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'सेल्फ डिफेंस' की दलील ने दुनिया पर ऐसे थोपे दो World War, अब तीसरे की तैयारी?

World War 1 और World War 2 कैसे हुए थे शुरू, किन देशों के मध्य हुई लड़ाई और किसका कितना हुआ नुकसान, पढ़ें सब कुछ...

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रूस और यूक्रेन (Ukraine-Russia) के बीच संघर्ष जारी है. रूसी हमले से यूक्रेन में कई जगहें तबाह हो गई हैं. यह युद्ध एक विश्वव्यापी संकट बन गया है. इसके आगे चलकर विश्वयुद्ध के रूप में बदलने की बातें कही जा रही हैं. इससे पहले हुए विश्वयुद्धों की तात्कालिक शुरुआत भी दो देशों के बीच हुई सैन्य कार्रवाइयों से ही हुई थी. हाल फिलहाल परिस्थितियां भी बिल्कुल वैसी ही बनती दिख रही हैं. इस हमले को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने 'सेल्फ डिफेंस' में लिया गया फैसला बताया है. प्रथम विश्वयुद्ध व द्वितीय विश्व युद्ध में भी जब कार्रवाई की गईं तब उनका उद्देश्य आत्मरक्षा बताया गया था. आइए जानते हैं प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के छिड़ने के अहम कारणों के बारे में...

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वर्ल्ड वार-I : मुख्य शक्तियों और मित्र देशों के बीच लड़ा गया

प्रथम विश्व युद्ध ( World War 1)) 28 जुलाई 1914 से 11 नवंबर 1918 तक चला था. यह युद्ध केंद्रीय शक्तियों और मित्र देशों के बीच लड़ा गया था. मित्र देशों में फ्रांस, रूस और ब्रिटेन जैसे शक्तिशाली देश शामिल थे. 1917 के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका भी मित्र देशों की ओर से युद्ध में शामिल हो गया था. वहीं केंद्रीय शक्तियों की बात करें तो इसमें जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी, ऑटोमन साम्राज्य और बुल्गारिया जैसे देश शामिल थे.

इस युद्ध की वजहों पर गौर करें तो इसमें विस्तारवादी नीति, परस्पर रक्षा सहयोग, साम्राज्यवाद, सैन्यवाद, राष्ट्रवाद और प्रभावशाली अंतरराष्ट्रीय संस्था का अभाव जैसे मुद्दे अहम थे. जबकि तत्कालीन वजह आर्कड्यूक फ्रांज फर्डिनेंड (Archduke Franz Ferdinand) की हत्या रही.

प्रथम विश्व युद्ध के प्रमुख कारण 

जर्मनी की अंतरराष्ट्रीय विस्तारवादी नीति : 1890 में जर्मनी के नए सम्राट विल्हेम द्वितीय ने एक अंतरराष्ट्रीय नीति शुरू की थी, जिसने जर्मनी को विश्व शक्ति के रूप में परिवर्तित करने के प्रयास किए. इसी का परिणाम रहा कि विश्व के अन्य देशों ने जर्मनी को एक उभरते हुए खतरे के रूप में देखा जिसके चलते अंतरराष्ट्रीय स्थिति अस्थिर हो गई.

आपसी रक्षा सहयोग: संपूर्ण यूरोपीय देशों ने आपसी सहयोग के लिये रक्षा समझौते और संधियां कर लीं. इसका सीधा सा मतलब यह था कि यदि यूरोप के किसी एक राष्ट्र पर शत्रु राष्ट्र की ओर से हमला होता है तो उक्त राष्ट्र की रक्षा हेतु सहयोगी राष्ट्रों को सहायता के लिये आगे आना होगा.

वर्ष 1882 की त्रिपक्षीय संधि जर्मनी को ऑस्ट्रिया-हंगरी और इटली से जोड़ती है. वहीं त्रिपक्षीय सौहार्द ब्रिटेन, फ्रांस और रूस से संबद्ध था, जो वर्ष 1907 तक समाप्त हो गया था. इस प्रकार यूरोप में दो प्रतिद्वंद्वी समूह बन गए थे.

