प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 7 फरवरी, गुरुवार को लोकसभा में भाषण दिया. 2019 आम चुनाव से पहले लोकसभा में उनका यह आखिरी भाषण था. कांग्रेस को निशाने पर लेते हुए प्रधानमंत्री ने अपने उग्र और तीखे भाषण में अपने शासन के तहत बांटे गए गैस कनेक्शनों से लेकर भारी संख्या में खोले गए बैंक खातों तक तमाम दावे किए. आइए यहां उनके दावों की हकीकत पर डालते हैं एक नजर.
ग्रामीण स्वच्छता
दावा: प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “55 वर्षों में स्वच्छता कवरेज 40% था. मेरे 55 महीनों में, मैं इसे 98% तक लाया हूं.”
हकीकत: आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 के अनुसार 2014 में ग्रामीण स्वच्छता कवरेज 39% था.
पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय के अनुसार 98.82% परिवारों को अब तक स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण के तहत शौचालय उपलब्ध कराये जा चुके हैं. इसके अलावा ‘घोषित और सत्यापित ओडीएफ (खुले में शौच से मुक्त) गांवों की स्थिति’ पर मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 5,49,594 गांवों को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया गया है, लेकिन सत्यापित ओडीएफ गांवों की संख्या अलग है.
ओडीएफ की प्रक्रिया एक बार की प्रक्रिया नहीं है. एक बार घोषणा करने के बाद कम से कम दोहरे सत्यापन की आवश्यकता होती है. 5,49,594 ओडीएफ घोषित गांवों में से सत्यापित ओडीएफ (प्रथम स्तर) गांवों की संख्या 4,61,929 है, जिससे पता चलता है कि घोषित गांवों में से 16 प्रतिशत गांवों का सत्यापन होना बाकी है.
दूसरे स्तर पर सत्यापन में केवल 79,088 गांव ही ओडीएफ पाए गए, जिससे पता चलता है कि ओडीएफ घोषित किए गए केवल 14 फीसदी गांव ही अपनी स्थिति को बरकरार रख पाए.
निष्कर्ष : भले ही कागजों पर ग्रामीण स्वच्छता का स्तर काफी ऊंचा है, लेकिन इनकी इस स्थिति को बरकरार रखना काफी कठिन बात है.
गैस कनेक्शन
दावा: प्रधानमंत्री मोदी ने दावा किया, “55 सालों में कुल 12 करोड़ ही एलपीजी कनेक्शन थे, लेकिन मेरे पिछले 55 महीनों में मैंने 13 करोड़ नए कनेक्शन दिए हैं जिसमें से 6 करोड़ उज्ज्वला योजना से हैं.”
हकीकत: 1 जनवरी 2018 को पीपीएसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि 1 अप्रैल 2014 तक देश में कुल 16.63 करोड़ घरेलू गैस कनेक्शन उपभोक्ता पंजीकृत थे. प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत 6 करोड़ एलपीजी गैस कनेक्शन किए गए हैं और यह योजना केवल प्रारंभिक कनेक्शन ही कवर करती है.
निष्कर्ष: एलपीजी कनेक्शन तो मिल जाता है, लेकिन परिवारों को ही सिलेंडर रिफिल करवाना होता है, जिनमें से ज्यादातर परिवार इसको वहन नहीं कर सकते हैं. इसके अलावा, इन रिफिल पर डेटा भी उपलब्ध नहीं है. इस तरह से इस योजना की सफलता या असफलता स्पष्ट नहीं है.
बिजली
दावा: प्रधानमंत्री ने दावा किया, “2004, 2009 और 2014 के अपने घोषणा पत्रों में कांग्रेस ने दावा किया था कि वे तीन सालों में हर घर में बिजली लाएंगे. वे ऐसा नहीं कर सके. हमारी सरकार में 2.5 करोड़ घरों को बिजली दी जा चुकी है. अगले कुछ दिनों में हम 100% विद्युतीकरण पूरा कर लेगें.”
हकीकत: सीईए की सालाना रिपोर्ट से पता चलता है कि सौभाग्य योजना के तहत अक्टूबर 2017 तक 3.7 करोड़ नए बिजली कनेक्शन देने का लक्ष्य रखा गया था. लेकिन इस तिथि तक योजना के तहत 2.48 करोड़ कनेक्शन ही हो पाए, इससे यह बात साफ होती है कि यह लक्ष्य 1.2 करोड़ कनेक्शनों की कमी के साथ पीछे रह गया.
निष्कर्ष: एक ही तारीख के लिए दिए गए दो अलग-अलग लक्ष्यों के सम्बन्ध में आंकड़ों के भीतर कुछ साफ अंतर हैं.
मत्स्य मंत्रालय
दावा: मोदी ने कहा, “मछुआरे अपने लिए लम्बे समय से एक अलग मंत्रालय की मांग कर रहे थे. हमने इस साल के बजट में मत्स्य मंत्रालय की स्थापना का प्रस्ताव रखा है.”
हकीकत: अपने अंतरिम बजट भाषण में पीयूष गोयल ने मत्स्य पालन के विषय पर निगाह तो डाली, लेकिन उन्होंने मत्स्य विभाग की स्थापना का प्रस्ताव रखा, न कि मंत्रालय का. उन्होंने कहा, “इस क्षेत्र के विकास पर निरंतर ध्यान केन्द्रित करने के लिए हमारी सरकार ने एक अलग मत्स्य पालन विभाग बनाने का फैसला किया है.”
