किसान आंदोलन (Farmers Protest) हो या पश्चिम बंगाल चुनाव (West Bengal Election), इजरायल-फिलिस्तीन (Israel-Palestine) संघर्ष हो या अमरावती में हुई हिंसा, इन सभी के दौरान एंटी मुस्लिम नैरेटिव के साथ फेक न्यूज स्प्रेडर्स ने झूठी खबरें फैलाईं.
मुद्दा कोई भी हो फेक न्यूज स्प्रेडर मुस्लिम एंगल लाकर एंटी मुस्लिम नैरेटिव फैलाते रहे. और सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने की कोशिश करते रहे. आइए डालते हैं साल के बड़े न्यूज इवेंट पर नजरें और उनसे जुड़े एंटी मुस्लिम या इस्लामोफोबिक झूठे दावों पर. साथ ही, जानते हैं कि ऐसा क्यों किया जाता है और इसमें सोशल मीडिया की क्या भूमिका है.
साल के बड़े न्यूज इवेंट
बंगाल चुनाव और वहां हुई हिंसा
त्रिपुरा हिंसा और फेक न्यूज
अयोध्या और राम मंदिर से संबंधित फेक न्यूज
इंटरनेशनल मसले जैसे कि इजरायल-फिलिस्तीन विवाद, बांग्लादेश, म्यांमार, और अफगानिस्तान से जुड़ी फेक खबरें और इस्लामोफोबिया
किसान आंदोलन और दिल्ली, राजस्थान, केरल, यूपी सहित कई अलग-अलग राज्यों से संबंधित फेक न्यूज और इस्लामोफोबिया
बंगाल चुनाव से संबंधित फेक खबरें और इस्लामोफोबिया
बंगाल में मार्च-अप्रैल में हुए विधानसभा चुनावों के पहले से लेकर, चुनावों के दौरान और बाद तक कई फेक खबरें फैलीं. इस दौरान क्विंट ने बंगाल से जुड़ी करीब 55 फेक खबरों की पड़ताल की. इनमें से करीब 18 फेक दावे ऐसे थे जिनको सांप्रदायिक और इस्लामोफोबिया ऐंगल से शेयर किया गया. यानी करीब-करीब 33 प्रतिशत दावे सांप्रदायिक एंगल से शेयर किए गए थे.
उदाहरण के लिए, एक पेपर की कटिंग शेयर कर ये झूठा दावा किया गया कि ममता बनर्जी ने कहा है कि अगर वो 42 सीटें जीतेंगी तो हिंदुओं को रुला देंगी. एक ये दावा भी किया गया कि ममता बनर्जी चुपचाप मजार गईं थीं. पड़ताल के मुताबिक, ममता बनर्जी ने न तो ऐसा कभी कुछ कहा और वो कभी चुपचाप मजार गईं. ये फेक दावे मुस्लिम विरोधी नैरेटिव सेट करने की मुहिम के तौर पर शेयर किए गए.
त्रिपुरा में मुस्लिम विरोधी हिंसा और फेक न्यूज
बांग्लादेश में अक्टूबर के महीने में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमले की कुछ रिपोर्ट्स आने के बाद त्रिपुरा में हिंसा से जुड़ी कई खबरें आईं. ये हिंसा मुस्लिम अल्पसंख्यकों के घरों और मस्जिदों सहित उनकी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने से संबंधित थीं. एक तरफ जहां त्रिपुरा में मुस्लिम विरोधी हिंसा की सचमुच की घटनाएं हुईं. वहीं दूसरी तरफ फेक न्यूज के जरिए इन घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर बताने की कोशिश की गई.
हालांकि, त्रिपुरा में हिंसा से जुड़ी घटनाएं हुईं, लेकिन फिर भी पुराने वीडियोज या फोटो या फिर कहीं और के वीडियोज, मामले को बढ़ा-चढा़कर पेश करने के लिए शेयर किए गए. कभी दिल्ली में रोंहिग्याओं के कैंप में लगी आग त्रिपुरा हिंसा की बताई गई तो कभी दिल्ली दंगों पर BBC की पुरानी वीडियो रिपोर्ट त्रिपुरा हिंसा से जोड़कर मीडिया को निशाना बनाया गया.
इसके पीछे दो मकसद हो सकते हैं पहला ये कि मुस्लिम विरोधी हिंसा को बढ़ाचढ़ाकर दिखाकर एक उपलब्धि के रूप में पेश करना. दूसरा वर्चुअल दुनिया में फेक न्यूज के जरिए, ये नैरेटिव सेट करना कि समाज में माहौल सौहार्दपूर्ण नहीं है.