साम्राज्यवाद : प्रथम विश्व युद्ध से पहले अफ्रीका और एशिया के कुछ हिस्से कच्चे माल की उपलब्धता के कारण यूरोपीय देशों के बीच विवाद का विषय बने हुए थे. जब जर्मनी और इटली इस उपनिवेशवादी दौड़ में शामिल हुए तो उनके विस्तार के लिये बहुत कम संभावना बची. इसका परिणाम यह हुआ कि इन देशों ने उपनिवेशवादी विस्तार की एक नई नीति अपनाई. यह नीति थी दूसरे राष्ट्रों के उपनिवेशों पर बलपूर्वक अधिकार कर अपनी स्थिति को सुदृढ़ किया जाए.

बढ़ते कॉम्पिटिशन और अधिक साम्राज्यों की इच्छा के कारण यूरोपीय देशों के मध्य टकराव में वृद्धि हुई जिसने समूचे विश्व को प्रथम विश्व युद्ध में धकेलने में मदद की. मोरक्को तथा बोस्निया संकट ने भी इंग्लैंड एवं जर्मनी के बीच होड़ को और बढ़ावा दिया. अपने प्रभाव क्षेत्र में वृद्धि करने के उद्देश्य से जर्मनी ने जब बर्लिन-बगदाद रेल मार्ग योजना बनाई तो इंग्लैंड के साथ-साथ फ्रांस और रूस ने इसका विरोध किया, जिसके कारण इनके बीच कड़वाहट बढ़ गई.

सैन्यवाद : 20वीं सदी शुरु होते विश्व में हथियारों की दौड़ व होड़ शुरू हो गई थी. 1914 तक जर्मनी में सैन्य निर्माण में सबसे अधिक वृद्धि हुई. ग्रेट ब्रिटेन और जर्मनी दोनों ने इस समयावधि में अपनी नौ-सेनाओं में काफी वृद्धि की. सैन्यवाद की दिशा में हुई इस वृद्धि ने युद्ध में शामिल देशों को और आगे बढ़ने में मदद की.

1911 में एंग्लो-जर्मन नेवल प्रतिस्पर्द्धा के परिणाम स्वरूप 'अगादिर का संकट' पैदा हो गया. 1912 में जर्मनी में एक विशाल जहाज 'इम्प रेटर' का निर्माण किया गया जो उस समय का सबसे बड़ा जहाज था. इससे इंग्लैंड और जर्मनी के बीच होड़ काफी तेज हो गई.

राष्ट्रवाद : जर्मनी और इटली का एकीकरण राष्ट्रवाद के आधार पर ही किया गया था. बाल्कन क्षेत्र में राष्ट्रवाद की भावना अधिक प्रबल थी. चूंकि उस समय बाल्कन प्रदेश तुर्की साम्राज्य के अंतर्गत आता था, इसलिए जब तुर्की साम्राज्य कमज़ोर पड़ने लगा तो इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों ने स्वतंत्रता की मांग शुरू कर दी. इसी दौरान रूस और ऑस्ट्रिया–हंगरी के मध्य संबंधों में कटुता आई.

बोस्निया और हर्जेगोविना में रहने वाले स्लाविक लोग ऑस्ट्रिया-हंगरी का हिस्सा नहीं बने रहना चाहते थे, बल्कि वे सर्बिया में शामिल होना चाहते थे और बहुत हद तक उनकी इसी इच्छा के परिणामस्वरूप प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत हुई.

ताकतवर अंतरराष्ट्रीय संस्था की कमी : प्रथम विश्व युद्ध के पहले ऐसी कोई भी संस्था नहीं थी जो साम्राज्यवाद, सैन्यवाद और उग्र राष्ट्रवाद पर नियंत्रण कर विभिन्न देशों के बीच संबंधों को सहज बना सके. उस समय दुनिया का लगभग प्रत्येक देश अपनी मनमानी कर रहा था, जिसके चलते यूरोप की राजनीति में एक प्रकार की अराजक स्थिति बन गई थी.

