अमेरिकी धावक ने ओलंपिक ट्रायल्स के दौरान जून में 21.61 सेकेंड का समय निकालकर 200 मीटर की स्प्रिंट दौड़ पूरी की थी. वे 1988 के वर्ल्ड रिकॉर्ड (21.34 सेकेंड) को तोड़ने से चूक गई थीं.
गैबी ने हारर्वड यूनिवर्सिटी अंडरग्रेजुएशन में ग्लोबल हेल्थ और हेल्थ पॉलिसी में पढ़ाई की है. फिलहाल वे महामारी विशेषज्ञ बनने के लिए मास्टर डिग्री कर रही हैं. टोक्यो ओलंपिक क्वॉलिफाई करने के एक महीने बाद डॉक्टर्स ने गैबी को बताया कि उनके लीवर में ट्यूमर का पता चला है.
ये पैराएथलीट भी टोक्यो में देंगी चुनौती
6.सुज़ाना रोड्रिग्ज (स्पेन)
पेशे से फिजिशियन 33 वर्षीय रोड्रिग्ज पैरालंपिक खिलाड़ी हैं. ये ट्रायथलॉन इवेंट में हिस्सा लेती हैं. 2018 गोल्ड कोस्ट में इन्होंने गोल्ड मेडल जीता था. 2019 में लुसाने में भी इंटरनेशन रेस में कमाल का प्रदर्शन किया था. ये रियो ओलंपिक का भी हिस्सा थी लेकिन पांचवें पायदान पर रहकर टूर्नामेंट खत्म किया था.
ऐल्बिनिज़म के कारण सुज़ाना एक गंभीर दृष्टि दोष के साथ पैदा हुई थीं. लेकिन आज वे ट्रायथलॉन में लंबी दौड़ को पूरा करती हैं. साइकल चलाती हैं, तैराकी करती हैं और चिकित्सक के तौर पर सेवाएं भी देती हैं.
महामारी के दौरान सुज़ाना की हर सुबह इस बैठक से होती थी कि अस्पताल में कितने कोविड मरीज थे, कितने बेड और वेंटिलेटर बचे? उन्होंने फोन लाइन्स के साथ काम किया और लंबे समय तब आईसीयू व हॉस्पिटल में रहीं. अस्पताल की शिफ्ट के अनुसार ही वे ट्रेनिंग भी करती थीं.
जून में दो स्वर्ण पदक जीतकर सुज़ाना अपने खेल में शीर्ष पर रही हैं, उनकी सफलता में तीन विश्व चैंपियनशिप सहित अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं की 27 जीत भी शामिल है.
सुज़ाना कहती हैं कि मेरी कोशिश यह रहती है कि मैं किसी भी काम के लिए औरों की सहायता तब तक न लूं जब तक कि ऐसा न लगने लगे कि यह दूसरों की मदद की बिना पूरा नहीं हो सकता. यही सोच मुझे लड़ने और आगे बढ़ने की ताकत देती है.
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