क्विंट ने इस पर एक रिपोर्ट भी पब्लिश की थी कि कैसे बांग्लादेश में दुर्गा पंडाल में हुए हमलों के बाद, त्रिपुरा में सांप्रदायिक सद्भाव खराब करने की कोशिश की गई. उसके बाद त्रिपुरा से संबंधित अफवाहों के आधार पर महाराष्ट्र के अमरावती में भी कुछ दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं हुईं. यानी एक जगह की घटना का असर दूसरी जगह भी देखने को मिला.
अयोध्या और राम मंदिर से संबंधित फेक न्यूज
साल 2021 की शुरुआत में ही सोशल मीडिया पर एक न्यूजपेपर की कटिंग वायरल हुई. कटिंग में अमित शाह को कोट कर लिखा गया था कि अमित शाह ने कहा है कि राम मंदिर कभी नहीं बनेगा. इसके अलावा दूसरी हेडलाइन में पीएम मोदी को कोट कर लिखा गया कि हिंदुओं को भरोसा जीतने के लिए मुस्लिमों किसानों को मरवाया. हालांकि, पड़ताल में ये दावा झूठा निकला. ऐसी कोई न्यूज पेपर में नहीं छपी थी.
इसके अलावा, ज्यादातर फेक खबरों में अयोध्या की बता दूसरी जगहों की फोटो और वीडियो शेयर किए गए. भीड़ का जमावड़ा दिखाता वीडियो ये कहके शेयर किया गया कि अब हिंदू जाग गया है और वो अयोध्या की ओर निकल पड़ा है, ताकि देश को हिंदू राष्ट्र बनाया जा सके. हालांकि, इन सभी खबरों में हिंसा या अल्पसंख्यकों के प्रति हिंसा से जुड़े झूठे पॉइंट तो नहीं थे, लेकिन इन खबरों की आत्मा कहीं न कहीं इस्लामोफोबिया के इर्द-गिर्द ही घूमती नजर आई.
क्योंकि, कुछ लोगों ने हिंदू राष्ट्र बनाने से जुड़ा नैरेटिव सेट कर देश में एक परसेप्शन फैलाने की कोशिश की.
इजरायल-फिलिस्तीन विवाद, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से जुड़ी फेक खबरें और इस्लामोफोबिया
अफगानिस्तान:
अगस्त 2021 में तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर वहां की सरकार को पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया. इसी दौरान, अफगानिस्तान से जुड़ी फेक खबरों का फैलना शुरू हुआ. क्विंट ने अफगानिस्तान से जुड़ी जितनी भी खबरों की पड़ताल की उनमें से कई खबरें ऐसी थीं, जिन्हें शेयर कर भारत में रह रहे मुस्लिमों पर निशाना साधा गया.
इन दावों के जरिए अप्रत्यक्ष रूप से ये कहने की भी कोशिश की गई कि जिन्हें भारत में अच्छा नहीं लगता वो अफगानिस्तान चले जाएं. ISIS के द्वारा लोगों को मारे जाने का पुराना वीडियो उस दौरान की हालिया स्थिति से जोड़कर इस दावे से शेयर किया गया कि अफगानिस्तान में उन्हें मारा जा रहा है जो मुस्लिम नहीं हैं. इसी तरह कोलंबिया का पुराना वीडियो इस झूठे दावे से शेयर किया गया कि तालिबान ईसाइयों को मार रहा है. इसके अलावा, और भी खबरें शेयर की गईं जिनमें इस्लामोफोबिया नैरेटिव देखा जा सकता है.
इजरायल-फिलिस्तीन:
इजरायल और फिलिस्तीन के बीच विवाद तब शुरू हुआ जब इजरायली पुलिस ने करीब 300 फिलिस्तीनियों को रबर बुलेट से जख्मी कर दिया. हालांकि, मामला एक यहूदी और मुस्लिम देश का था, लेकिन अपने देश में इस पर भी एंटी-मुस्लिम नैरेटिव के साथ कई फेक खबरें शेयर हुईं. जैसे कि एक इराक की एक मस्जिद में यूएस आर्मी की ओर से साल 2008 में की गई फायरिंग का वीडियो, इस गलत दावे से शेयर किया गया कि इजरायलियों ने मस्जिद की अजान की आवाज से परेशान होकर फिलिस्तीन की एक मस्जिद उड़ा दी.