प्रथम विश्व युद्ध का सबसे बड़ा तत्कालीन कारण था आर्कड्यूक फ्रांज फर्डिनेंड की हत्या. जून 1914 में जब ऑस्ट्रिया-हंगरी के गद्दी के उत्तराधिकारी आर्कड्यूक फ्रांज फर्डिनेंड बोस्निया में साराजेवो का दौरा कर रहे थे, तब उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. इससे सारा यूरोप सकते में आ गया. ऑस्ट्रिया ने इस घटना के लिये सर्बिया को जिम्मेदार माना. ऑस्ट्रिया ने सर्बिया को चेतावनी दी कि वह 48 घंटे के अंदर इस घटना के संदर्भ में अपनी स्थिति स्पष्ट कर अपराधियों का दमन करे. लेकिन सर्बिया ने ऑस्ट्रिया की मांग को ठुकरा दिया. परिणाम स्वरूप 28 जुलाई, 1914 को ऑस्ट्रिया ने सर्बिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी.
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वर्ल्ड वार-I टाइमलाइन

  • 28 जुलाई, 1914 को ऑस्ट्रिया ने सर्बिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी. देखते-ही-देखते विश्व के अन्य राष्ट्र भी अपने-अपने गुटों के समर्थन में उतर आए और युद्ध बढ़ता गया.

  • इस युद्ध में रूस भी शामिल हो गया क्योंकि उसने सर्बिया के साथ संधि कर रखी थी.

  • इसके बाद जर्मनी ने रूस के साथ युद्ध की घोषणा कर दी क्योंकि जर्मनी और ऑस्ट्रिया-हंगरी के मध्य संधि हुई थी.

  • फिर ब्रिटेन ने जर्मनी के साथ युद्ध की घोषणा कर दी क्योंकि जर्मनी ने तटस्थ बेल्जियम पर आक्रमण कर दिया था, जबकि ब्रिटेन ने बेल्जियम और फ्रांस दोनों देशों की रक्षा के लिये समझौते किये हुए थे.

  • इस दौरान हुए कुछ प्रमुख युद्धों में मार्ने का प्रथम युद्ध, सोम्मे का युद्ध, टैनबर्ग का युद्ध, गैलीपोली का युद्ध और वर्दुन का युद्ध आदि थे.

  • यूरोप, अफ्रीका और एशिया में कई मोर्चों पर संघर्ष शुरू हुआ था. इसके दो मुख्य खेमे थे. पहला पश्चिमी मोर्चा था, जहां जर्मनों ने ब्रिटेन, फ्रांस और वर्ष 1917 के बाद अमेरिकियों के साथ संघर्ष किया. दूसरा पूर्वी मोर्चा था जिसमें रूसियों ने जर्मनी और ऑस्ट्रो-हंगेरियन सेनाओं के खिलाफ युद्ध लड़ा.

  • 1917 में अमेरिका मित्र राष्ट्रों के बेड़े में शामिल हो गया. जबकि दूसरी तरफ रूसी क्रांति के बाद रूस युद्ध से बाहर हो गया और उसने एक अलग शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए.

  • अक्टूबर-नवंबर 1918 में तुर्की और ऑस्ट्रिया ने आत्मसमर्पण कर दिया, जिससे जर्मनी अकेला पड़ गया. जर्मनी की हार हुई. वेमर गणतंत्र की स्थापना हुई, साथ ही नई सरकार ने 11 नवंबर, 1918 को युद्धविराम के घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किये और प्रथम विश्वयुद्ध समाप्त हो गया.

प्रथम विश्व युद्ध में शामिल कोई भी देश युद्ध के लिये स्वयं को उत्तरदायी नहीं मानता था बल्कि वे यह दावा करते थे कि उन्होंने शांति व्यवस्था बनाए रखने की चेष्टा की लेकिन शत्रु राष्ट्र की नीतियों के कारण युद्ध हुआ. वर्साय संधि की एक धारा में जर्मनी और उसके सहयोगी राष्ट्रों को युद्ध के लिये उत्तरदायी माना गया लेकिन यह मित्र राष्ट्रों का एक पक्षीय निर्णय था.