एक विभाग सीधे-सीधे मंत्री की अध्यक्षता में काम नहीं करता है, बल्कि मंत्रालय के अंतर्गत काम करता है, जिसमें कई सारे विभाग हो सकते हैं.
निष्कर्ष: वर्तमान में पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन विभाग कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के तहत काम करता है. अगर हालिया प्रस्ताव लागू किया जाता है, तो इसका मतलब है कि मत्स्य पालन के लिए एक अलग विभाग होगा, न कि एक अलग मंत्रालय.
ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी
दावा: प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “2014 में उन्होंने (कांग्रेस) कहा था कि दो साल के भीतर हर गांव डिजिटल ऑप्टिकल फाइबर से जुड़ जाएगा. 2014 तक केवल 59 गांवों में ही ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी थी. लेकिन आज कुल 1,16,000 गांवों में ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी है.”
हकीकत: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिन 59 गांवों का हवाला दिया था, वे भारत ब्रॉडबैंड नेटवर्क लिमिटेड (बीबीएनएल) के लिए संचालित पायलट परियोजनाओं का हिस्सा थे, जो 15 अक्टूबर 2012 को पूरी हुई थीं. लगभग 2,50,000 ग्राम पंचायतों में नेशनल ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क (एनओएफएन) स्थापित करने के लिए बीबीएनएल परियोजना को 25 फरवरी 2012 को निगमित किया गया था.
बीबीएनएल की 2013-14 की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक 59 ग्राम पंचायतों के अलावा 6950 ग्राम पंचायतों को कवर करने वाले 238 ब्लॉकों में काम चल रहा था.
12 दिसंबर 2018 को लोकसभा में दिए गए एक जवाब के मुताबिक, 2 दिसंबर 2018 तक कुल 1,16,411 ग्राम पंचायतों को ब्रॉडबैंड से लैस किया जा चुका था.
निष्कर्ष: बीबीएनएल की सालाना रिपोर्ट से पता चलता है कि मोदी सरकार ने 2013-14 के दौरान जमीनी स्तर पर हो रहे कार्य को अपनी गिनती में नहीं लिया.
बैंक खाते
दावा: प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “यहां 2014 तक केवल 50 प्रतिशत बैंक खाते थे. अब हम खातों की संख्या में 100 प्रतिशत तक पहुंचने वाले हैं.
हकीकत: विश्व बैंक ने अपने ग्लोबल फिनडेक्स डेटाबेस 2017 में बताया, “ भारत में 2011 के मुकाबले खाताधारक वयस्कों की संख्या ठीक दोगुनी होकर करीब 80 प्रतिशत पर पहुंच गई है”.
हालांकि यह भी ध्यान देने योग्य तथ्य है: “भारत में निष्क्रिय खातों की हिस्सेदारी 48 प्रतिशत है – जो दुनिया में सबसे अधिक है और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिए औसतन 25 प्रतिशत की लगभग दोगुनी है.”
निष्कर्ष: भारत ने निश्चित रूप से कागजों पर वित्तीय समावेशन हासिल किया है, लेकिन बंद और जीरो बैलेंस खातों का अधिक प्रतिशत एक अलग तस्वीर पेश करता है.
क्या गांधी ने कांग्रेस-मुक्त भारत का सपना देखा था?
दावा: “गांधी ने कहा था कांग्रेस को बिखेर दो. कांग्रेसमुक्त भारत गांधी का सपना था.”
हकीकत: “कांग्रेस मुक्त भारत” नारे की ओट में महात्मा गांधी की तथाकथित अंतिम इच्छा का हवाला देना दरअसल गांधी के लिखे गए एक नोट पर आधारित है, जिसे गलत तरीके से पेश किया जाता है. यह नोट उनकी हत्या के बाद हरिजन पत्रिका में 15 फरवरी 1948 को "हिज लास्ट विल एंड टेस्टामेंट" शीर्षक के साथ प्रकाशित किया गया था, जिसमें उन्होंने लिखा था:
“भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा तैयार किए गए माध्यमों से भारत को राजनीतिक स्वतंत्रता मिली है और अब अपने मौजूदा स्वरूप में अर्थात एक प्रोपगेंडा व्हीकल और पार्लियामेंट्री मशीन के रूप में कांग्रेस की उपयोगिता समाप्त हो गई है. भारत को सामाजिक, नैतिक और आर्थिक आजादी हासिल करना अभी बाकी है. भारत में लोकतंत्र के लक्ष्य की ओर बढ़ते समय सैनिक सत्ता पर जनसत्ता के आधिपत्य के लिए संघर्ष होना अनिवार्य है. इसे राजनीतिक दलों और साम्प्रदायिक संस्थाओं की अस्वस्थ स्पर्धा से दूर रखना होगा. इन और इसी तरह के कारणों से अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी मौजूदा संस्था को भंग करने और इसे लोक सेवक संघ के रूप में विकसित करने का निश्चय करती है.''
निष्कर्ष: गांधी के कथन को गलत तरीके से पेश किया गया. इसके शाब्दिक अर्थ में उनका मतलब ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ बिल्कुल नहीं था.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)