दोहा के कतर में फिलिस्तीन के सपोर्ट में की गई एक रैली का वीडियो केरल का बता शेयर किया गया और इस बार भी एंटी मुस्लिम नैरेटिव के साथ ये झूठा दावा किया गया कि फिलिस्तीन का सपोर्ट करते ये लोग केरल से हैं. बेंजमिन नेतन्याहू और मार्क जकरबर्ग की साथ में एक एडिटेड फोटो को शेयर करके भी मुस्लिमों पर निशाना साधा गया.
मामला बेशक उन देशों के बीच था, लेकिन कुछ फेक न्यूज पेडलर्स अपने झूठे दावों के जरिए इजरायल का सपोर्ट करते नजर आए. फेक न्यूज के जरिए बिना किसी संदर्भ के ऐसी फोटो भी शेयर की गई कि फिलिस्तीनी विक्टिम कार्ड खेल रहे हैं.
बांग्लादेश से जुड़ी फेक खबरें और इंडिया कनेक्शन:
झूठी खबरों में इस साल बांग्लादेश भी टॉप पर रहा. बांग्लादेश से संबंधित कई फेक खबरें रोहिंग्या मुस्लिमों से जुड़ी थीं. लेकिन, यहा पर ट्रेंड थोड़ा अलग देखने को मिला. बांग्लादेश से जुड़ी जो भी फेक तस्वीरें और वीडियो कम्यूनल एंगल से शेयर किए गए, उनमें से ज्यादातर बांग्लादेश की थीं लेकिन उन्हें भारत का बता शेयर किया गया, भारत में भी बंगाल राज्य से जोड़कर.
बांग्लादेश के कई वीडियो बंगाल के बता इस दावे से शेयर किए गए कि बंगाल में मुस्लिम हिंदुओं पर अत्याचार कर रहे हैं.
किसान आंदोलन और देश के अलग-अलग हिस्सों से जुड़ी एंटी मुस्लिम नैरेटिव वाली फेक न्यूज
किसान आंदोलन:
इस साल किसान आंदोलन और 3 कृषि कानून देश में सबसे चर्चित मुद्दों में से एक रहे. जहां किसान सरकार के खिलाफ तीन विवादास्पद कानूनों को वापस लेने के लिए आंदोलन कर रहे थे. वहीं, फेक न्यूज पेडलर्स भी इस आंदोलन से जुड़े झूठे दावों की झड़ी लगा रहे थे.
अलग-अलग तरह के फेक दावों के बीच कम्यूनल एंगल से किए गए झूठे दावे भी इस इवेंट का हिस्सा रहे. पगड़ी पहने नमाज पढ़ रहे शख्स की 4 साल पुरानी फोटो हो या किसान महापंचायत के मंच से अल्लाहु अकबर के नारे का अधूरा वीडियो. प्रियंका गांधी की किसान रैली में अजान से जुड़ा अधूरा वीडियो हो या 4 साल पुरानी ईसाई धर्मगुरू की फोटो, ये सभी दावे कम्यूनल एंगल से किए गए और किसान आंदोलन से जोड़ कर किए गए.
देश के अलग-अलग हिस्सों से जुड़ी फेक कम्यूनल खबरें:
मिर्जापुर के विंध्याचल मंदिर में आपस में हुए विवाद में घायल पुजारी की पुरानी तस्वीरें, आंध्र प्रदेश में मंदिर में तोड़फोड़ करते युवक का वीडियो, राजस्थान में पुलिस और स्थानीय लोगों के बीच हुई झड़प से जुड़ा वीडियो, सहित मुस्लिमों द्वारा एक ब्राह्मण की पिटाई के झूठे दावे से शेयर हो रहा वीडियो. ये सभी ऐसे दावों के साथ शेयर किए गए थे, जिनमें एंटी मुस्लिम नैरेटिव सेट करने की कोशिश की गई थी.
अब समझने की कोशिश करते हैं कि देश और दुनिया के लगभग हर बड़े न्यूज इवेंट से जुड़ी फेक खबरों में ऐसा क्या था जो इन्हें आपस में एक जैसा बनाता है.
हर न्यूज इवेंट से जुड़ी फेक खबरों में क्या था कॉमन?
अगर ऊपर बताए गए अलग-अलग मुद्दों पर नजर डालें तो सबमें एक चीज कॉमन मिलती है. वो है सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश.