28 जून, 1919 को वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर के साथ प्रथम विश्व युद्ध आधिकारिक रूप से समाप्त हो गया. वर्साय की संधि दुनिया को दूसरे युद्ध में जाने से रोकने का प्रयास थी.

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दुनिया का सबसे बड़ा संघर्ष था द्वितीय विश्व युद्ध

वर्ल्ड वार-II या द्वितीय विश्व युद्ध अबतक का सबसे लंबा चलने वाला बड़ा संघर्ष था जो करीब 6 वर्षों तक चला था. यह 1939-45 के बीच होने वाला एक सशस्त्र विश्वव्यापी संघर्ष था. इस युद्ध में दो प्रमुख प्रतिद्वंद्वी गुट धुरी शक्तियां (जर्मनी, इटली और जापान) तथा मित्र राष्ट्र (फ्रांस, ग्रेट ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ और कुछ हद तक चीन) शामिल थे.

वर्ल्ड वार-2 की प्रमुख वजहों पर नजर दौड़ाएं तो वर्साय संधि की कठोर शर्तें , आर्थिक मंदी, तुष्टीकरण की नीति, जर्मनी और जापान में सैन्यवाद का उदय, राष्ट्र संघ की विफलता आदि थी.

वर्साय संधि : प्रथम विश्व युद्ध के बाद विजयी मित्र देशों ने जर्मनी के भविष्य का फैसला किया. जर्मनी को वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर करने के लिये मजबूर किया गया. इस संधि के तहत जर्मनी को युद्ध का दोषी मानकर उस पर आर्थिक दंड लगाया गया, उसके प्रमुख खनिज और औपनिवेशिक क्षेत्र को ले लिया गया तथा उसे सीमित सेना रखने के लिये प्रतिबद्ध किया गया. जर्मनी ने इसे अपना अपमान माना और यहां से वह अति-राष्ट्रवाद की तरफ बढ़ा.

राष्ट्र संघ : इसकी स्थापना वर्ष 1919 में एक अंतरराष्ट्रीय संगठन के रूप में विश्व शांति को बनाए रखने के लिये की गई थी. यह संगठन विश्व के सभी देशों को अपना सदस्य बनाना चाहता था ताकि उनके बीच विवाद होने पर उसे बल के बजाय बातचीत द्वारा सुलझाया जा सके. इसमें सभी देश शामिल नहीं हो सके. वहीं जब इटली के इथियोपिया पर या जापान के मंचूरिया क्षेत्र पर आक्रमण हुए तब इन सैन्य हमलों को रोकने के लिये संघ के पास अपनी सेना नहीं थी.

महामंदी : 1930 के दौरान की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी ने यूरोप और एशिया में अलग-अलग तरीकों से अपना प्रभाव डाला. यूरोप की अधिकांश राजनीतिक शक्तियां जैसे- जर्मनी, इटली, स्पेन आदि अधिनायकवादी और साम्राज्यवादी सरकारों में बदल गईं. वहीं संसाधन संपन्न देश जापान, एशिया और प्रशांत क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के लिये इन क्षेत्रों पर आक्रमण करने लगा.

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फासीवाद और नाजीवाद का उदय

फासीवाद : वर्ल्ड वार-I के विजेताओं का उद्देश्य दुनिया को लोकतंत्र के लिये सुरक्षित करना था. प्रथम विश्व युद्ध के बाद जर्मनी ने अन्य अधिकांश देशों की तरह लोकतांत्रिक संविधान को अपनाया.

1920 के दशक में इटली में राष्ट्रवादी, सैन्यवादी अधिनायकवाद की लहर को फासीवाद के नाम से जाना गया. इस विचारधारा ने स्वयं को लोकतंत्र से अधिक प्रभावी ढंग से काम करने वाली और साम्यवाद को रोकने वाले रूप में प्रस्तुत किया. 1922 में बेनिटो मुसोलिनी द्वारा इटली में इंटरवार अवधि के दौरान पहली फासीवादी तानाशाही सरकार की स्थापना की गई.

नाजीवाद : जर्मन नेशनल सोशलिस्ट (नाजी) पार्टी के नेता एडोल्फ हिटलर ने नाजीवाद की नस्लवादी विचारधारा का प्रचार किया. हिटलर ने वर्साय की संधि को पलटने, जर्मनी के वैभव को पुनः बहाल करने और जर्मनी को ज्यादा सुरक्षित बनाने का वादा किया.

1933 में हिटलर जर्मन चांसलर बना और आगे चलकर खुद को एक तानाशाह के रूप में स्थापित किया. नाजी शासन ने 1941 में स्लाव, यहूदियों और हिटलर की विचारधारा के दृष्टिकोण से हीन समझे जाने वाले अन्य तत्त्वों के खिलाफ युद्ध शुरू कर दिया. हिटलर ने खुले तौर पर वर्साय की संधि का उल्लंघन किया और जर्मनी की सेना तथा हथियारों का गुप्त रूप से निर्माण शुरू कर दिया.

तुष्टिकरण की नीति : हिटलर की गतिविधियों के बारे में ब्रिटेन और फ्रांस को पता था, लेकिन उन्हें लगा कि एक मजबूत जर्मनी ही रूस के साम्यवाद के प्रसार को रोक सकता है. सितंबर 1938 में म्यूनिख समझौता हुआ, यह तुष्टिकरण का एक प्रमुख उदाहरण था. इस समझौते में ब्रिटेन और फ्रांस ने जर्मनी को चेकोस्लोवाकिया के उन क्षेत्रों में प्रवेश करने की अनुमति दे दी, जहां जर्मन-भाषी लोग रहते थे. जर्मनी ने वादा किया था कि वह बाकी चेकोस्लोवाकिया या किसी अन्य देश पर आक्रमण नहीं करेगा, लेकिन मार्च 1939 में इस वादे को तोड़कर उसने बाकी के चेकोस्लोवाकिया पर आक्रमण कर दिया. इसके बाद भी ब्रिटेन और फ्रांस द्वारा सैन्य कार्रवाई नहीं की गई.

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वर्ल्ड वार-II टाइमलाइन

  • 1 सितंबर, 1939 को जर्मनी द्वारा पोलैंड पर आक्रमण के दो दिन बाद ब्रिटेन और फ्रांस ने जर्मनी के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी. इस घटना ने द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत की.

  • पश्चिमी यूरोप युद्ध के पहले कुछ महीनों के दौरान शांत था, जिसे Phoney War के रूप में जाना जाता है.

  • मार्च 1940 में रूस और फिनलैंड के बीच शीतकालीन युद्ध खत्म हुआ और अगले महीने जर्मनी ने डेनमार्क और नॉर्वे पर हमला कर दिया. डेनमार्क ने तुरंत आत्मसमर्पण कर दिया लेकिन नॉर्वे ने ब्रिटेन और फ्रांस की सहायता से जून 1940 तक जर्मनी का मुकाबला किया.

  • इसके बाद जर्मनी ने स्केंडिनेवियाई देशों के साथ युद्ध समाप्त होने के बाद फ्रांस, बेल्जियम और हॉलैंड पर आक्रमण किया.

  • सितंबर 1940 तक ब्रिटेन पर जर्मनी का आक्रमण जुलाई से लगातार जारी रहा. यह वायुसेना द्वारा लड़ा जाने वाला पहला युद्ध था.

  • अप्रैल 1941 में जर्मनी ने यूगोस्लाविया पर आक्रमण कर दिया.

  • ब्रिटेन से हारने के बाद हिटलर ने रिबेंट्रोप संधि को रद्द कर 1941 में रूस पर आक्रमण कर दिया.