मुद्दा कोई भी हो, कम्यूनल एंगल से शेयर किए गए झूठे दावे
एक ही कम्यूनिटी यानी मुस्लिमों को किया गया टारगेट
मुस्लिमों को लेकर कुछ लोगों ने ये नैरेटिव सेट करने की कोशिश कि वो या तो हिंसक हैं या वो हिंदुओं के लिए खतरा हैं.
इजरायल-फिलिस्तीन से लेकर बंगाल चुनाव तक, इस्लामोफोबिया बढ़ाने की कोशिश की गई
आकलन ये बताता है कि फेक न्यूज स्प्रेडर किसी जगह या मुद्दे को लेकर झूठे कम्यूनल दावे करते हैं, भले ही वो उस जगह से जुड़ा दावा हो या न हो.
क्या है इस्लामोफोबिया?
इस्लामाफोबिया क्या होता है और क्यों पेश किया जाता है बढ़ा-चढ़ाकर
सिर्फ भारत ही नहीं, दुनियाभर में इस्लामोफोबिया को लेकर बात होती रहती है. लेकिन, ये इस्लामोफोबिया क्या है? इस्लामोफोबिया दो शब्दों, इस्लाम और फोबिया से मिलकर बना है. जिसका हिंदी में मतलब होता है इस्लाम का भय. इसे इसलिए बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है ताकि इस्लाम के प्रति घृणा फैलाई जा सके.
क्यों शेयर किए जाते हैं ऐसे झूठे कम्यूनल दावे?
ऐस झूठे कम्यूनल दावों को शेयर करने के पीछे का मकसद लोगों के मन में मुस्लिमों के खिलाफ विचार डालने की कोशिश की जाती है. हाल में ही शेयर हो रहे एक पाकिस्तानी वीडियो को उदाहरण के तौर पर लेते हैं. वीडियो में एक महिला की पिटाई होते देखा जा सकता है. हालांकि, मामला सांप्रदायिक नहीं था. फिर भी ये दावा किया गया कि वहां हिंदुओं के साथ ऐसा बर्ताव किया जा रहा है, ताकि मुस्लिम विरोधी मानसिकता विकसित की जा सके.
इसके लिए, हम अफगानिस्तान की पृष्ठभूमि में शेयर हो रही वो फेक खबरें देख सकते हैं जिनमें ये कहा गया कि जिन्हें इंडिया में बुरा लगता है वो अफगानिस्तान चले जाएं. इस झूठे दावे में भी मुस्लिमों के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश देखी जा सकती है.
The Globe Post ने अपनी 'भारत में फेक न्यूज से बढ़ा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण' हेडलाइन वाली रिपोर्ट में इस बारे में लिखते हुए बोला है कि फेक न्यूज स्प्रेडर के लिए 'मुस्लिम आसान शिकार हैं'.
क्या भूमिका है सोशल मीडिया की?
NPR वेबसाइट की रिपोर्ट के मुताबिक, AP को मिले लीक दस्तावेजों के अनुसार फेसबुक इस बात पर जोर देता रहा है कि वो भारत में फैल रही गलत सूचनाओं पर नजर रखता है लेकिन उसके बावजूद आलोचकों का मानना है कि कंपनी ऐसा करने में असफल रही है. रिपोर्ट के मुताबिक, बहुत से ऐसे वीडियो और भ्रामक पोस्ट शेयर किए गए जो वायरल होने के बाद हटाए गए.
लीक दस्तावेजों के मुताबिक, फेसबुक मुस्लिम विरोधी भ्रामक कंटेंट हटाने में चयनात्मक रहा है.
वहीं The Globe Post की रिपोर्ट में फैक्ट चेकिंग वेबसाइट SM Hoax Slayer के संस्थापक पंकज जैन के हवाले से लिखा गया है कि WhatsApp जैसे प्लेटफॉर्म के जरिए फैलाए गए झूठों से भी कई बार हिंसा हुई है.
The Wire की रिपोर्ट के मुताबिक, Frances Haugen ने ये दावा किया था कि फेसबुक को पता है कि उनकी सेवाओं का इस्तेमाल भारत में घृणा फैलाने के लिए किया जाता है. लेकिन, राजनीतिक संवेदनशीलता की वजह से इस पर ध्यान नहीं देता.
क्विंट के इस रिपोर्ट को करने के पीछे का मकसद सिर्फ ये बताना नहीं है कि कैसे भारत में एंटी मुस्लिम नैरेटिव सेट करने की कोशिश की जा रही है, बल्कि ये बताना भी है कि ऐसे किसी भी दावे या खबर पर आंख मूंदकर भरोसा न करें, जिससे समाज में घृणा का माहौल बने.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)