  • इसी बीच 7 नवंबर, 1941 को अमेरिकी व्यापार प्रतिबंधों से परेशान जापान ने हवाई में स्थित अमेरिकी नौसेना बेस पर्ल हार्बर पर अचानक हमला कर दिया. इस हमले के कुछ दिनों बाद जर्मनी ने अमेरिका के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी.

  • जापान ने पर्ल हार्बर पर हमला करने के एक सप्ताह के भीतर ही फिलीपींस, बर्मा और हाॅन्गकाॅन्ग पर आक्रमण कर दिया.

  • 1942 में अमेरिका ने द्वितीय विश्व युद्ध में एंट्री की. 1942 के आखिर के महीनों में ब्रिटिश सेनाओं ने उत्तरी अफ्रीका और स्टालिनग्राद पर जवाबी कार्रवाई की.

  • 1943 में जर्मनी ने स्टालिनग्राद में सोवियत संघ के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. जर्मन सेना की यह पहली बड़ी हार थी. इसके साथ ही उत्तरी अफ्रीका में जर्मन और इतालवी सेनाओं ने मित्र राष्ट्रों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया.

  • रूसी सेना ने जर्मनी से खार्किव और कीव को वापस ले लिया. वहीं मित्र देशों के बमवर्षकों ने जर्मन शहरों पर हमला करना शुरू कर दिया.

  • 21 अप्रैल, 1945 को रूसी सेना जर्मनी की राजधानी बर्लिन तक पहुंच गई.

  • 30 तारीख को हिटलर ने आत्महत्या कर ली, वहीं मुसोलिनी को फांसी हुई.

  • 7 मई को जर्मनी ने बिना किसी शर्त आत्मसमर्पण कर दिया और अगले दिन यूरोप में विजय दिवस के रूप में मनाया गया.

  • अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन को जापान के खिलाफ परमाणु बम के उपयोग की मंजूरी दी. 6 अगस्त, 1945 को जापान के शहर हिरोशिमा पर और तीन दिन बाद नागासाकी पर बम गिराया गया.

  • 14 अगस्त 1945 को जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया, इसके साथ ही द्वितीय विश्व युद्ध का अंत हो गया.

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सेल्फ डिफेंस कहीं दूसरों पर अटैक का बहाना तो नहीं है?

प्रथम विश्व युद्ध के बाद जर्मनी आत्मरक्षा और मानवीय सहयोग जैसी बातें करके खुद को आर्थिक और सैन्य दृष्टि से मजबूत बनाते हुए युद्ध के लिए तैयार हुआ. बाद में खुद ही हमलों को अंजाम दिया. हाल ही में (24 फरवरी को) रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन हमले को एक्ट ऑफ सेल्फ डिफेंस बताया है.

मॉस्को संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 51 के तहत यूक्रेन हमले को आत्मरक्षा करार दे रहा है. इसके साथ ही कुछ दिनों पहले रूसी राजदूत वसीली नेबेंजिया ने मॉस्को के रुख को दोहराते हुए कहा कि उसका सैन्य अभियान पूर्वी यूक्रेन में अलग हुए क्षेत्रों के निवासियों की रक्षा के लिए शुरू किया गया था. उन्होंने कहा कि यूक्रेन द्वारा अपने ही निवासियों के खिलाफ शत्रुता शुरू की गई थी. उन्होंने कहा कि रूस इस युद्ध को समाप्त करने की मांग कर रहा है.

वहीं पश्चिमी देश और संयुक्त राष्ट्र द्वारा रूस की इस दलील को पूरी तरह से खारिज किया जा रहा है, इनके द्वारा मॉस्को पर चार्टर के अनुच्छेद 2 का उल्लंघन करने का आरोप लगाया जा रहा है.

संयुक्त राष्ट्र में ब्रिटेन की राजदूत बारबरा वुडवर्ड ने कहा है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन पर बड़े पैमाने पर हमला शुरू किया है. उनका उद्देश्य वहां की सरकार को हटाना और लोगों को अपने अधीन करना है. यह आत्मरक्षा नहीं है. यह खुले तौर पर आक्रामकता है.

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